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सबके कर्ज़ उतारे जा रहे हैं कुछ बे-फ़र्ज़ उतारे जा रहे हैं 22 21  122  2122 अपने हाल गर्दिशों में है यारों उनके नसीब संवारे जा रहे हैं खुदगर्ज़ बड़े हैं लोग जो एहसान भूल गये हर शख़्स की ख़ातिर दिया जो बलिदान भूल गए आंधियों से गुज़ारिश है अपनी हद में रहें पल भर हमारी क्या आंख लगी औकात भूल गए यह रखना याद मुनाफ़े की तिजारत के वास्ते इश्क़ की नई दुकानों पे कीमत सस्ती होती है ना दिखाया करो डर सैलाबों का सरफ़रोशों को हमारे हौसले से ज़्यादा धार नहीं तुम्हारी तलवार में उसने अपनी चाहत का इज़हार जो किया अधूरी मेरी एक ग़ज़ल मुकम्मल हो गई मेरी उम्मीद पे मेरे अपने ही खरे उतरे है ग़ैर क्या पता मैं किस तरह बहलाता हूं 

Romantic Shayari (Double)

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झूठ नहीं कहता कईं मोहब्बत मैंने की हासिल की उम्मीद ना रखी बस दिल तक ही रही मैंने फिराई थी यूं ही रेत में उंगलियां ग़ौर से देखा तो तेरा अक़्स बन गया कमबख्त़ रात को भी चिढ़ तुझसे हो गई बैठू जो सोचने ढ़ल जाती है तावली मुक़द्दर ही मेरा खराब है शायद वरना खुशनसीब वो हैं जो उनके करीब हैं मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता यह पैग़ाम आया ख़ुदा का मुहब्बत कर ले 'सत्यं' अब क्या कुसूर मेरा जो दिल उन पे आ गया यह कैसे मुकाम पर हम आ खड़े हुए तुम्हें दिल में बसाकर भी तन्हा से लगते हैं यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया के क़त्ल भी ना किया और ज़िंदा भी ना छोड़ा तुम   बैठी रहो देर तक  मेरी नज़रों के सामने आज मेरा मन है बहुत मदहोश होने का वो बेरुखी करते हैं मेरे दिल से जाने क्यों जिन्हें करीब से तमन्ना देखने की है जिनका घर है दिल मेरा वो दूर जा बैठे भला कैसे किसी अजनबी को मैं पनाह दूं पूछता जो खुदा तेरी रजा क्या है तो सबसे पहले तेरा नाम मैं लेता तेरे दीदार में कोई बात है शायद लड़खड़ाता है जिस्म मेरा इज़ाज़त के बिना तमाम कोशिशें बेकार ही रही संभल पाने की जब डूब गए हम ...

समंदर से भी यार यारी रखा करो (Ghazal)

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समंदर से भी यार यारी रखा करो या उस पार जाने की कोई तैयारी रखा करो घर जाओ तो आईना जरूर देखना अपनी भी थोड़ी जिम्मेदारी रखा करो संभलकर उडो आसमानों की ऊंचाई पर श्येन से भी अपनी पहरेदारी रखा करो पेड़ लगाए हैं तो पत्थरबाज़ों से रहो होशियार कच्चे फलों पे भी थोड़ी निगरानी रखा करो हमें यह पता चला तो चला के वो बेवफा है आईने तुम ना इस कदर जी भारी रखा करो घर के अंदर दग़ाबाज़ भी दुश्मन से काम नहीं चिरागों पे अपने रोशनी बहुत सारी रखा करो --------------------------------------- देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें

Sher (2 lines)

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ये जरूरी नहीं हर बात शक़्ल ए अल्फाज़ ही हो मोहब्बत में खामोशी भी हाले-दिल बयां करती है मय पीकर तो मेरे जज़्बात नहीं संभलते मुझसे होश में रहता हूं तो ख़ामोश बहुत रहता हूं मेरी नज़रें जब उसकी जुल्फ़ों में उलझ जाती है जागते रहते हैं रात भर, कमबख़्त नींद कहां आती है दिल बड़ा चाहिए मोहब्बत के निशां छुपाने में हर किसी से तो यह तूफान संभाला नहीं जाता तेरे चेहरे पे जज्बातों की शबनम लिपटी है  अब मैं मुहब्बत कहूं या परेशानी कहूं इसे मुहब्बत क्या है यह बीमार को पता है दवा है या ज़हर है तजुर्बेकार को पता है क्या तुमने 'सत्यं' को ख़ाक समझ रखा है इश्क़ फिर से, कोई मजाक समझ रखा है जब कभी तन्हाई में तेरी याद ने सताया मुझे बस मूंदकर आंखों को तेरी सूरत देखा किए

