Thursday, 24 September 2020

माता, पिता व संतान कौन है महान? | Mother, Father and Child

माता (मां) - जननी जो कि अपनी संतान को 9 महीने तक गर्भ में रखती है और उसे सहती है, को जन्म देकर उसका पालन पोषण करती है। मां के बगैर अभी तक संसार में जीवोउत्पत्ति करना संभव नहीं है। स्त्री का जन्म ही मां बनकर संतान उत्पत्ति करने हेतु हुआ है, ताकि श्रृटि का संचालन होता रहें। 9 महीनों तक संतान को गर्भ में रखने का कष्ट ही मां को यह उच्च पद दिलाता है। 

पिता (बाप) - एक पिता स्त्री एवं संतान की आवश्यकताओं को पूरा करता है। एक स्त्री को मां बनने का सौभाग्य पुरुष से ही प्राप्त होता है। संतान को उत्पन्न कराने में एक पुरुष का बहुत बड़ा योगदान होता है। अकेली मां ही इसमें शामिल नहीं है। पुरुष का योगदान ही स्त्री को मां कहने का दर्जा दिलाता है। पुरूष के बिना एक औरत कभी भी मां नहीं बन सकती, उसे मां बनने और खुद को साबित करने के लिए एक पुरूष की आवश्यकता पड़ती है। पूर्व में प्राकृतिक रूप से बच्चे  की उत्पत्ति शुक्राणु रूप में पुरूष के अन्दर ही होती। बाद में इसका स्थापन महिला के गर्भाशय में किया जाता है। इसीलिए यहां पिता का दर्जा माता से भी बड़ा हो जाता है। 

संतान (औलाद) - संतान ही स्त्री-पुरुष के लिए वह जरिया है जिसके द्वारा वे दोनों माता-पिता कहलाते हैं। संतान के द्वारा ही एक स्त्री मां कहलाती है। एक स्त्री मां बन कर ही अपना कर्तव्य पूरा कर सकती हैं। जो उच्च दर्जा उसे अपनी संतान से प्राप्त होता है। संतान का कर्तव्य है कि- वह अपने माता-पिता का साथ जीवनभर ना छोड़े और उनका ठीक वैसे ही पौषण करे जैसे कि माता-पिता ने किया था। और ऐसा कर संतान होने का कर्तव्य निभाए।

Sunday, 20 September 2020

प्यार आखिर है क्या? | What is Love


प्रकृति ने प्रेम को प्रत्येक प्राणी के अंदर जन्मजात बनाया है। कोई भी प्राणी इसे स्वतः सीख ही जाता है जिसे करने से उसे अत्यधिक संतुष्ट भी प्राप्त होती है। प्रेम इतना मधुर इसलिए बना है ताकि जगत में जीवोत्पत्ति निरंतर होती रहे। प्रेम का अंतिम चरण मिलाप ही होता है। यह एक स्वभाविक क्रिया है। यह विधान मनुष्य का अपना नहीं है। मनुष्य का मस्तिष्क तो सिर्फ ऐसे साथी का चुनाव करता है जो कि उसको संतुष्टि दे। यही वह कारण है जिसकी चाहत में वह दूसरों के प्रति आकर्षित होता है। संतान तो वह किसी के भी साथ पैदा कर सकता है लेकिन इसी बात को लोग आसानी से वासना बता देते है। और यदि उन्हीं लोगों की अपनी इच्छा पूछी जाए तो वे सहजता से इसे स्वीकार भी कर लेते हैं। 

जिस ओर आप आकर्षित होते है, वहीं आपकी पसंद भी होती है। प्रेम की शुरुआत आकर्षण से ही होती है क्योंकि जब तक आप किसी व्यक्ति की ओर आकर्षित नहीं होंगे तब तक आप उससे प्यार कर ही नहीं सकते। प्यार करने के लिए जरूरी है कि वह तुम्हें पसंद हो और उसके लिए जरूरी है आप दोनों की सहमति।

अधिकतर देखा यह जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी के संपर्क में रहता है, तो वह उसके प्रति थोड़ा बहुत आकर्षित हो ही जाता है, चाहे वह व्यक्ति किसी भी प्रकार से उससे भिन्न ही क्यों ना हो जैसे- रंग रूप या बातों में विभिनता इत्यादि। संपर्क से आकर्षण और आकर्षण से प्यार उत्पन्न होता है और जब वह इसे स्वीकार करता है तो उसे खुशी का अनुभव होता है। शायद इसी का नाम प्यार है?

यात्री विवाद | Passanger Quarrel

एक बस में एक पति-पत्नी यात्रा कर रहे थे। उन्हीं के ठीक पीछे वाली सीट पर एक सज्जन भी उस बस में बैठे हुए थे। पत्नी ने अपने पति के गले में हाथ डाला हुआ था और बातें करते खिल्ली मारते जा रहे थे। 

कुछ ही दूरी तय करने के पश्चात अचानक झटके के साथ बस रुक जाती है। जिस कारण पीछे बैठे सज्जन का हाथ फिसलकर श्रीमती जी की पीठ से स्पर्श हो जाता है। फिर क्या! वह तुरंत पीछे मुड़कर देखती हैं और क्रोध में अपने पति से बोली कि- जी देखो! यह पीछे बैठा व्यक्ति मुझे छेड़ रहा है। पति को भी क्रोध आ गया। इस पर वह सज्जन बोला कि- इसमें मेरा कोई दोस्त नहीं है फिर भी मैं आपसे क्षमा याचना करता हूं। किंतु वह महिला ना मानी और उसको व्यक्ति को खरी-खोटी सुना डाली।

बस में बैठे सभी यात्री उस सज्जन की ओर देखने लगे। अब सज्जन को भी गुस्सा आ गया और वह बोला कि- मेरा तो सिर्फ आपसे हाथ ही स्पर्श हुआ है किंतु आपके पति ने तो आपको पूरा जकड़ा हुआ था। इस पर महिला बोली कि- यह मेरे पति हैं, जैसा चाहे करें।

महिला की ऐसी बात सुनकर उस व्यक्ति को और भी क्रोध आ गया और बोला कि- अरे पति है तो क्या दोनों शर्म गैरत हाथ में ले लोगे। दिखता नहीं इस बस में तुम दोनों ही नहीं और भी यात्री बैठे हैं। आपका बच्चा भी साथ में हैं। इस बच्चे को क्या शिक्षा दे रहे हो। यदि आप लोग ही इसके सामने यह सब हरकत करोगे तो एक दिन यह भी किसी राह चलती को छेड़ेगा।

