यह कैसे मुकाम पे हम आ खड़े हुए
तुम्हें दिल में बसाकर भी तन्हा से लगते हैं सुना है बिछुड़कर बढ़ जाती है मोहब्बत और
वो तो ग़ैर के हो गए दो पल की जुदाई के बाद
यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया
के क़त्ल भी ना किया और ज़िंदा भी ना छोड़ा
कैसे निकालू दिल से बता तुझे सनम
मैंने तो दर आये को भी गले लगाया है
मत पूछ मेरी दास्तां ए ग़म मुझसे
मैं बेवज़ह किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता
इस बार ग़ुनाह हमसे बड़ा संगीन हो गया
उस बेवफ़ा पे फिर से हमें यकीन हो गया
ग़र होती ख़्वाबों पे हुकूमत अपनी
तो हर-शब तेरा दीदार मैं करता
वो बेरुख़ी करते हैं मेरे दिल से जाने क्युं
जिन्हें करीब से तमन्ना देखने की है
कईं मोड़ से गुज़रे राहे उल्फ़त में 'सत्यं'
सोचा था मैंने यूं, आसानियां होंगी
इक मुद्दत से ज़ुबां ख़ामोश है मेरी
सोचा कह दूं हाले-दिल तड़प अच्छी नहीं होती
______________________________________
वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :
https://youtu.be/ZK8ld6YDNPw
वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :
https://youtu.be/ZK8ld6YDNPw
No comments:
Post a Comment