नक़ाब शायरी

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यूं आसान नहीं होता सच झूठ समझ पाना कईं नक़ाब पड़े हैं इक चेहरे पे आजकल कब तक मुझें पाबंदियों कि हयात में जीना होगा किस फ़र्ज़ से गै़रत के नाम जहन्नुम में जीना होगा रुख़ से नक़ाब हटाकर नज़र अंदाज़ करती हो माज़रा क्या है जो हिजाब से दीदार करती हो?

वो छोड़ गया मुझे (Nazm)

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वह जा चुका, मुझे अपनी गिरफ़्त से निकाल के हम ही उलझे हुए हैं जाल में, सिर अपना डाल के वैसे तो वो ग़ैर से भी खुलके मिलता है हम ही आदमी ना निकले, उसके ख़्याल के उसका रिश्ता फक़्त सुफ़ेद झूठ पे टिका था कैसे मुकम्मल देता ज़वाब वो, मेरे सवाल के उस बे-मुरव्वत ने बेरुख़ी की इंतिहा कर दी हम देखते रहे तमाशे, उसके कमाल के उम्रभर की चाहत का बदला हमको यूं मिला हिस्से में आए किस्से बस, उसके मलाल के अब जो मिला है तजुर्बा उसे खोकर तो ये जाना मोहब्बत में उठते हैं क़दम, बहुत देखभाल के --------------------------------------- देखने के लिए क्लिक करें

मेरे जाने के बाद | Mere jane ke baad (Ghazal)

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ये रास्ते, ये फ़िज़ाएं, यहीं रह जाएंगे, कल के लिए और रह जाएंगी मेरी यादें, मेरे जाने के बाद हमें कमसिनी में घर से निकाला गया था, बे-कसूर मेरे वालिद ने ये बताया था, जी भर आने के बाद तुम्हें आंख भरके कोई ना देखेगा, ज़माने में बहुत रुलाएंगी कुछ बातें, मां-बाप गुजर जाने के बाद अब वो बद-मिज़ाज बर्दाश्त की हद से गुजरने लगा आ गया है यह सलीक़ा उसे, बेटी घर आ जाने के बाद मैंने भी अब अपने दिल को, पत्थर का कर लिया मयख़ाना चला जाता हूं, उसकी याद आ जाने के बाद मैं अक्सर सोचता हूं, कोई ग़ज़ल अपने हालत पे लिखूं मोहब्बत ही लिख जाता है, कलम हाथ में आ जाने के बाद यह जो गुरूर है मेरा, तेरी बेरुख़ी पे टिका है उतर जाता है नशे-सा, मोहब्बत से बुला लेने के बाद उलझ-उलझ-सी गई ज़िन्दगी, सबको अपना कहते-कहते आसान बनाया है इसे, सबको औकात पे लाने के बाद पुरानी ईट सही हम के बे-कद्री से ना फेंक हमें ही अलग कर रहे हो, हमसे सर छुपाने के बाद --------------------------------------- देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें

तेरे जाने के बाद (नज़्म) Nazm

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सोचा ना था मैं बिखर जाऊंगा, तेरे जाने के बाद आज फिर याद आ रहा है तू, तेरे जाने के बाद फिर ग़म ने ली है करवट, तुझे भूलाने के बाद हम अक्सर रोते हैं तन्हाई में, तेरे जाने के बाद  सफ़र तन्हा ही है हमारा, तेरा ना आने के बाद दिन-सहरा रात-क़यामत है, तेरे जाने के बाद उठते हैं दुआ में हाथ मेरे, याद तेरी आने के बाद बिगड़ते जा रहे हैं हालात मेरे, तेरे जाने के बाद रुला गया तू उम्रभर को, एक-पल हंसाने के बाद बे-दिली ओढ़ ली है मैंने, तेरे जाने के बाद --------------------------------------- देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें

अब और क्या बाकी रहा कमाने में

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उलझी-सी एक शाम मेरी ढली है कई ज़माने में हम खोए हुए थे बरसो से उस शहर पुराने में वो जैसा भी है उसे वैसे ही क़ुबूल कर जिंदगी रूठ जाती है, बेवजह आज़माने में हमने उतरन को भी बदन पे शौक़ से औढ़ा दुनिया सुकून ढूंढ रहा थी, नए पुराने में मेरे सिरहाने पर दो चिराग कर रहे थे उजाला अंधेरे कामयाब हो गये मुझे रुलाने में गुनहगारों से भरा यह जो शहर है यहां हर-एक लगा है, दूसरे की कमी गिनाने में ये सिलसिला कोई कल की बात तो नहीं माहताब रोशन है आफ़ताब से, हर ज़माने में साहिब-ए-मसनद को गुमां है, झूठी हवाओं पे लगे हैं नादान, मुरझाएं गुल खिलाने में मैंने रिश्ते संजोए, मुक़द्दर संवारे, सबको साथ रखा अब और क्या बाकी रहा कमाने में --------------------------------------- देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें

बाज़ (शायरी)

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चंद कौऔं पे नई-नई रवानी छाई है बाज़ से उलझ रहे हैं, मौत कब्र तक ले आई है यूं ही नहीं कोई किसी से किनारा करता है बाज़ बुलंदी पे होता है तो अक्सर अकेला होता है कल मेरी उड़ान बुलंदियों को चूमेगी। अभी मैं अपने नाखूनों-परों को नोच रहा हूं।। हवा चाहे किसी भी ओर उड़े ज़माने की फ़लक की हुक़ूमत सदा श्येन के क़दमों में रहती है

ग़मगीन शायरी

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पहले मेरे दिल में वो शमां-ए-मोहब्बत जलाता रहा फिर जुनून पे मेरे कामयाबी की राह बनाता रहा जिसको लेकर गया था मैं एक रोज़ बुलंदी पर वही पल-पल अपनी नज़र से मुझे गिरता रहा वो मेरी हदे-तसव्वुर से गुजरता क्युं नहीं नशा उसके अंदाज़ का उतरता क्युं नहीं मैं हैरान हूं यूं सोचकर उसके बारे में वक़्त के साथ हुस्न उसका ढलता क्युं नहीं सारे सच उसके झूठ में बदलने लगे यह सोचकर मेरी आंख से आंसू उतरने लगे गले लगा कर करता था वो वफ़ा की बात आज सोचा तो जिस्म से दम पिघलने लगे जब तेरे भी दिल पे बन जाएगी तू भी हमारी जगह आ जाएगी तुझे सताने की तो मुझे बर्दाश्त की नेमत बक्शी है ख़ुदा ने हर शख़्स को बड़ी फ़ुर्सत से बनाया है वज़ह ऐसी के अपने लबों पे चुप्पी रखता हूं मुझ पे इल्ज़ाम है मैं अपना हक़ जमाने लगता हूं काश के ये झूठ नापने का कोई पैमाना होता तो मेरे मुस्कुराने का राज़ उसने समझा होता बादलों से कहदो उसके घर जाके बरसे के याद हमारी भी उस बेख़बर को आए हम बेखुदी में, जिसको सज़दा रहे करते कभी गौर से ना देखा, पत्थर का बुत है वो देखो ये बे-मिस्ल फैसला खुदाई का वो मुझे तोड़ते-तोड़ते खुद टूट गया ज़फ़ा फ़रेब अश्क़ दर्द ब...

मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में

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जरूरत कैसी-कैसी निकल आती है घर-बार में मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने ज़ंजीर रिश्तो की पड़ी रहती है परिवार में आज न जाने क्या ग़रज़ निकल आई परिंदा ख़ुद ही सर पटकने लगा है दीवार में यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया जान बख़्श दी मेरी उस क़ातिल ने पलटवार में वज़ह ऐसी के अपने लबों पे चुप्पी रखता हूं मुझपे इल्ज़ाम कई लगे हैं मोहब्बत के कारोबार में इन ख़्वाहिशों के शहर में बह रही है आंधियां किशती साहिल पे आ जाएगी ग़र हिम्मत हो पतवार में

पहली बार का नशा रहता है

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क्या सितम है तेरे आने का ख़्याल बना रहता है तू मेरा है कि नहीं यही सवाल बना रहता है तेरे चेहरे में ऐसा क्या है ये तो मालूम नहीं फिर एक तुझपे ही क्युं मेरा ध्यान लगा रहता है जब कभी देखता हूं मैं पलट कर तुझे हर बार वही पहली बार का सा नशा रहता है लोग हंसते हैं मुझपे तेरा नाम ले लेकर ये क्या कम है, तेरे नाम से मेरा नाम जुड़ा रहता है उसकी आंखें सुर्ख़ बनी रहती है आजकल क्या वो भी मेरी तरह रातभर जगा रहता है लोग आते हैं ग़म भुलाते हैं चले जाते हैं यह मकान यूं ही वीरान बना रहता है अब समंदर भी मुंह देखकर पानी पिलाने लगा प्यासा आजकल बस किनारे पे खड़ा रहता है

सियासत शायरी

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कुछ ऐसी सोच माहौल की बना देनी चाहिए उठती हर आवाज़ दबा देनी चाहिए जरूरी नहीं के शमशीर क़त्ल के वास्ते ही उठे कभी-कभी दहशतगर्दी के लिए भी लहरा देनी चाहिए तुम सजदा करो उसे लिहाज़ ना हो, ग़र ये मुमकिन है फिर कैसे किसी बुत को तुम ख़ुदा बनाते हो? अभी तुम्हारा ओहदा निचले दर्जे का है। अभी तुम्हें सियासत के मायने मालूम नहीं।। मेरी इन खुश्क आंखों ने एक सदी का दौर देखा है कब्रिस्तान में लेटी लाशों का नज़ारा कुछ और देखा है यूं आसान नहीं होता, सच झूठ समझ पाना कईं नक़ाब पड़े हैं, एक चेहरे पे आजकल कब तक मुझें पाबंदियों कि हयात में जीना होगा किस फ़र्ज़ से गै़रत के नाम, जहन्नुम में जीना होगा

ज़िंदगी शायरी

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जिनके हाथ तजुर्बे से भरे होते हैं जिंदगी के खेल में माहीर वही लोग बडे होते हैं साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने बलाएं छूती नहीं, जिन हाथ में ताबीज़ बंधे होते हैं एक उलझन-सी है जो रास्ता भटका देती है उलझी बात को और उलझा देता है हवाएं ऐसी भी है यहां जो छुप‌ के चलती हैं कोई भटकती चिंगारी जहां मिली, सुलगा देती है परिंदे याद करेंगे, ढूंढेंगे मेरा निशां कुछ इस क़दर उनके ज़ेहन में उतर जाऊंगा लोग लगे हैं काटने इस बरगद की जड़ें मैं शाखों से उग जाऊंगा ये मंजर भी एक रोज़ दिखलाऊंगा उसे एक सरफ़रोश से रू-ब-रू कराऊंगा उसे अभी एक हुकुम का इक्का बाकी है मेरी आस्तीन में जब खेल ख़त्म करना होगा तो खेल जाऊंगा उसे समंदर की गहराई में छुपे होते हैं कई यह राज़ दरिया से अलग एक पहचान बनानी पड़ती है जरूरत कैसी-कैसी निकल आती है घर-बार में मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में आज न जाने क्या ग़रज़ निकल आई धरती की तरफ़ आसमां पिंघलने लगा दर्द-ए-इश्क में मैं बद-हवास तो नहीं लाइलाज हूं, बद-ज़ात तो नहीं चार दिन लाए थे खुदा से लिखवाकर हयात में दो सनम-परस्ती में गुजर गए, दो खुदा-परस्ती में समंदर बड़ी खामोशी से जख...

