किस्मत किसी शख़्स को आजमाती नहीं
















हर आदमी को वहशी दरिंदा ना समझो
हर औरत भी औलाद को कोठे पे बैठाती नहीं

दुनिया उजाड़ने में हवा का किरदार बड़ा होता है
चिराग की लौ ही अकेले घर को जलाती नहीं

इन दिनों मेरा ही काम सबसे मुश्किल लगा मुझे
मैं बेरोज़गार हूं रोज़गार पे दुनिया बुलाती नहीं

हर शख़्स इस दुनिया में किस्मत को आजमाता है
कभी किस्मत किसी शख़्स को आजमाती नहीं

यूं ही न जमाने ने उसे खुदा का खिताब दिया
मां खून पिलाती है अपना भूखा सुलाती नहीं

अपने गुनाहों की तौबा ख़ुदा से राब्ते में कर
मैदान ए हश्र में फ़रियाद काम आती नहीं

कितने ही सावन बीत गए प्यास अधूरी लगती है
इश्क की आग है एक पल में तो बुझ पाती नहीं

यूं तो सभी ग़ज़ल मैंने उसकी तारीफ़ में लिखी
पर कोई भी मुकम्मल ता'अरुफ कराती नहीं




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