ए बेवफा | E Bewafa (ग़ज़ल)




कल तक जो मेरे दिल को कहता रहा ठिकाना
आज इस जगह को सुनसान मानता है

बेखबर हूं उनको क्यों नफरत सी हो गई
वो दूर रहने का मुझसे एहसान मांगता है

कल तक जो मुझे खुद की पहचान कहता था
वही अब मुझसे मेरी पहचान मांगता है

वो भी तो उल्फ़त में बराबर का था शरीक़
फिर क्यों हरशख़्स उन्हें नादान मानता है

तोहीन मेरी खुलकर सरेआम जिसने की
हर कोई उन्हें दिल का मेहमान मानता है

तोहमत भी बेशुमार लगाई हैं, बेझिझक
जिस वज़ह से हर कोई मुझे बदनाम मानता है

कैसे सुबूत दूं अब अपनी बेगुनाही का
हमराज भी अब मुझको अनजान मानता है

एक दोस्त को ही फकत क्यों कह दूं फ़रेबी
अब तो सारा ज़माना मुझको अजनबी मानता है

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वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें :

https://youtu.be/8T3q_A-r5Cs

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