उस व्यक्ति के दोहराये शब्द सुनकर उन दोनों पति-पत्नि का साहस टूट गया। वे दोनों आंखें झुकाकर और बच्चे का हाथ पकड़कर अगले स्टैंड पर गाड़ी से उतर गए।

तेरी मेरी शायरी | Teri Meri Shayari



जिनका घर है दिल मेरा, वो दूर जा बैठे
भला कैसे किसी अजनबी को, मैं पनाह दूं

वो शख़्स ना समझा मेरे गहरे जज़्बात को
दर्द छुपाना भी बहुत तजुर्बे के बाद आया

कब छलक पड़े आंसू, ख़बर तक ना हुई
सिसकी भी, जुबां से ना होकर गुज़री

ना दे ग़मे-मोहब्बत की आंच मुझे
जाने कितने शोलें बुझा दिए मैंने

फूल असली भी हैं नकली भी दुनिया में
अब फैसला सिर तुम्हारे सूरत पे मरो या सीरत पे

मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का
तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता

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https://youtu.be/xw5aPipiZo0



Saturday, 19 September 2020

गलती किसकी है? | Galati kiski hai?

एक बस स्टैंड पर रुकी और उसमें एक सज्जन प्रवेश करता है। वह टीटी को रु10 देकर रु5 का टिकट मांगता है। टीटी पैसे खुले मांगता है मगर यात्री के पास खुले पैसे नहीं थे। उन दोनों में बहस हो जाती हैं।

कंडक्टर- आप बस से उतर जाइए।

यात्री- नहीं मुझे कहीं जल्दी पहुंचना है तो मैं क्यों उतरूं।

कंडक्टर- मुझे जबरदस्ती करनी पडगी।

यात्री- आपको यह हक नहीं बनता कि आप किसी यात्री को गाड़ी से उतार दो।

कंडक्टर- मैं किसी बिना टिकट यात्री को उतार सकता हूं।

यात्री- लेकिन मैं टिकट चाहता हूं, आप मुझे दो।

कंडक्टर- आपके पास रु100 का नोट है और मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं।

यात्री- इसमें मेरा क्या दोष है यह सब तो तुम्हें देखना चाहिए।

फिर कुछ ही दूरी के बाद गाड़ी में टीटीइ चढ़ता है और टिकट जांच करता है। उस यात्री को बिना टिकट पाकर उस पर जुर्माना लगता है

यात्री- मेरे मांगने पर भी मुझे टिकट नहीं दिया गया तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं।

कंडक्टर- उन्होंने मुझे खुले पैसे नहीं दिए थे।

यात्री- अगर किसी के पास खुले पैसे नहीं हैं, तो क्या वह यात्रा नहीं करेगा।

इन सबके बाद भी टीटीइ नहीं माना और रु100 की पर्ची काट डाली। वह सज्जन बहुत परेशान और दुखी हुआ।

Diwan E Satyam | Best Shayari ever

मैंने मुद्दतों में आज आईना देखा
लोग बदल गए मैं वैसा ही हूं, इतना देखा

नज़रे अब भी उसकी तलाश में लगी रहती है
मैं लोगों के बीच घिरा रहता हूं, ये राहगीरों पे टिकी रहती है

आफताब अब उसके दरवाज़े की हिफ़जत करता है
चांद घटा से निकले भी तो निकले कैसे?

यह रखना याद मुनाफे की तिजारत के वास्ते
इश्क की नई दुकानों पे कीमत सस्ती होती है

कुछ लोग जल्दबाजी में ऐसे कदम उठा लेते हैं
पहचान बनाने के चक्कर में पहचान गवां देते हैं

सुना है के प्यार आंखों में दिखाई देता है
पर कैसे साबित करूं सच्चा है या झूठा है

हम अपनी नींद से भी समझौता करने लगे
इन सोए हुओं को भी जगाना जरूरी है

Best Sher | Diwan E Satyam




मेरे दुश्मन ही नहीं एक मुझको ग़म देते हैं
अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा

कभी सिगरेट कभी शराब हर रोज़ नए तज़ुर्बें करता हूं
तेरे ग़म में सितमगर अपने रुतबे से भी गिर गया मैं    

अपने जज़्बात पे उसूलों सा क़ायम रहा मैं
तुम क्या जानो मर-मरके ये रस्म निभाई है

ना मदहोशी का ना सरगोशी का मौसम मुझे मिला
ये कैसी ग़म की हवा चली हर पल खिज़ा-खिज़ा मिला

मैं भी ख़्वाहिशों के शहर में तू भी ख़्वाहिशों के शहर में
घर अपना बनाने चले हैं इस तपती हुई दोपहर में

ये मेरा बांकपन, शोख़पन, सब कुंवारापन है
पर ये शादीशुदा कह रहे हैं आवारापन हैं

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https://www.youtube.com/watch?v=VfN_0G8aeg0

आंबेडकर साहब की शायरी | Ambedkar Sahab Shayari



जिसका कोई जवाब ना हो, ऐसा कोई सवाल मिले
वो राह दिखाती लोगों को, जलती कोई मशाल मिले
मैंने इतिहास के पन्नों को, कईं बार पलट के देखा
बाबा साहब की सी दुनिया में, दूजी ना कोई मिसाल मिले

इक बागबां सूखे पेड़ों पे, लहू की बारिश करता रहा
कतरा-कतरा उम्मीद की, क्यारियों में भरता रहा
सूरज भी थक के उठता है, इक रात के बाद
वो मसीहा हमारी खातिर, दिन-रात इक करता रहा

दिया ना खुदा ने जो, इक इंसान दे गया
मुस्कुराहट का अपनी वो, बलिदान दे गया
काल को दे दी, कुर्बानी अपने लाल की
बदले में हमें, खुशियों का वरदान दे गया

खुदाओं के शहर में, वो खुदा से ज्यादा दे गया
औरत को पिछडों को, जीने का इरादा दे गया
ये ब्रह्मास्त्र भी ऊंच नीच का, कल टूट ही जाएगा
वो जाते-जाते संविधान की मजबूत ढाल दे गया

गुम अंधेरों में थी गुज़री, ज़िंदगी मेरी
अब सवेरों की राह पे, मेरा सफ़र है
खुल गए सब रास्तें, जहां में मेरे लिए
ये मेरे बाबा की, हिदायत का असर है

