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Showing posts from March, 2024

मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में

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जरूरत कैसी-कैसी निकल आती है घर-बार में मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने ज़ंजीर रिश्तो की पड़ी रहती है परिवार में आज न जाने क्या ग़रज़ निकल आई परिंदा ख़ुद ही सर पटकने लगा है दीवार में यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया जान बख़्श दी मेरी उस क़ातिल ने पलटवार में वज़ह ऐसी के अपने लबों पे चुप्पी रखता हूं मुझपे इल्ज़ाम कई लगे हैं मोहब्बत के कारोबार में इन ख़्वाहिशों के शहर में बह रही है आंधियां किशती साहिल पे आ जाएगी ग़र हिम्मत हो पतवार में

पहली बार का नशा रहता है

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क्या सितम है तेरे आने का ख़्याल बना रहता है तू मेरा है कि नहीं यही सवाल बना रहता है तेरे चेहरे में ऐसा क्या है ये तो मालूम नहीं फिर एक तुझपे ही क्युं मेरा ध्यान लगा रहता है जब कभी देखता हूं मैं पलट कर तुझे हर बार वही पहली बार का सा नशा रहता है लोग हंसते हैं मुझपे तेरा नाम ले लेकर ये क्या कम है, तेरे नाम से मेरा नाम जुड़ा रहता है उसकी आंखें सुर्ख़ बनी रहती है आजकल क्या वो भी मेरी तरह रातभर जगा रहता है लोग आते हैं ग़म भुलाते हैं चले जाते हैं यह मकान यूं ही वीरान बना रहता है अब समंदर भी मुंह देखकर पानी पिलाने लगा प्यासा आजकल बस किनारे पे खड़ा रहता है

बरसों की शनासाई

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एक शख़्स की और मेरी  शनासाई है, लड़ाई है दुनिया की ना माने तो वो प्यार भी कर सकता है सुना है वो शख़्स कान का बहुत कच्चा है किसी ग़ैर की बातों पे एतबार भी कर सकता है अपने दिल की बात कहने से पहले कईं दफ़ा सोचो सामने वाला बेफ़िक्री से इंकार भी कर सकता है उससे इश्क में सब कुछ ला-हासिल लगा मुझे काम पे रखने से पहले ख़बरदार भी तो कर सकता है वो रहता है हमेशा दुश्मनों के साथ मिलकर वो चाहे तो मुझे होशियार भी कर सकता है उसी का हाथ है यारों साज़िश-ओ- नवाज़िश में वो साबित मुझे धोखे से गुनहग़ार भी कर सकता है अब यूं ना दिखाओ डर सैलाबों का सरफ़रोशों को जान हथेली पे हो जिसकी दरिया पार भी कर सकता है

तूफ़नों में दरिया में नाव चलानी पड़ती है

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कहां आसां होता है सफ़र, इक तरफा मुहब्बत का तूफ़नों में दरिया में नाव चलानी पड़ती है यूं ही नहीं बनता ख़ुदा, कोई किसी का मुहब्बत में बदले वफ़ा के उनसे वफ़ा निभानी पड़ती है किसी के दिल में उतरने का यही तो पहला क़दम है नज़रे दुनिया से बचाकर उससे नज़र मिलानी पड़ती है मुहब्बत की हिफ़जत करनी पड़ती है बड़ी फ़िक्री से छुपकर ज़माने से यह रस्म निभानी पड़ती है यूं ही नहीं आसानी से मिलता है कोई चाहने वाला किसी के दिल में बसने की कीमत चुकानी पड़ती है कईं बार वो छोड़ जाने को कहता है बीच राह में दर्द-ए-जिग़र से उसे आवाज़ लगानी पड़ती है भुला चुका हूं वैसे तो उसे दुनिया की नज़र में महफ़ूज़ हवा से रखकर यह समां जलानी पड़ती है के इश्क का अंदाज़ है क्या, किसी दिलदार से पूछो जलाकर खुद को जिंदगी उनकी रोशन बनानी पड़ती है