दौर ए बेरुख़ी




















मैं गुनाहगार नहीं और तुमको एतबार नहीं
फिर सोचना कैसा तोहमत जो चाहे लगा दो

मैं जानता हूं के इल्ज़ाम यूं ही सिर नहीं रखते
कोई सुबूत नहीं मेरे ख़िलाफ़ तो झूठा ही बना दो

ग़र बदनाम ही है करना मुझ अमन-परस्त को
शराब हराम है तुम मुझे शराबी बता दो

इश्क मेरा मज़हब इश्क ही मेरा इमां
इश्क करना है जुर्म तो जो चाहे सज़ा दो

तू है जुदा मुझसे मैं भी जुदा तुझसे
बरसों से थे एक जां अब ऐसा ना सिला दो

इंसान को इंसान की अब ज़ियादा जरूरत है
तेरे मेरे बीच की इस दूरी को मिटा दो

यूं तो लड़ाना आपस में सियासत का काम है
मज़हब नहीं सिखाता यह सबको बता दो

यही तो कमाल है हिंदुस्तां की मिट्टी का
जो भी झुक के चूम ले उसे सीने से लगा लो

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