इक फ़रिश्ते ने, अंधेरों में रोशनी कर दी
बुझती मशालों में, दहकती चिंगारी भर दी
लिखकर किताबे-कायदा इंसानियत के मायने बदले
पहनाकर लिबास बराबरी का, इज़्ज़त ऊंची कर दी

वो इमान, बदलने की बात करते हैं
समता का विधान, बदलने की बात करते हैं
यह वो लिबास है, जिसमें लिपटी है सबकी इज़्ज़त
फिर किस मुंह से, संविधान बदलने की बात करते हैं

वो शख़्स, हर शख़्स की तक़दीर हो गया
पढ-लिखकर इंसाफ़ की, शमशीर हो गया
कल्पना में तो सुनी थी, लक्ष्मणरेखा हमने
बाबा का लिखा, पत्थर की लकीर हो गया

उस फ़रिश्ते ने, हम पे बड़ा एहसान किया है
आज़ादी की खातिर, ख़ुद को कुर्बान किया है
तुम्हें अंदाजा नहीं, ए सोई हुई कौम के लोगों
कांटो पे चल के फूलों का, बिस्तर हमें दिया है

दुनिया में कहीं, ऐसा नजारा ना हुआ
बे-सहारों का, कोई सहारा ना हुआ
बाबा तो बहुत आए, ज़माने में मग़र 
बाबा भीम जैसा, कोई दोबारा ना हुआ
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Friday, 18 September 2020

Diwan E Satyam | Best Sher ever | शेर

हम बेखुदी में जिसको सज़दा रहे करते
कभी ग़ौर से ना देखा पत्थर का बुत है वो

कईं मोड़ से गुज़रे राहे उल्फ़त में 'सत्यं'
सोचा था मैंने यूं, आसानियां होंगी

ना करते हम इतनी मोहब्बत उनसे
मालूम होता ग़र वो मग़रूर हो जाएंगे

उन्हें मालूम हो गया हमें सुकून मिलता है
तो ज़ालिम हंसी भी अपनी दबाने लगे

शायद आज मेरी दुआ रंग ला रही है
मैंने तड़पते देखा है उसे किसी के प्यार में

मैंने कसम उठायी थी ना ग़ुनाह करने की
मालूम ना था लोग मोहब्बत को ज़ुर्म समझते हैं

क्या खूब बख़्शी है ऐ ख़ुदा, ख़्यालों की नेमत तूने
हर कोई जिसे चाहे, मोहब्बत कर सकता है


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बेवफाई की दर्द भरी शायरी | Bewafai ki Dard Bhare Shayari



यह कैसे मुकाम पे हम आ खड़े हुए
तुम्हें दिल में बसाकर भी तन्हा से लगते हैं

सुना है बिछुड़कर बढ़ जाती है मोहब्बत और
वो तो ग़ैर के हो गए दो पल की जुदाई के बाद

यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया
के क़त्ल भी ना किया और ज़िंदा भी ना छोड़ा

कैसे निकालू दिल से बता तुझे सनम
मैंने तो दर आये को भी गले लगाया है

मत पूछ मेरी दास्तां ए ग़म मुझसे
मैं बेवज़ह किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता

इस बार ग़ुनाह हमसे बड़ा संगीन हो गया
उस बेवफ़ा पे फिर से हमें यकीन हो गया

ग़र होती ख़्वाबों पे हुकूमत अपनी
तो हर-शब तेरा दीदार मैं करता

वो बेरुख़ी करते हैं मेरे दिल से जाने क्युं
जिन्हें करीब से तमन्ना देखने की है

कईं मोड़ से गुज़रे राहे उल्फ़त में 'सत्यं'
सोचा था मैंने यूं, आसानियां होंगी

इक मुद्दत से ज़ुबां ख़ामोश है मेरी
सोचा कह दूं हाले-दिल तड़प अच्छी नहीं होती

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Thursday, 17 September 2020

Best Sher ever | शेर



चंद्र रोज़ हुए इस शहर की सहर मुझे भाती थी बहोत
पर क्यों ना जाने आजकल मुझे शब से प्यार है

तेरी याद आते ही दिल ग़मगीन हो जाता है
अब तो इतना भी नहीं के तेरे नाम से हंस लूं

मालूम था ग़र के दिल सभी के पास होता है
फिर क्यों उसे अपने ही तड़प का ऐहसास होता है

मुझे खुद्दारी ने हाथ फैलाने ना दिया
पर झुक गए सर कईं खुद्दार लोगों के

उनकी मिशाल तुमको मैं किस तरह से दूं
देखता है जो भी अजूबे आठ कहता है

वो बेरुख़ी करते हैं मेरे दिल से जाने क्यु़
जिन्हें करीब से तमन्ना देखने की है

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शेर शायरी | Sher Shayari | 10 Best Sher ever | शेर















जिनका दिल है घर मेरा वो दिल के अंदर हैं
अभी और बहोत है चाहत ऐसे दीवानों की

इक दिल-दरिया को नाज़ था अपनी रवानी पे
ठहराव मेरे समंदरे-ग़म देखा, शर्मसार हो चली

कोई पूछ बैठा के ग़ज़ल क्या है?
मैंने इशारों में अपने दिल के राज़ खोल दिए

तेरी उमर क्या है? हस्ती क्या है? कुछ नहीं
दो पल की ज़िदगी है बस ख़बर कुछ नहीं

मैं एक मुसाफ़िर हूं तेरी रज़ा की किश्ती का
चाहे साहिल पे ले चल चाहे डुबा दे मुझें

इक मुद्दत से ज़ुबां ख़ामोश है मेरी
सोचा कह दूं हाल-ए-दिल तड़प अच्छी नहीं होती

एतबार कर पैग़ाम ए मोहब्बत जिसके हाथों भेजा
वो क़ासिद भी कमबख़्त मेरा रक़ीब निकला

यह पैग़ाम आया ख़ुदा का मुहब्बत कर ले 'सत्यं'
अब क्या कुसूर मेरा जो दिल उन पे आ गया
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https://youtu.be/0lukkBgbLRY

Tuesday, 15 September 2020

क्योंकि अनाथ हूं मैं | Kyonki Anath Hoon Mein - कविता/Poem


उठती नज़र, कई सवाल करती है
झुकती है तो फैसला बढ़ाती है
इंसान हूं मैं फिर क्यों
ज्यादती मेरे साथ होती है?
कुछ दोष नहीं बस इतना ही न
तुम कहते हो, अनाथ हूं मैं

