ग़ज़ल (मुकम्मल) - दो पहलु का मौसम
दस्तूर है दुनिया का, सिक्के के दो पहलू
कहीं जान देती गोली, कहीं जान लेती गोली।
ज़रूरी तो नहीं किस्मत हमेशा साथ दे
कहीं बात बनती बोली, कहीं बात बिगाड़े बोली।
मू़द आँखों को दुनिया पर भरोसा ना करो
कहीं राज़दार हमजोली, कहीं गद्दार हमजोली।
अजब रिवाज़ है सुन इन दिनों ज़माने का
कहीं बहन मुँहबोली, कहीं बीवी मुँहबोली।
ख़ुदा से मंगतों को अब डर नहीं है कोई
कहीं इंसाफ़ वाली झोली, कहीं पाप भरी झोली।
मौसम बदल चुके ‘सत्यं’, बेफ़िक्र ना मिला करो
कहीं आराम है कोली, कहीं बदनाम है कोली।
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