गजल (मुकम्मल) कैसे चलूँ तेरे बगैर
बिछड़ा तुमसे जहाँ, उस मोड़ पर खड़ा हूँ,
कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।
जहाँ नज़र चुराई थी मेरी नज़र से,
बचाया दामन था ज़माने के डर से।
मैं उसी मोड़ पे निगाहें गाड़े खड़ा हूँ,
कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।
कैसे चलूँ तेरे बगैर ...
ख़्वाहिश भी कोई ना रही तेरे बगैर,
दिल बोझिल रहता अब शाम-सहर।
मैं आज भी उन वादों पे अड़ा हूँ,
कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।
कैसे चलूँ तेरे बगैर ...
आँखें भी थक चुकी अब तो राह में तेरी,
उजड़ी मोहब्बत मांगती है पनाह तेरी।
आओगी इस उम्मीद के सहारे खड़ा हूँ,
कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।
आँखें भी थक चुकी अब तो राह में तेरी,
उजड़ी मोहब्बत मांगती है पनाह तेरी।
आओगी इस उम्मीद के सहारे खड़ा हूँ,
कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।
कैसे चलूँ तेरे बगैर ...
तुम मगरूर हो गए, दिल गवाह नहीं देता,
ज़ालिम कहता है मगर बेवफ़ा नहीं कहता।
तेरी सारी गलतियाँ भूलकर मैं खड़ा हूँ,
कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।
तुम मगरूर हो गए, दिल गवाह नहीं देता,
ज़ालिम कहता है मगर बेवफ़ा नहीं कहता।
तेरी सारी गलतियाँ भूलकर मैं खड़ा हूँ,
कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।
कैसे चलूँ तेरे बगैर ...

Comments
Post a Comment