बरसों की शनासाई

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एक शख़्स की और मेरी  शनासाई है, लड़ाई है दुनिया की ना माने तो वो प्यार भी कर सकता है सुना है वो शख़्स कान का बहुत कच्चा है किसी ग़ैर की बातों पे एतबार भी कर सकता है अपने दिल की बात कहने से पहले कईं दफ़ा सोचो सामने वाला बेफ़िक्री से इंकार भी कर सकता है उससे इश्क में सब कुछ ला-हासिल लगा मुझे काम पे रखने से पहले ख़बरदार भी तो कर सकता है वो रहता है हमेशा दुश्मनों के साथ मिलकर वो चाहे तो मुझे होशियार भी कर सकता है उसी का हाथ है यारों साज़िश-ओ- नवाज़िश में वो साबित मुझे धोखे से गुनहग़ार भी कर सकता है अब यूं ना दिखाओ डर सैलाबों का सरफ़रोशों को जान हथेली पे हो जिसकी दरिया पार भी कर सकता है

मुहब्बत शायरी (4 line)

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एक ज़माना लगा मुझे, तेरी मोहब्बत कमाने में वक़्त नहीं लगता था मुझे वक़्त गवाने में तेरी सारी तस्वीरें जला डाली मैंने एक-एक कर बाख़ुदा हाथ कांपने लगे, आख़िरी तस्वीर जलाने में मेरे मुंह से जो निकले हर बात दुआ हो जाए सज़ा ऐसी मिले उसे, वो रिहा हो जाए वो लोग जो समझते हैं, उनका ही दिल धड़कता है वो भी इश्क में इतना तड़पे, मेरे बराबर में खड़ा हो जाए यह जो इश्क है मेरा बदनाम नहीं होना चाहिए मुहब्बत पे मेरी कोई इल्ज़ाम नहीं होना चाहिए दर्द-ए-दिल की दवा करो मुझे ऐतराज नहीं पर तबीयत में मेरी आराम नहीं होना चाहिए छुपाकर ज़माने से राज़ तेरा, दिल में दफ़न कर लूं अपनी मैय्यत पे ओढ़ लूं, तुझको कफ़न कर लूं ये जो ग़म तेरा, मिला मुझे, सबसे हसीन है बता  कैसे किसी ग़ैर को, मैं इसमें शारीक़ कर लूं इस आलम में तेरा मुझे छू जाना जरूरी है खुशबू बनके रूह में उतर जाना जरूरी है मेरे सफ़र में उठ रहे हैं गर्दिशों के गुबार तेरे दामन का मेरे सर पे बिखर जाना जरूरी है तुम्हें ऊपर से जो बताया गया है सच नहीं है ख़्याल दिल में जो उगाया गया है सच नहीं है तुम मुझे देखते फिरते हो दुनिया की नज़र से मेरी आंखों में आकर प...

गर्मी पर शायरी

के मौसम गर्मी का बडा ही बे-दर्दी होता है ज़ालिम रज़ाई भी कतराती है नज़दीक आने में

तूफ़नों में दरिया में नाव चलानी पड़ती है

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कहां आसां होता है सफ़र, इक तरफा मुहब्बत का तूफ़नों में दरिया में नाव चलानी पड़ती है यूं ही नहीं बनता ख़ुदा, कोई किसी का मुहब्बत में बदले वफ़ा के उनसे वफ़ा निभानी पड़ती है किसी के दिल में उतरने का यही तो पहला क़दम है नज़रे दुनिया से बचाकर उससे नज़र मिलानी पड़ती है मुहब्बत की हिफ़जत करनी पड़ती है बड़ी फ़िक्री से छुपकर ज़माने से यह रस्म निभानी पड़ती है यूं ही नहीं आसानी से मिलता है कोई चाहने वाला किसी के दिल में बसने की कीमत चुकानी पड़ती है कईं बार वो छोड़ जाने को कहता है बीच राह में दर्द-ए-जिग़र से उसे आवाज़ लगानी पड़ती है भुला चुका हूं वैसे तो उसे दुनिया की नज़र में महफ़ूज़ हवा से रखकर यह समां जलानी पड़ती है के इश्क का अंदाज़ है क्या, किसी दिलदार से पूछो जलाकर खुद को जिंदगी उनकी रोशन बनानी पड़ती है

आशिक का इंटरव्यू (not completed)