खंजर से गहरे जो शब्द
दिल चीरकर आर-पार जाते हैं
झंझोते हैं आत्मा, सांस बोझिल करते हैं
सबकी सुनता हूं, बेबस भी हूं
कहीं होता कोई, लेता पनाह में
ख़्वाब अधूरे रहते हैं और अनाथ हूं मैं

कोई हाथ भी बढ़ा दे तो क्या
कभी दिल से नहीं लगाता
क्या दोष मेरा ही है बताओ
इस पथ पर चले आने का
दिया है साया खुदा ने तो इतराते हो
और सहज ही कह जाते हो, अनाथ हूं मैं

मैं जिज्ञासु हूं और मांग भी है
क्यों सब मुझे सहना पड़ता है?
सजा ही देनी थी तो बुरा क्यों बनाके?
तूने बख्सा नहीं एक मासूम को भी, खुदा
कुछ तो दया कर, करामात ऐसी कर
कोई ना कहे मुझसे, अनाथ हूं मैं

मैं यूं ही 'सत्यं' खुदा को दोष देता रहा
नाम खुदा भी चंद लोगों के लिए है
आने वाला है कोई सर पे हाथ रखने वाला
हिम्मतवाला, उसकी आहट का एहसास है मुझे
फिर एक 'बाबा' का धरती पे आना हुआ
मंत्र 'समता' दिया कहा, कभी ना कहना अनाथ हूं मैं।

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Diwan E Satyam 10 Best Sher ever | शेर



कोई ऐसी करामात ख़ुदा उसे भूल जाने की कर
के याद भी ना रहू और इल्ज़ाम भी ना सर हो

जो वक़्त हमने तेरी चाहत में गंवाया
इबादत में लगाते तो ख़ुदा मिल जाता

मुझे ज़िदगी ने ग़म के सिवा कुछ ना दिया
तेरी उल्फ़त भी ज़ालिम कुछ ऐसी ही निकली

हम छोड़ आए हैं तेरी याद साहिल पे
ग़म के भंवर ने दिल घेरा है जब से

पूछकर गुज़री दास्तां 'सत्यं'
इक शायर को रुला देने का ख़्याल अच्छा है

मालूम था वो मुझको चाहते हैं बेशुमार
पर फ़ैसला ना दिल लगाने का कर लिया उसने

दुश्मन को भी हम ख़ालिश मोहब्बत सज़ा देते हैं
नज़रों में उसकी अपनी दीद शर्मिंदगी बना देते हैं

इक रोज़ मुझे ख़्याल आया चल तुझको छोड़ दूं
ये सोचकर मैं भी न तुझे ख़ुद में तोड़ दूं

क्या करोगे तुम मेरा नाम जानकर
बे-आसरा हूं कोई ठिकाना नहीं मेरा

एक मुद्दत से ज़ुबां ख़ामोश है मेरी
सोचा कह दूं हाल-ए-दिल तड़प अच्छी नहीं होती
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https://youtu.be/Zzlep7C0bpw

Saturday, 12 September 2020

वो ज़माना और था | Wo Zamana aur tha | وہ زمانا اور تھا



अब तो सरे-राह क़ायम होते हैं रिश्ते
वो शर्मो-हया में डूबा ज़माना और था

बस नुमाईश अदा होती है अब ख़ुदा परस्ती की
गुमनाम उसकी राह में लुटाना और था

इंसानियत में आजकल गरज़ नज़र आती है
कभी इंसान का इंसान के काम आना और था

वादों से मुकरने का 'सत्यं' रिवाज़ बन
बे-फ़र्ज़ भी अंज़ाम का ज़माना और था

आज भूल के वो खुद को झोली फैलाते हैं
कभी खैरात बाँटा किए वो ज़माना और था

कर काबू खुद पे के शमशीर हो या जबां
कभी बात का बात से बन जाना और था
 
दे दो जगह उसूलों को सीने में संभल जा
यह ज़माना और है, वो ज़माना और था

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https://www.youtube.com/watch?v=xHQau9xcCJo




10 शेर | Best Sher ever from Diwan E Satyam



हर कोई रखता है ख़्वाहिश एक बार उनको देखकर
खुदा करे बार-बार अब उनकी दीद हो

तमाम कोशिशें बेकार ही रही संभल पाने की
जब डूब गए हम तेरी आंखों की गहराई में

शायद मेरी हसीना मेरे सामने खड़ी है
इक मौलवी ने कहा था वो मगरूर बड़ी होगी

मुद्दत हुई उनके पहलू से जुदाई मेरी
एक ज़माना था निग़ाह भरकर देखा किए

ग़र होती ख़्वाबों पे हुकूमत अपनी
तो हर शब तेरा दीदार मैं करता

नादां भी बड़ी-बड़ी चीज़ चुरा लेते हैं
दिल के साथ-साथ नींद उड़ा लेते है

हमने ही ना चाहा हासिल तुझे करना
वरना दिल में ठान लेने से क्या कुछ नहीं होता

मानकर उसकी बात मैं दूर चला आया
पर तजुर्बा नहीं ज़रा ख़्वाहिशों को मिटाने का

मेरे दुश्मन ही नहीं एक मुझको ग़म देते हैं
अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा

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आखिर क्यों? | Aakhir Knon? - ग़ज़ल/Ghazal



कल तक जो डाला था अपने प्यार का साया 
आज मेरे जिस्म से सिकोड़ती क्यों हो?

वादा किया था ये जां अमानत है तुम्हारी
फिर आज अपने वादों से मुंह मोड़ती क्यों हो

भरोसा दिया था हर मंजिल साथ जाने का
बीच रास्ते में लाकर छोड़ती क्यों हो?

जिसने लगाया गले से उसे मौत ही मिली
ग़म से मेरा नाता तुम जोड़ती क्यों हो?

मालूम है तुम्हें भी बहुत दर्द होता है
मेरा दिल बार-बार फिर तोड़ती क्यों हो?

Friday, 11 September 2020

एक हसीना | Ek Haseena - कविता/नज़्म/Nazm/Poem

मुझको मिली इक हसीना
वो जाड़े का था महीना
उसने कसकर मेरा सीना
कहां छोड़ जाना कभी ना

मौसम भी था कमीना
मुझको आने लगा पसीना
 उसे आगोश में ले -यूं बोला
"रज़ा कहो ना?"

