उठती नज़र, कई सवाल करती है
झुकती है तो फैसला बढ़ाती है इंसान हूं मैं फिर क्यों
ज्यादती मेरे साथ होती है?
कुछ दोष नहीं बस इतना ही न
तुम कहते हो, अनाथ हूं मैं
खंजर से गहरे जो शब्द
दिल चीरकर आर-पार जाते हैं
झंझोते हैं आत्मा, सांस बोझिल करते हैं
सबकी सुनता हूं, बेबस भी हूं
कहीं होता कोई, लेता पनाह में
ख़्वाब अधूरे रहते हैं और अनाथ हूं मैं
कोई हाथ भी बढ़ा दे तो क्या
कभी दिल से नहीं लगाता
क्या दोष मेरा ही है बताओ
इस पथ पर चले आने का
दिया है साया खुदा ने तो इतराते हो
और सहज ही कह जाते हो, अनाथ हूं मैं
मैं जिज्ञासु हूं और मांग भी है
क्यों सब मुझे सहना पड़ता है?
सजा ही देनी थी तो बुरा क्यों बनाके?
तूने बख्सा नहीं एक मासूम को भी, खुदा
कुछ तो दया कर, करामात ऐसी कर
कोई ना कहे मुझसे, अनाथ हूं मैं
मैं यूं ही 'सत्यं' खुदा को दोष देता रहा
नाम खुदा भी चंद लोगों के लिए है
आने वाला है कोई सर पे हाथ रखने वाला
हिम्मतवाला, उसकी आहट का एहसास है मुझे
फिर एक 'बाबा' का धरती पे आना हुआ
मंत्र 'समता' दिया कहा, कभी ना कहना अनाथ हूं मैं।
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वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :
https://youtu.be/FenkFsjRBv0
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