ग़ज़ल (मुकम्मल) आकाश तो कर










आगाज़ तू कर राह-ए-मंज़िल पर,
किसी के साथ आने का इंतज़ार न कर।

रास्ते में जो जलाए आंच यादों की,
बेइन्तहां किसी से प्यार न कर।

किसी मोड़ पर तेरे काम आ सकता है,
भरी दुनिया में किसी से तकरार न कर।

तू याद आए, मुंह से बददुआ निकलें,
इस जहाँ में अदा ऐसा किरदार न कर।

इक दिन बुला लेगा ख़ुदा सबको पास,
जुदाई का उसकी कभी गुबार न कर।

होती है वैसे तो सच्चाई बहुत कड़वी,
कुबूल करने से उसको इंकार न कर।

तू हो जाए बेबस उनके करीब जाने को,
अपने दिल को इस कदर बेकरार न कर।

तू करके जफ़ा उससे वफा के बदले,
अपनी नज़र में खुद को शर्मसार न कर।

खुदा भी जिसे ना कभी माफ कर सके,
ख़ता ऐसी देख 'सत्यं' हर बार न कर।

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