प्रिय मेरा अरमान हो तुम - कविता




मासूम चेहरा नीची निगाहें
प्यार की पहचान हो तुम
बरसों से जगा है जो दिल में
प्रिय मेरा अरमान हो तुम

जब प्यार तुम्हारे भी दिल में है
क्यों मुझसे फिर अनजान हो तुम
नज़र चुराती हो ऐसे
जैसे कोई नादान हो तुम

एक तुम्हें ही दिल में बसाया है
हां इस दिल की मेहमान हो तुम
जिसे देख सभी खो जाते हैं
वही प्यारी सी मुस्कान हो तुम

खुदा ने किया था जो एक रोज़ 
मुझपे वही एहसान हो तुम
जिसे ख्वाहिश है पा लेने की
मेरा खोया हुआ जहान हो तुम


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