मेरे बाज़ुओं से ख़ुद को छीना
और कहती रही अभी ना
मेरा ज़वाब था -
"तो फिर कभी ना"

अब मौजों में था दिल शफ़ीना
कश्मकश में थी वो हसीना
यूं बोली - "मेरे दिलबर!"
'मुझे बाहों में ख़ुद लो ना'

उसका शाने से लिपटकर रोना
मैं भूल पाया अभी ना
अब छोड़ घर का कोना
उसे मांगूंगा जा मदीना
 
मुझको मिली एक हसीना...
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Best Sher ever from Diwan E Satyam




पूछता जो खुदा तेरी रजा क्या है
तो सबसे पहले तेरा नाम मैं लेता

कई बिगड़े मुक़द्दर मैंने संवरते देखें हैं
बाखुदा अपनी मोहब्बत का साथ पाकर

कितने नादान हैं वो हम पे मरते हैं
बेरुखी को भी मेरी सादगी समझते हैं

कलियों ने भी जब गले का हार बनाना चाहा
तो शर्त हमने भी कल सहर की रख दी

फुर्सत में तुम पे कोई नग़मा लिखेंगे
कई बार तहे दिल से सोचने के बाद

कई रात हमने आंखों में गुज़ार दी
के तेरा ख़्याल आए तो दूजा ना हो कोई

ख़्वाबों की दुनिया में तो जीना है मुमकिन
कोई बात ऐसी कर जो हक़ीक़त बयां करें

क्या दूं अब तुमको मिसाले मोहब्बत
किसी का आंखों को जचना ही प्यार होता है

तेरे दीदार में कोई बात है शायद
लड़खड़ाता है जिस्म मेरा इज़ाज़त के बिना

कुछ इस कदर खोया हूं तेरी उल्फ़त में सितमगर
कोई कर रहा हो तहे-दिल से खुदा की इबादत जैसे
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Thursday, 10 September 2020

प्यार और आकर्षण | Love and Attraction - लेख/Article

किसी भी लिंग का सामान व विपरीत लिंग के प्रति झुकाव प्यार या आकर्षण कहलाता है किंतु वैचारिक दृष्टि से ये दोनों ही अवस्थाएं अलग-अलग होती हैं।

आकर्षण- आकर्षण एक ऐसी अवस्था जिसमें कोई व्यक्ति किसी दूसरे के प्रति उसकी किसी शारीरिक- जैसेः रंग-रूप, आंख, चेहरा आदि अंगों पर आकर्षित होता है। मानसिक- जैसेः कला, युक्ति, तर्क या कूट शक्ति आदि। व्यवहारिक- जैसेः बर्ताव, बातचीत का ढंग, आदर-सम्मान, अनुशासन आदि। शैक्षिक- जैसेः कलाकारी, पढ़ाई या अन्य किसी विषय में उपलब्धि आदि चीजों की तरफ आकर्षित होता है, आकर्षण कहलाता है। यह सदैव सीमित होता है और कुछ हद तक ही बढ़ सकता है।यह सच्चा व स्थाई नहीं होता। यदि किसी कारणवश आकर्षक व्यक्ति की प्राप्ति नहीं हो पाती है तो आप उसके विषय में गलत विचार करने लगते हैं और लोगों के सामने उनकी बुराई भी करते हैं। यदि आपका बर्ताव भी ऐसा ही है तो समझ लें कि वह आकर्षण ही है, और कुछ नहीं।

आकर्षण संवेगिक उद्दीपनों के बहाव में आकर व्यक्ति द्वारा जल्दबाजी में लिया गया कोई निर्णय है।

प्यार- वैसे तो प्यार की शुरुआत हमेशा आकर्षण से ही होती हैं। प्यार वह अवस्था है जिसमें हम किसी व्यक्ति को स्वयं के बराबर या उससे अधिक सम्मान या आदर देते हैं, और खुद से ज्यादा उसकी परवाह या चिंता करते हैं। प्यार में व्यक्ति पूजनीय होता है और प्रत्येक स्थिति में श्रेष्ठ भी होता है। प्यार सदैव असीमित होता है। सच्चा प्यार हमें अपनी सीमाओं में बांधे रखता है। प्यार करने वाले व्यक्ति को ठीक से कभी यह पता ही नहीं होता कि जिससे वो प्यार करता है वो उसे क्यों पसंद है? यदि सच्चा प्यार किसी कारणवश आपको नहीं मिल पाता है तो भी आप उनका भला ही चाहते हैं क्योंकि आप अपने प्रिय व्यक्ति को कभी भी दुखी गवारा नहीं करेंगे। आप उनका सदैव सम्मान करते रहेंगे और वो हर अवस्था में आपको याद आता ही रहेगा।

प्यार सुनने में छोटा सा लगता है किंतु अहसास में यह संसार से भी बड़ा है। यहाँ जो लिखा सो लिखा, किंतु मैं बता दूँ कि प्यार को यूँ चंद शब्दों से कभी भी परिभाषित नहीं किया जा सकता और ना ही इसे किसी पैमाने पर नियत किया जा सकता है।

2 और 4 लाइन शायरी | Best Sher ever (Diwan E Satyam)




एक रोज़ मेरी ज़िंदगी में वो भी शरीक थी
वो चाहत बनके मेरे दिल के करीब थी
मैं समझा था मोहब्बत में मिलेंगे हसीन पल
नज़दीक से देखा तो जुदाई नसीब थी

क्या पाते हो मुझको सताकर
क्या मिलता है तुम्हें यूं दूर जाकर
एहसास होगा दिल में लग जाएगी जिस दिन
कैसा लगता है किसी के दिल को दुखाकर

तू बेरुखी ना करना चाहत ना दे सके ग़र
दूर से ही तुझे प्यार मैं कर लूंगा
ग़र लिखा है खुदा ने इंतज़ार मेरी किस्मत में
तो उमर भर तेरा इंतज़ार मैं कर लूंगा

हम बेखुदी में, जिसको सज़दा रहे करते
कभी गौर से ना देखा, पत्थर का बुत है वो

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दो पहलु का मौसम | Do Pahlu Ka Mausam - नज़्म/Nazm




यह दस्तूर है कुदरत का, एक सिक्के के दो पहलू
कहीं जान देती है गोली, कहीं जान लेती है गोली

ऐसा नहीं, हर वक़्त हमारी किस्मत साथ दे
कहीं बात बनाती है बोली, कहीं बात बिगाड़ती है बोली

