एक हसीना | Ek Haseena - कविता/नज़्म/Nazm/Poem

मुझको मिली इक हसीना
वो जाड़े का था महीना
उसने कसकर मेरा सीना
कहां छोड़ जाना कभी ना

मौसम भी था कमीना
मुझको आने लगा पसीना
 उसे आगोश में ले -यूं बोला
"रज़ा कहो ना?"

मेरे बाज़ुओं से ख़ुद को छीना
और कहती रही अभी ना
मेरा ज़वाब था -
"तो फिर कभी ना"

अब मौजों में था दिल शफ़ीना
कश्मकश में थी वो हसीना
यूं बोली - "मेरे दिलबर!"
'मुझे बाहों में ख़ुद लो ना'

उसका शाने से लिपटकर रोना
मैं भूल पाया अभी ना
अब छोड़ घर का कोना
उसे मांगूंगा जा मदीना
 
मुझको मिली एक हसीना...
_____________________________

वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :




Comments

Popular posts from this blog

मेरे जाने के बाद | Mere jane ke baad (Ghazal)

भारत और भरत?

तेरे जाने के बाद (नज़्म) Nazm