दिल पे बोझ बना रहता है




लो खुद ही देख लो मेरे मिट्टी से रंगे हाथ
मुफलिसी में कब हाथ साफ़ बना रहता है

देखना ये है के तहज़ीब से उमर कौन बसर करें
जवानी आने का जवानी जाने का दौर तो लगा रहता है

सियासत में कौन हमेशा हुक़्मरां रहा
यहां आना जाना फ़न्ने खां का लगा रहता है

दौरे इश्क में गिरकर ही संभलना पड़ता है
कौन इस मैदान में हर रोज़ खड़ा रहता है

बेगुनाह परिंदों को यूं ही ना गिरफ़्तार करो
क़ैद की एक रात का सदमा उमर भर लगा रहता है

बेफ़िक्री से ना रिश्तों को लहूलुहान किया करो
जख़्म ऊपर से भर भी जाए अंदर से हरा रहता है

कोई कितना भी उस क़ौम को छोटा समझे भूल करे
जो फितरत से बड़ा हो बड़ा रहता है

कभी जो फुर्सत मिले वालिद के दामन में बैठा कर
वक्त गुजर जाए तो दिल पे बोझ बना रहता है




Comments

Popular posts from this blog

मेरे जाने के बाद | Mere jane ke baad (Ghazal)

अंबेडकर और मगरमच्छ

तेरे जाने के बाद (नज़्म) Nazm