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Showing posts from 2020

जवाब दो तो जानू - एक सवाल

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एक सीमा नाम की लड़की ने एक ई-मेल पत्र का प्रिंटआउट दिखाते हुए पुलिस ऑफिसर से कहा कि सर मुझे अन्नी नाम के एक लड़के ने 14 फरवरी 1993 वैलेंटाइन-डे के दिन जिस समय दिल्ली स्थित स्कूल में मेरी इंग्लिश की क्लास चल रही थी, तब उसने मुझे भेजा था, और उसने मुझे जबरदस्ती प्रेम की धमकी दी। मैं उसके खिलाफ FIR दर्ज कराना चाहती हूं। तो क्या पुलिस ऑफिसर उसकी FIR दर्ज करेगा?  कारण के साथ सही विकल्प का चयन करें। A. उस दिन लड़की स्कूल नहीं आई थी B. लड़की के पास सबूत फर्जी है C. लड़की लड़के को फंसाना चाहती है D. उपरोक्त सभी   करण बताओ .......................................

भीख या मदद ? | Child Beggar in India | इंसानियत को शर्मसार करती एक कहानी

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कहानी एक बच्चा सड़क के किनारे भीख मांग रहा था, और इस कहानी का लेखक चाय की दुकान पर बैठा उसे देख रहा था। लेखक के इस तरह लगातार देखने पर बच्चे की निग़ाह उस पर पड़ी, तो वह थोड़ा मुस्कुराता हुआ लेखक की ओर बढ़ा और कुछ ही दूरी पर आकर खड़ा हो गया। लेखक ने उसकी तरफ देखा और थोड़ा वह भी मुस्कुराया, तो इस पर बच्चे की थोड़ी हिम्मत बढ़ी और वह बोला- साब कुछ दो ना। इस पर लेखक ने पूछा! क्या खाओगे? बच्चा   : कुछ नहीं साब! बस आप मुझे कुछ पैसे दे दो। लेखक : क्यों? भूख नहीं है! बच्चा   : है तो, लेकिन लेखक : बोलो-बोलो क्या बात है? बच्चा   : साब, मुझे दिन में एक ही वक़्त खाना खाने को कहा गया है। लेखक : आश्चर्यचकित होते हुए! क्यों मम्मी खाना नहीं देती? बच्चा   : नहीं, ऐसा नहीं है, सा...ब। लेखक : तो फिर क्या बात है? बच्चा   : वो......... कुछ नहीं साब लेखक : घबराओ मत। बोलो! बच्चा   : मेरे माता-पिता नहीं है, साब लेखक : औह गॉड! फिर आप रहते किसके साथ हो? बच्चा   : मेरे एक मुंह बोले अंकल है। वही मुझे अपने घर पर रखते हैं। लेखक : उन्होंने आपको स्कूल नह...

डॉ. अंबेडकर साहब के 15 नाम | 15 Names of Dr. Ambedkar

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 जय भीम सच्चा अंबेडकरवादी बाबा साहब के इन 15 नामों को आगे अवश्य शेयर करें| बाबा साहब संविधान निर्माता राष्ट्र निर्माता नारी मुक्तिदाता महाबोधि सत्व युग प्रवर्तक महामानव युगपुरुष आजीवन विद्यार्थी प्रकांड पंडित कलम का बादशाह एकता दाता समता दाता भारत भाग्य विधाता ज्ञान का प्रतीक