बंद आंखों से, नक़ाबी दुनिया का भरोसा ना करो
कहीं राज़दार हैं हमजोली, कहीं गद्दार है हमजोली

इन दिनों, दुनिया का अजब रिवाज़ है
कहीं बहन है मुंह बोली, कहीं बीवी है मुंह बोली

अब तो खुदा से भी, मंगतो को डर नहीं लगता
कहीं इंसाफ़ की है झोली, कहीं पाप की है झोली

मौसम बदल चुके 'सत्यं', बेफ़िक्र ना मिला करो
कहीं आराम है कोली, कहीं बदनाम है कोली

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Wednesday, 9 September 2020

4 लाइन वाली शायरी | Best Sher ever (Diwan E Satyam)

 

वो रहे खुदा सलामत एहसान इतना कर दे
दूर से ही सही दीदार का इंतज़ाम कर दे
तू डाल दे ज़माने की खुशियां उनके दामन में
बस सारे रंजो-ग़म एक मेरे नाम कर दे
 
फिज़ूल ही झुकाए कोई नज़रों को अपनी
अनोखा अंदाज़ झलक ही जाता है
कितना ही संभाले कोई जवानी का जाम
मोहब्बत का कतरा छलक ही जाता है
 
तेरी सूरत हमने पलकों में छुपा रखी है
बीती हर बात दिल में दबा रखी है
तू नहीं शामिल मेरी ज़िंदगी में तो क्या
तेरी याद आज भी सीने से लगा रखी है
 
कईं बहारें आई आकर चली गई
मेरे दिल के आंगन में कोई गुल नहीं खिला
हाले-दिल सुना सकता मैं जिसके सामने
मुझको पहले आप-सा बस दोस्त नहीं मिला
 
मैं ज़िंदगी में थक के चूर हो गया हूं
हालात के हाथों मजबूर हो गया हूं
एक ख्वाहिश थी तेरे नज़दीक आने की
पर किस्मत से बहुत दूर हो गया हूं
 
थामा है मेरा हाथ तो छोड़ ना देना
रास्ता दिखा के प्यार का मुंह मोड़ना लेना
तुम्हें देखता हूं मैं जिसमें सुबह-शाम
मेरे विश्वास के आईने को तोड़ ना देना
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मुर्दे के लफ्ज़ | Murde Ke Lafz - नज़्म/Nazm




मैं थक के सोया ही था सुकून से दो-पल
वो सब मुझको उठाने चले आए ।

ज़िंदगी रहते तो मेरा हाल तक ना पूछा 
मैं मिट्टी हो गया जब गले लगाने चले आए ।

आज रो रहे हैं सुबक कर लिपटकर गले मेरे
लोग कुछ अपने, पराए चले आए ।

मौत ने मुझको सबका अज़ीज़ बना दिया
दुश्मन भी दो आंसू आंखों में लिए आए ।

तरस रही थी आंखें जिन्हें देखने को
आंखें बंद होने पर मौत के बहाने चले आए ।

बिखर रहा था घरौंदा मेरा तिनके-तिनके
रुख़सत करने कम-से-कम सारे चले आए ।

जागती आंखों से कुछ साफ़ दिखाई ना दिया
कफ़न ओढ़कर ही सोए अज़ब नज़ारें चले आए ।

अब वो याद करें या भुलाए इन बातों में क्या रखा
छोड़कर हम सारे अफ़साने चले आए ।

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Tuesday, 8 September 2020

उनकी शायरी | Unki Shayari | Best Sher ever from Diwan E Satyam



चल ले चल हाथ पकड़ कर मुझको दर खुदा के
काफि़र था मैं जो बेखुदी में सज़दा उसे किया

हर ख़्वाहिश मेरी दिल में ही पलती रही
हर रोज़ ज़िदगी भी बस उम्मीद पे चलती रही

कई शाम हमने चरागों को देखा है देर तक
कभी टिमटिमाते हुए कभी मुस्कुराते हुए

एहसानमंद हूं ए खुदा अपने दोस्त का
देखकर उसका चेहरा ही तू याद आता है

जिंदगी है कांटो की राह फूल भी मिल सकते हैं कहीं
चलता जा-चलता जा दिल में यही आश लिए

मालूम है घर की दहलीज़ उन्हें लेकिन
ज़िद पे अड़े हैं कोई उनको पुकार ले

कल रात तेरी याद ने कुछ इस कदर सताया
के आज सुबह हम देर तक सोए

वो बेरुखी करते हैं मेरे दिल से जाने क्यों
जिन्हें करीब से तमन्ना देखने की है

जिनका घर है दिल मेरा वो दूर जा बैठे
भला कैसे किसी अजनबी को मैं पनाह दूं
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मैं परेशां बड़ा हूं | Kyon Juda Hue - ग़ज़ल




बिछड़ा था तुमसे जहां उसी मोड़ पे खड़ा हूं
कैसे चलूं तेरे बगैर, मैं परेशां बड़ा हूं

जहां नज़र को चुराया था तूने मेरी नज़र से
बचाया था दामन ज़माने के डर से
मैं उसी मोड़ पे निग़ाहें गाड़े खड़ा हूं
कैसे चलूं तेरे बगैर, मैं परेशां बड़ा हूं

ख्वाहिश भी ना रही कोई तेरे बगै़र
दिल बोझिल रहता है शामो-सहर
मैं आज भी अपने वादों पे अड़ा हूं
कैसे चलूं तेरे बगैर, मैं परेशां बड़ा हूं

आंखें भी थकने लगी राह में तेरी
मोहब्बत चाहती हैं अब पनाह तेरी
आओगी इसी तमन्ना के सहारे खड़ा हूं
कैसे चलूं तेरे बगैर, मैं परेशान बड़ा हूं

शक है तुम मगरूर हो गए, दिल गवाही नहीं देता
ज़ालिम कहता है बेवफ़ा का दर्जा नहीं देता
तेरी सारी गलतियां भुलाए खड़ा हूं
कैसे चलूं तेरे बगैर, मैं परेशां बड़ा हूं

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Monday, 7 September 2020

कुछ दिलकश शेर | Kuchh Dilkash Sher



मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का
तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता

हर रोज़ गुजरे हम मुश्किलों के दौर से
इन ख्वाहिशों ने शौक अपना मोहब्बत बना दिया

मैंने चंद रोज़ में देखे हैं कई मोड़ अनजाने
गुजरी है ज़िंदगी कई दौर से मेरी

ख़बर नहीं मुझको जो बात सताती है
बस बेखुदी में बेवज़ह दिल उन पे आ गया

पैदाइशी शौक है ख़तरों से खेलना
होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली

