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Sunday, 18 December 2022

दिल पे बोझ बना रहता है




लो खुद ही देख लो मेरे मिट्टी से रंगे हाथ
मुफलिसी में कब हाथ साफ़ बना रहता है

देखना ये है के तहज़ीब से उमर कौन बसर करें
जवानी आने का जवानी जाने का दौर तो लगा रहता है

सियासत में कौन हमेशा हुक़्मरां रहा
यहां आना जाना फ़न्ने खां का लगा रहता है

दौरे इश्क में गिरकर ही संभलना पड़ता है
कौन इस मैदान में हर रोज़ खड़ा रहता है

बेगुनाह परिंदों को यूं ही ना गिरफ़्तार करो
क़ैद की एक रात का सदमा उमर भर लगा रहता है

बेफ़िक्री से ना रिश्तों को लहूलुहान किया करो
जख़्म ऊपर से भर भी जाए अंदर से हरा रहता है

कोई कितना भी उस क़ौम को छोटा समझे भूल करे
जो फितरत से बड़ा हो बड़ा रहता है

कभी जो फुर्सत मिले वालिद के दामन में बैठा कर
वक्त गुजर जाए तो दिल पे बोझ बना रहता है




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