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Thursday, 24 September 2020

माता, पिता व संतान कौन है महान? | Mother, Father and Child

माता (मां) - जननी जो कि अपनी संतान को 9 महीने तक गर्भ में रखती है और उसे सहती है, को जन्म देकर उसका पालन पोषण करती है। मां के बगैर अभी तक संसार में जीवोउत्पत्ति करना संभव नहीं है। स्त्री का जन्म ही मां बनकर संतान उत्पत्ति करने हेतु हुआ है, ताकि श्रृटि का संचालन होता रहें। 9 महीनों तक संतान को गर्भ में रखने का कष्ट ही मां को यह उच्च पद दिलाता है। 

पिता (बाप) - एक पिता स्त्री एवं संतान की आवश्यकताओं को पूरा करता है। एक स्त्री को मां बनने का सौभाग्य पुरुष से ही प्राप्त होता है। संतान को उत्पन्न कराने में एक पुरुष का बहुत बड़ा योगदान होता है। अकेली मां ही इसमें शामिल नहीं है। पुरुष का योगदान ही स्त्री को मां कहने का दर्जा दिलाता है। पुरूष के बिना एक औरत कभी भी मां नहीं बन सकती, उसे मां बनने और खुद को साबित करने के लिए एक पुरूष की आवश्यकता पड़ती है। पूर्व में प्राकृतिक रूप से बच्चे  की उत्पत्ति शुक्राणु रूप में पुरूष के अन्दर ही होती। बाद में इसका स्थापन महिला के गर्भाशय में किया जाता है। इसीलिए यहां पिता का दर्जा माता से भी बड़ा हो जाता है। 

संतान (औलाद) - संतान ही स्त्री-पुरुष के लिए वह जरिया है जिसके द्वारा वे दोनों माता-पिता कहलाते हैं। संतान के द्वारा ही एक स्त्री मां कहलाती है। एक स्त्री मां बन कर ही अपना कर्तव्य पूरा कर सकती हैं। जो उच्च दर्जा उसे अपनी संतान से प्राप्त होता है। संतान का कर्तव्य है कि- वह अपने माता-पिता का साथ जीवनभर ना छोड़े और उनका ठीक वैसे ही पौषण करे जैसे कि माता-पिता ने किया था। और ऐसा कर संतान होने का कर्तव्य निभाए।

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