कुछ देर अपने दामन की छांव में ले ले
मैं ज़िंदगी के सहरा में भटका हूं बहुत दूर

ये ख्वाहिश लिए दिलों पे होगी हुक़ूमत अपनी
दौरे-शामत से गुजरे इस कशमकश में घिरकर

खुशनशीब हैं जो इसमें सुकूं पाते हैं
वरना मोहब्बत को आता नहीं ग़म देने के सिवा

इन दिनों गर्दिश में है सितारे अपने
वरना एहसान बांटे हैं बहोत खै़रात में हमने

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ए बेवफा | E Bewafa - ग़ज़ल




कल तक जो मेरे दिल को कहता रहा ठिकाना
आज इस जगह को सुनसान मानता है

बेखबर हूं उनको क्यों नफरत सी हो गई
वो दूर रहने का मुझसे एहसान मांगता है

कल तक जो मुझे खुद की पहचान कहता था
वही अब मुझसे मेरी पहचान मांगता है

वो भी तो उल्फ़त में बराबर का था शरीक़
फिर क्यों हरशख़्स उन्हें नादान मानता है

तोहीन मेरी खुलकर सरेआम जिसने की
हर कोई उन्हें दिल का मेहमान मानता है

तोहमत भी बेशुमार लगाई हैं, बेझिझक
जिस वज़ह से हर कोई मुझे बदनाम मानता है

कैसे सुबूत दूं अब अपनी बेगुनाही का
हमराज भी अब मुझको अनजान मानता है

एक दोस्त को ही फकत क्यों कह दूं फ़रेबी
अब तो सारा ज़माना मुझको अजनबी मानता है

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Sunday, 6 September 2020

चार लाइन वाली शायरी | Chaar Line wali Shayari | Best Sher ever (Diwan E Satyam)




ए इलाही मुझपे इतना तो करम कर
ना दे सज़ा बेजुर्म बेबस पे रहम कर ।
फक़त प्यार में डूबा हूं कोई गुनाह नहीं
है नाम तेरा ही दूजा इतनी तो शरम कर ।।

नामुमकिन सपने झूठा उनका प्यार दिया
धोखा खाया जो उन पर ऐतबार किया ।
तू जानता था ए खुदा वो मेरी किस्मत में नहीं
फिर क्यों मजाक ऐसा मेरे साथ किया ।।

हवा को रुख मौसम को रंग बदलते देखा
चूर दिल को शोलें सा जलता देखा ।
गिर जाता है जो इक बार इश्क की राह में
नहीं फिर उसको 'सत्यं' सम्भलते देखा ।।

प्यार का एहसास खुद में विश्वास
दर्द दिल में क्यों उनका दिया ।
तू जानता था खुदा वो मेरी किस्मत में नहीं
फिर क्यों मज़ाक ऐसा मेरे साथ किया ।।

हर तरफ फिज़ा में तेरा नाम लिखा है
मेरे लिए मोहब्बत का पैगाम लिखा है ।
मिटा ना देना ये गुज़ारिश है दोस्त
मैंने दिल के हर कोने में तेरा नाम लिखा है ।।

हर तमन्ना मेरी मचलती है
बातें साया बनकर चलती है ।
सुलगता है दिल मेरा घनी ज़ोर से
जब तेरी यादों की हवा चलती है ।।

ए खुदा ये हसरत मेरी साकार तू कर दे
उनके दिल में मेरी तड़प का एहसास तू कर दे।
जल उठे उनका दिल भी याद में मेरी
इस कदर कोई करामात तू कर दे ।।

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ऐसा काम न कर - ग़ज़ल











आगाज तो कर रास्ता-ए-मंजिल पे
किसी का साथ आने का इंतजार ना कर

ना रास्ते में सता सके आंच यादों की
बेइन्तहां तू किसी से प्यार ना कर

किसी भी मोड़ पे तेरे काम आ सकता है
किसी शख्स से भरी दुनिया में तकरार ना कर

तू याद आए तो मुंह से बद-दुआ निकले
इस जहां में अदा ऐसा किरदार ना कर

इक दिन बुला लेता है खुदा सबको पास
उनके दूर चले जाने का गुबार ना कर

होती है वैसे तो सच्चाई बहुत कड़वी
कुबूल करने से इसको इंकार ना कर

तू हो जाए बेबस उनके करीब जाने को
अपने दिल को इस कदर बेकरार ना कर

तेरे नसीब में होगी तो मिल ही जाएगी
उनकी मोहब्बत से खुद को बेजार ना कर

करके जफ़ा, वफा के बदले
अपनी नज़़र में खुद को शर्मसार ना कर

खुदा भी जिसे ना माफ कर सके
खता ऐसी 'सत्यं' हर बार ना कर

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Saturday, 5 September 2020

दर्द भरी शायरी | Best Sad Sher ever




मैंने ज़माने की हर शय को बदलते देखा है
इक तेरी याद के मौसम के सिवा

कैसे निकालूं दिल से बता तुझें सनम
मैंने तो दर आये को भी गले लगाया है

क्या सुनाए तुमको दास्ताने-दिल
जीये जा रहे हैं ख़्वाहिशों के सहारे

क्यों लगाये मैंने ख़्वाहिशों के मेले
मालूम था जब ख़्वाब हक़ीक़त नहीं होतें

एक रोज़ उन्हें मांगेंगे दुआ कर खुदा से
फ़िलहाल लुत्फ़ उठा रहा हूं इंतज़ार का

मत मार पत्थर पे अपना सिर सत्यं
चोट पहुंचेगी तुझे दर्द होगा बहुत

वक़्त गुज़ार लूंगा किसी भी मुकाम पे
मग़र होगी बड़ी दिक्कत शाम के ढ़लते
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Friday, 4 September 2020

नामुमकिन है आसान नहीं







मिले प्यार तुम्हारा जीवन में
कोई इसके सिवा अरमान नहीं
तुम्हें भूल जाना मेरी प्रिय
नामुमकिन है, आसान नहीं

तुमसे जुदा हुआ जब से
मेरी रही जान में जान नहीं
एक तेरी कमी से बरसों से
मेरे होठों पर मुस्कान नहीं

मैंने देखा जंमाने को दूर तलक
कोई तुम-सा मिला इंसान नहीं
मुझे जीना सिखाया पल-पल को
क्यों कह दूं तुम्हें भगवान नहीं

