जिसका कोई जवाब ना हो, ऐसा कोई सवाल मिले
वो राह दिखाती लोगों को, जलती कोई मशाल मिले
मैंने इतिहास के पन्नों को, कईं बार पलट के देखा
बाबा साहब की सी दुनिया में, दूजी ना कोई मिसाल मिले
इक बागबां सूखे पेड़ों पे, लहू की बारिश करता रहा
कतरा-कतरा उम्मीद की, क्यारियों में भरता रहा
सूरज भी थक के उठता है, इक रात के बाद
वो मसीहा हमारी खातिर, दिन-रात इक करता रहा
दिया ना खुदा ने जो, इक इंसान दे गया
मुस्कुराहट का अपनी वो, बलिदान दे गया
काल को दे दी, कुर्बानी अपने लाल की
बदले में हमें, खुशियों का वरदान दे गया
खुदाओं के शहर में, वो खुदा से ज्यादा दे गया
औरत को पिछडों को, जीने का इरादा दे गया
ये ब्रह्मास्त्र भी ऊंच नीच का, कल टूट ही जाएगा
वो जाते-जाते संविधान की मजबूत ढाल दे गया
वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :
https://youtu.be/1iJI28CyekU
वो राह दिखाती लोगों को, जलती कोई मशाल मिले
मैंने इतिहास के पन्नों को, कईं बार पलट के देखा
बाबा साहब की सी दुनिया में, दूजी ना कोई मिसाल मिले
इक बागबां सूखे पेड़ों पे, लहू की बारिश करता रहा
कतरा-कतरा उम्मीद की, क्यारियों में भरता रहा
सूरज भी थक के उठता है, इक रात के बाद
वो मसीहा हमारी खातिर, दिन-रात इक करता रहा
दिया ना खुदा ने जो, इक इंसान दे गया
मुस्कुराहट का अपनी वो, बलिदान दे गया
काल को दे दी, कुर्बानी अपने लाल की
बदले में हमें, खुशियों का वरदान दे गया
खुदाओं के शहर में, वो खुदा से ज्यादा दे गया
औरत को पिछडों को, जीने का इरादा दे गया
ये ब्रह्मास्त्र भी ऊंच नीच का, कल टूट ही जाएगा
वो जाते-जाते संविधान की मजबूत ढाल दे गया
गुम अंधेरों में थी गुज़री, ज़िंदगी मेरी
अब सवेरों की राह पे, मेरा सफ़र है
खुल गए सब रास्तें, जहां में मेरे लिए
ये मेरे बाबा की, हिदायत का असर है
इक फ़रिश्ते ने, अंधेरों में रोशनी कर दी
बुझती मशालों में, दहकती चिंगारी भर दी
लिखकर किताबे-कायदा इंसानियत के मायने बदले
पहनाकर लिबास बराबरी का, इज़्ज़त ऊंची कर दी
वो इमान, बदलने की बात करते हैं
समता का विधान, बदलने की बात करते हैं
यह वो लिबास है, जिसमें लिपटी है सबकी इज़्ज़त
फिर किस मुंह से, संविधान बदलने की बात करते हैं
वो शख़्स, हर शख़्स की तक़दीर हो गया
पढ-लिखकर इंसाफ़ की, शमशीर हो गया
कल्पना में तो सुनी थी, लक्ष्मणरेखा हमने
बाबा का लिखा, पत्थर की लकीर हो गया
उस फ़रिश्ते ने, हम पे बड़ा एहसान किया है
आज़ादी की खातिर, ख़ुद को कुर्बान किया है
तुम्हें अंदाजा नहीं, ए सोई हुई कौम के लोगों
कांटो पे चल के फूलों का, बिस्तर हमें दिया है
दुनिया में कहीं, ऐसा नजारा ना हुआ
बे-सहारों का, कोई सहारा ना हुआ
बाबा तो बहुत आए, ज़माने में मग़र
अब सवेरों की राह पे, मेरा सफ़र है
खुल गए सब रास्तें, जहां में मेरे लिए
ये मेरे बाबा की, हिदायत का असर है
इक फ़रिश्ते ने, अंधेरों में रोशनी कर दी
बुझती मशालों में, दहकती चिंगारी भर दी
लिखकर किताबे-कायदा इंसानियत के मायने बदले
पहनाकर लिबास बराबरी का, इज़्ज़त ऊंची कर दी
वो इमान, बदलने की बात करते हैं
समता का विधान, बदलने की बात करते हैं
यह वो लिबास है, जिसमें लिपटी है सबकी इज़्ज़त
फिर किस मुंह से, संविधान बदलने की बात करते हैं
वो शख़्स, हर शख़्स की तक़दीर हो गया
पढ-लिखकर इंसाफ़ की, शमशीर हो गया
कल्पना में तो सुनी थी, लक्ष्मणरेखा हमने
बाबा का लिखा, पत्थर की लकीर हो गया
उस फ़रिश्ते ने, हम पे बड़ा एहसान किया है
आज़ादी की खातिर, ख़ुद को कुर्बान किया है
तुम्हें अंदाजा नहीं, ए सोई हुई कौम के लोगों
कांटो पे चल के फूलों का, बिस्तर हमें दिया है
दुनिया में कहीं, ऐसा नजारा ना हुआ
बे-सहारों का, कोई सहारा ना हुआ
बाबा तो बहुत आए, ज़माने में मग़र
बाबा भीम जैसा, कोई दोबारा ना हुआ
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https://youtu.be/1iJI28CyekU
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