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Showing posts from November, 2025

सर्दी पर शायरी | जाडे पे शेर शायरी

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इस बार की सर्दी हिज्र में ऐसी कट रही है मैं यहाँ तप रहा जुदा वो वहाँ तप रही है अबकी बार मौसम में क्या तब्दीली आई है बाहर सर्दी कड़ाके की, अंदर गरमी छाई है कड़ी सर्दी, तेरी फ़िक्र और मेरा दिल टूटना हर मौसम मेरे ख़िलाफ़ है, ख़ुदा ख़ैर करे उम्मीद थी कि अगले बरस बना लेगा रज़ाई अपनी, वो शख़्स सर्दी से लड़ा पर महँगाई से मर गया। यूँ तो जायज़ है मेरे जिस्म की ये कंपकंपाहट, ‘सत्यं’, एक तो सर्दी बहुत है और सामने वो भी खड़ी है। यह आलम शहनाई का होता तो अच्छा होता, हिसाब जज़्बात की भरपाई का होता तो अच्छा होता। कमबख़्त कंबल की आग भी अब तो बुझने लगी है, इस सर्दी इंतज़ाम रज़ाई का होता तो अच्छा होता।

अंबेडकर साहब के परिनिर्वाण पे शायरी | Baba Sahab Ambedkar Ji ki Shayari

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दुनिया में कहीं ऐसा नज़ारा न हुआ, बे-सहारों का कोई सच्चा सहारा न हुआ। बाबा बहुत आए इस ज़माने में मगर, बाबा भीम जैसा कोई दोबारा न हुआ। खुदगर्ज़ बड़े हैं लोग जो एहसान भूल गए, हर क़ौम की खातिर दिया जो बलिदान भूल गए। आँधियों से गुज़ारिश है अपनी हद में ही रहें, बाबा साहब की क्या आँख लगी औक़ात भूल गए वो शख़्स हमें सदियों की मिसाल दे गया, संविधान रचा, समता की मशाल दे गया। नींद से उठा वो फ़रिश्ता तूफ़ान की तरह, और सारी बलाएँ अपने साथ ले गया। मेरी उस निशानी को अपनी जान समझ लेना, हिफ़ाज़त करना उसकी यही ईमान समझ लेना। क्यों रोते हो मेरे बच्चों, मैं गुज़रा नहीं अभी तक, गर संविधान बदले तो मुझे बेजान समझ लेना। दुश्मन की साज़िश को उसने नाकाम कर दिया, जो भी आया पनाह में, उसे माफ़ कर दिया। ना शमशीर उठाई, ना भीम ने खंजर उठाया, बस इल्म की ताकत से हर इंसाफ़ कर दिया। कुछ फ़रिश्ता कहते हैं उनको, कुछ मसीहा कहते हैं, सबका अपना बड़प्पन है, सब बड़प्पन में रहते हैं। छुपकर भी न छुपने वाला वो सूरज एक ऐसा उगा, जिसको अदब से दुनिया वाले ‘बाबा साहब’ कहते हैं। तेरी नापाक साज़िश और इरादे को समझ रखा है, बड़ी ग़लतफ़हमी मे...

Sher 11

मोहब्बत में हार गया तुझे तो क्या, अभी आधी दुनिया मेरी तलाश में है। उससे इक-तरफ़ा मोहब्बत का सिला यूं मिला यारों, अज़िय्यत, शर्रिय्यत, फ़ज़ीहत मिली और तो कुछ भी नहीं। न शराफ़त उसने छोड़ी, न जिस्म की नुमाइश की, एक दौलतमंद ने हरगिज़ न दौलत की आज़माइश की। उसने मेरी वफ़ा का तमाशा बना दिया, मैं समझा कि मोहब्बत महफ़ूज़ हाथों में है। मालूम है मेरे दिल की दहलीज़ तक उसे, लेकिन अड़े हैं ज़िद पे कि हम पुकार लें उसे। कल जितनी गरमी थी, आज उतनी ही नरमी है, वो दौर बहाव का था, ये दौर ठहराव का है। मेरी ख़ुश्क आँखों ने बदलता दौर देखा है, हमने कुछ और देखा था, तुमने कुछ और देखा है। उफ़! मोहब्बत भी बहुत मजबूरियों का सौदा है, हर सूरत दिल को दिल से बदलना पड़ता है। इस तरह से लोग अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं, बातों से पेट भर रहे हैं, आँसू पिला रहे हैं। हम शायरों को पेड़ गिनना भी जरूरी है  हमारी हदे सिर्फ आम खाने तक तो नहीं

Sher 11 ना-खुदाई (मुकम्मल)

ना काफ़िर हूँ, ना जन्नत का त़ालिब हूँ मैं, एक कलंदर हूँ, अपने दिल का मालिक हूँ मैं बात जब से उस से बनी है, ज़माने से तनातनी है, मैं भी हूँ वफ़ादार उस से, वो भी सनातनी है।

Ghazal 5 (मुकम्मल)

ता’उम्र को मिला ज़ख़्म निशानी की तरह, मैं ख़ून था जो बहा दिया पानी की तरह। मैंने साथ रहने की अपनों से मिन्नतें की, वो बात भी करते थे मेहरबानी की तरह। चाहे जितना भी तुम अहम किरदार बनो, तुम्हें भुला दिया जाएगा कहानी की तरह। मिट्टी को मिलना है इक दिन मिट्टी में, ग़ुरूर भी ढल जाएगा देख जवानी की तरह। फिर उससे तर्क-ए-त’अल्लुक़ ठीक नहीं, याद रखना है अगर बात पुरानी की तरह। मुझे छोड़कर अब ग़ुर्बत में गुज़ारा करती है, जो मुझ पर हुकूमत करती थी रानी की तरह। तू भी दुनिया के रंग मुझे दिखाने लगी, मैं छोड़ दूँगा तुझे अब दिवानी की तरह।

Sher 10 (मुकम्मल)

तबीयत मचल रही तो इज़हार कर, चारासाज़ी छोड़, किसी से प्यार कर। उससे इश्क़ है तो छुपाना कैसा, पर्दा गुनाहों पे रख, इबादत पे नहीं। प्यार की बस यही एक शर्त होनी चाहिए इंसाँ को इंसाँ की पहचान होनी चाहिए यह बात जुदा है, वो अब नहीं आएँगे, पर दिल की इल्तिजा है, थोड़ा इंतज़ार कर। मैं सितारों से सरगोशी करता हूं, जुगनुओं को रातभर खलता हूं। न देखो मुझे इतना गौर से यार मैं आंखों पर असर करता हूं। जिससे भी मोहब्बत मुझे हो जाती है, वो मेरी जान से ज़ियादा हो जाती है। मैं अपनी नज़र से उसे गिरता नहीं, जो मेरी हो जाती है, मेरी हो जाती है। उसके सच झूठ में बदलने लगे, सोचते ही आँसू निकलने लगे। वो बेवफ़ा करता था वफ़ा की बात, आज सोचा तो दम ही निकलने लगे। कई दर्द से हर रोज़ उभरती हूँ मैं, कई आँखों से बचकर निकलती हूँ मैं। मैंने चाहा था जीना अपने तौर से, ना-मर्जी मगर राह बदलती हूँ मैं।