तू देख ले आकर मेरे सनम
बिन तेरे, मेरी पहचान नहीं
तुझसे बिछड़कर जीना जैसे 
बेबसी है मेरी, अरमान नहीं

Thursday, 3 September 2020

इतना काम तो कर - ग़ज़ल




तू देखकर चेहरा ना पहचानेगी मुझको
कभी दिल के करीब आ बात तो कर

तू साथ दे ना दे मेरा कोई बात नहीं
पर मेरी मोहब्बत का ऐतबार तो कर

प्यार में हद कर दी आपने चुप रहकर
चंद सवाले-हाल मेरे साथ तो कर

मायूस ना हो जाऊं इस खामोशी पे तुम्हारी
कुछ मेरी मोहब्बत का हिसाब तो कर

संगदिल कहे तुम्हें जमाना मंजूर नहीं
इस कदर रुसवाई मोहब्बत की सरेआम ना कर

डरता हूं तुझे दूर करते आंखों से
कुछ सफर तय मेरे साथ तो कर

हो जाएंगी सब आरजू पूरी मेरी
चंद पल मुझसे तू प्यार तो कर

थाम लेंगे उम्रभर ये विश्वास दिलाते हैं
हिम्मत करके आगे अपना हाथ तो कर

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Best Sher ever (Diwan E Satyam)




तेरी तस्वीर में और तुझमें इतना ही फ़र्क है
तू रूबरू होती है तो दो बात होती हैं

खु़दा ने ही बख़्शी है रुसवाई मेरे मुक़द्दर में
वरना सितमग़र कोई मासूम नहीं होता

मालूम है के दिल सभी के पास होता है
फिर क्यों अपनी ही तड़प का एहसास होता है

तुम सज़दा करो उसे लिहाज़ ना हो ग़र ये मुमकिन है
फिर कैसे किसी बुत को तुम खु़दा बनाते हो

फट चुका पन्ना ए ऐतबार किताबे-उल्फत से
टूट चुकी कलम जो किसी की शान में लिखती थी

गुजरा किए हम राह से यह ख़्वाहिश लेकर रोज़
आज तो किसी सूरत उनसे मुलाक़ात होगी

कुछ इस क़दर उलझा दराज़ मुसीबत 'सत्यं'
के लोग मुझें दीवाना समझ बैठें

तुम भी तोड़ दो दिल मेरा जाओ खुश रहो
दर्द में ही पला हूं अब एहसास नहीं होता

शायद मिल रही है सज़ा मुझे उस कुसूर की
तोड़ा था मैंने दिल एक बेबस ग़रीब का

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Wednesday, 2 September 2020

तुम्हें दिल में बसाया तो जाना है - कविता









कितनी हंसी है यह जिंदगी
तुम्हें दिल में बसाया तो जाना है
कैसे कहूं मेरी प्रिय
तुम्हें क्या कुछ मैंने माना है
तुम्हें क्या कुछ मैंने मना है ... ... ...

हर पल तुम्हें चाहा पूजा
ना कोई दूसरा दिल में लाना लाना है
हासिल करने की ख्वाहिश है जिसे
बस तू ही तो वो खजाना है
तुम्हें क्या कुछ मैंने मना है ... ... ...

कोई देखे तुम्हे देर तक तो
मुमकिन मेरा जल जाना है
कोई बात भी करे तुमसे तो
मेरे बस में नहीं सह पाना है
तुम्हें क्या कुछ मैंने मना है ... ... ...

अपनी सारी खुशियों को अब
तुम पर ही लुटाना है
मेरी आरजू है यह बाकी
तुम्हें जिंदगी में लाना है
तुम्हें क्या कुछ मैंने मना है ... ... ...

मुस्कुराती कोई कली हो तुम - कविता




हर कोई तुम में खो जाता है
प्यार की जैसे छवि हो तुम
खुशबू सी बिखरती है बातों से
मुस्कुराती कोई कली हो तुम

प्यार सी प्यारी हो
प्यार से मिलकर बनी हो तुम
क्षण भर में मन लुभाती हो
स्वर्ग कोई परी हो तुम

यूं दिल में घर कर जाती हो
सदा से जैसे आवासी हो तुम
भीग जाते हैं सबके मन
जब हंसी अपनी बरसाती हो तुम

सब बेबस से हो जाते हैं
क्या जादू कर जाती हो तुम
कितना भी कोई संभाले खुद को
बस आकर्षित कर जाती हो तुम

खुशबू सी बिखरती है बातों से
मुस्कुराती कोई कली हो तुम

Tuesday, 1 September 2020

तू ही बता क्या यार कहूं? - कविता




हंसती कली या कोई परी
फूलों की महक या प्यार कहूं
हर शब्द मुझे छोटा सा लगा
अब तू ही बता क्या यार कहूं

और भी बहुत से चेहरों को देखा
क्या तुम्हें ही सारा संसार कहूं
हर तरफ नज़र आती हो मुझे
उड़ती हवा या बहार कहूं

खुशी की तरह बसी हो मन में
क्यों खुद को फिर मैं उदास हूं
तुम्हें देखकर खुश होता है दिल
क्या मन में बसा विश्वास कहूं?

नित-दिन मेरे मन-आंगन में आती हो
तुम्हें स्वप्न या सलोना सा अहसास कहूं
बढ़ती जाती हो पल-पल जो
क्या इन आंखों की प्यास कहूं

नाराज ना हो जाना मुझसे
तुम कहो तो मैं एक बात कहूं
खूबसूरत बहुत हो बातों से
रंग-रूप में बस इंसान कहूं

प्रिय मेरा अरमान हो तुम - कविता




मासूम चेहरा नीची निगाहें
प्यार की पहचान हो तुम
बरसों से जगा है जो दिल में
प्रिय मेरा अरमान हो तुम

जब प्यार तुम्हारे भी दिल में है
क्यों मुझसे फिर अनजान हो तुम
नज़र चुराती हो ऐसे
जैसे कोई नादान हो तुम

एक तुम्हें ही दिल में बसाया है
हां इस दिल की मेहमान हो तुम
जिसे देख सभी खो जाते हैं
वही प्यारी सी मुस्कान हो तुम

खुदा ने किया था जो एक रोज़ 
मुझपे वही एहसान हो तुम
जिसे ख्वाहिश है पा लेने की
मेरा खोया हुआ जहान हो तुम