मैं थक के सोया ही था सुकून से दो-पल
वो सब मुझको उठाने चले आए ।
ज़िंदगी रहते तो मेरा हाल तक ना पूछा
मैं मिट्टी हो गया जब गले लगाने चले आए ।
आज रो रहे हैं सुबक कर लिपटकर गले मेरे
लोग कुछ अपने, पराए चले आए ।
मौत ने मुझको सबका अज़ीज़ बना दिया
दुश्मन भी दो आंसू आंखों में लिए आए ।
तरस रही थी आंखें जिन्हें देखने को
आंखें बंद होने पर मौत के बहाने चले आए ।
बिखर रहा था घरौंदा मेरा तिनके-तिनके
रुख़सत करने कम-से-कम सारे चले आए ।
जागती आंखों से कुछ साफ़ दिखाई ना दिया
कफ़न ओढ़कर ही सोए अज़ब नज़ारें चले आए ।
अब वो याद करें या भुलाए इन बातों में क्या रखा
छोड़कर हम सारे अफ़साने चले आए ।
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वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें :
https://youtu.be/GLtsw0L2cGg
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