नज़्म (मुकम्मल) मुर्दे के लफ्ज़ | Murde Ke Lafz



मैं हालात से लड़कर सोया ही था दो पल
वो लोग मुझे घर से उठाने को चले आए

ज़िंदगी रहते तो मेरा हाल तक न पूछा
मैं मिट्टी हो गया तो गले लगाने चले आए

आज रो रहे सुबक कर लिपट गले मेरे
लोग कुछ अपने थे, कुछ पराए चले आए

मौत ने मुझको सबका प्यारा बना दिया
दुश्मन भी आँसुओं में भीग कर चले आए

तरसती-बरसती रहीं आँखें जिन्हें देखने को
बंद आँखों पर मौत के बहाने चले आए

बिखर रहा था घरौंदा मेरा तिनके-तिनके
मुझे रुख़्सत करने कम से कम सारे चले आए

जागती आँखों से कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आया
कफ़न ओढ़ते ही अजब नज़ारे चले आए

अब वे याद करें या भुलाएं, बातों में क्या रखा
छोड़कर हम ये सारे अफ़साने चले आए


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