 ( प्रत्यक्ष साक्षात्कार)  प्रश्न : पहले तो आप पाठकों को अपना नाम बताइए उत्तर :   "जी मेरा नाम आशिक है" प्रश्न : महिलाओं के बारे में आपके क्या विचार हैं उत्तर :  मैं महिलाओं की इज्जत बहुत करता हूं प्रश्न : महिलाओं से आप किस तरह का संबंध रखते हैं उत्तर :  महिलाओं से मेरा एक ही संबंध है और वो है यौन-संबंध।  प्रश्न : क्या आप फ्लाइंग सिख को जानते हैं उत्तर :  जी नहीं,  फ्लाइंग किस तो जानता हूं प्रश्न : कल रोज़-डे है। कैसी लड़की को रोज़ देना पसंद करेंगे?  उत्तर :  उसे, जो मुझे रोज़ देगी Aap mujhe kya bolna chahte ho  O lv u Nanga parvat 123... Sex 7 Mujhe strike Sare part dekhne hai

Diwan E Satyam (Sher)

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आज न जाने क्या गरज निकल आई धरती की तरफ आसमान पिंघलने लगा के नशा तेरे प्यार के पागलपन का ही था एक सर-बुलंद, परस्तिश में, सरफ़रोश बन गया. हाथ में शराब है, आगोश में हो तुम  अब फैसला तुम ही करो मैं कौन सी को छोड़ दूं हरेक रंग के फूल से इश्क़ है मुझे मैंने मुहब्बत के रास्ते कभी रंगत को ना आने दिया इन दिनों ही हम कुछ जुदा-जुदा से रहने लगे एक जमाने में हमने फूलों की बहोत इज्जत की  --------------------------------------------------

सर्दी पर शायरी | जाडे पे शेर शायरी

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यूं तो जायज़ है मेरे जिस्म की कंपकंपाहट ’सत्यं’ एक तो सर्दी बहुत और सामने वो भी खड़ी है इस बार की सर्दी हिज्र में कुछ ऐसी कट रही है मैं यहां तप रहा, जुदा वो वहां तप रही है अबकी बार मौसम में क्या तब्दीली आई है बाहर सर्दी कड़ाके की अन्दर गरमी छाई है यह आलम शहनाई का होता तो अच्छा होता हिसाब जज़्बातों की भरपाई का होता तो अच्छा होता कमबख्त कंबल की आग भी अब बुझने लगी इस सर्दी इंतजाम रजाई का होता तो अच्छा होता कड़ी सर्दी, तेरी फ़िक्र और मेरे दिल का टूटना हर मौसम मेरे खिलाफ़ है ख़ुदा खैर करे इस उम्मीद में के अगले बरस बना लेगा रजाई अपनी एक शख़्श सर्दी से लड़ा मग़र महंगाई से मर गया।

मुस्कुराहट पे मेरी पहरा बैठा दिया

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बैठा हुआ था सुकूं से एक साए तले मैं  किसी ने जला दिया घर मेरा, सहरा बना दिया कभी जो उस तरफ देखूं एक जन्नत नज़र आती थी किसी ने मुस्कुराहट पे मेरी, पहरा बैठा दिया अर्श की बुलंदियों पे था एक तेज़-परवाज़ कभी एक सैययाद की निग़ाहो ने, पिंजरे में ला दिया पीठ पीछे वो मेरी ख़ामियां गिनाता है मोहब्बत में जिसके सामने, सिर अपना झुका दिया उसकी एक नज़र से, मेरी तबीयत में बहार रहती थी फैर ली आंखें उधर, इधर वीराना बना दिया हम घबराकर ख़्वाब से आधी रात में जगते हैं एक सगंदिल ने, जां पे मेरी सदमा लगा दिया ख़्वाब अच्छे देखने का तो मुझको भी हक़ है फिर क्यों मेरे जज़्बात को उसने दबा दिया सबको लगा के मुझपे बुरे साये का असर है पागल थे उसके प्यार में हम, था ख़ुद को भुला दिया सोचा ना था इस मोड़ से भी गुजरेंगे हम 'सत्यं' हंसते हुए एक इंसान को मुर्दा बना दिया कभी नाम भी ना आता था मेरे लब पे मोहब्बत का वो ख़ुद साहिल पे खड़ा रहा, पर मुझको डूबा दिया