माता, पिता व संतान कौन है महान? | Mother, Father and Child

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माता (मां) - जननी जो कि अपनी संतान को 9 महीने तक गर्भ में रखती है और उसे सहती है, को जन्म देकर उसका पालन पोषण करती है। मां के बगैर अभी तक संसार में जीवोउत्पत्ति करना संभव नहीं है। स्त्री का जन्म ही मां बनकर संतान उत्पत्ति करने हेतु हुआ है, ताकि श्रृटि का संचालन होता रहें। 9 महीनों तक संतान को गर्भ में रखने का कष्ट ही मां को यह उच्च पद दिलाता है।  पिता (बाप) - एक पिता स्त्री एवं संतान की आवश्यकताओं को पूरा करता है। एक स्त्री को मां बनने का सौभाग्य पुरुष से ही प्राप्त होता है। संतान को उत्पन्न कराने में एक पुरुष का बहुत बड़ा योगदान होता है। अकेली मां ही इसमें शामिल नहीं है। पुरुष का योगदान ही स्त्री को मां कहने का दर्जा दिलाता है। पुरूष के बिना एक औरत कभी भी मां नहीं बन सकती, उसे मां बनने और खुद को साबित करने के लिए एक पुरूष की आवश्यकता पड़ती है। पूर्व में प्राकृतिक रूप से बच्चे  की उत्पत्ति शुक्राणु रूप में पुरूष के अन्दर ही होती। बाद में इसका स्थापन महिला के गर्भाशय में किया जाता है। इसीलिए यहां पिता का दर्जा माता से भी बड़ा हो जाता है।  संतान (औलाद) - संतान ही स्त्री-पुरु...

प्यार आखिर है क्या? | What is Love

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प्रकृति ने प्रेम को प्रत्येक प्राणी के अंदर जन्मजात बनाया है। कोई भी प्राणी इसे स्वतः सीख ही जाता है जिसे करने से उसे अत्यधिक संतुष्ट भी प्राप्त होती है। प्रेम इतना मधुर इसलिए बना है ताकि जगत में जीवोत्पत्ति निरंतर होती रहे। प्रेम का अंतिम चरण मिलाप ही होता है। यह एक स्वभाविक क्रिया है। यह विधान मनुष्य का अपना नहीं है। मनुष्य का मस्तिष्क तो सिर्फ ऐसे साथी का चुनाव करता है जो कि उसको संतुष्टि दे। यही वह कारण है जिसकी चाहत में वह दूसरों के प्रति आकर्षित होता है। संतान तो वह किसी के भी साथ पैदा कर सकता है लेकिन इसी बात को लोग आसानी से वासना बता देते है। और यदि उन्हीं लोगों की अपनी इच्छा पूछी जाए तो वे सहजता से इसे स्वीकार भी कर लेते हैं।  जिस ओर आप आकर्षित होते है, वहीं आपकी पसंद भी होती है। प्रेम की शुरुआत आकर्षण से ही होती है क्योंकि जब तक आप किसी व्यक्ति की ओर आकर्षित नहीं होंगे तब तक आप उससे प्यार कर ही नहीं सकते। प्यार करने के लिए जरूरी है कि वह तुम्हें पसंद हो और उसके लिए जरूरी है आप दोनों की सहमति। अधिकतर देखा यह जाता है कि यदि कोई व्यक्ति किसी के संपर्क में रहता है, तो वह उसके...

यात्री विवाद | Passanger Quarrel

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एक बस में एक पति-पत्नी यात्रा कर रहे थे। उन्हीं के ठीक पीछे वाली सीट पर एक सज्जन भी उस बस में बैठे हुए थे।  पत्नी ने अपने पति के गले में हाथ डाला हुआ था और बातें करते खिल्ली मारते जा रहे थे।  कुछ ही दूरी तय करने के पश्चात अचानक झटके के साथ बस रुक जाती है। जिस कारण पीछे बैठे सज्जन का हाथ फिसलकर श्रीमती जी की पीठ से स्पर्श हो जाता है। फिर क्या! वह तुरंत पीछे मुड़कर देखती हैं और क्रोध में अपने पति से बोली कि- जी देखो! यह पीछे बैठा व्यक्ति मुझे छेड़ रहा है। पति को भी क्रोध आ गया। इस पर वह सज्जन बोला कि- इसमें मेरा कोई दोस्त नहीं है फिर भी मैं आपसे क्षमा याचना करता हूं। किंतु वह महिला ना मानी और उसको व्यक्ति को खरी-खोटी सुना डाली। बस में बैठे सभी यात्री उस सज्जन की ओर देखने लगे। अब सज्जन को भी गुस्सा आ गया और वह बोला कि- मेरा तो सिर्फ आपसे हाथ ही स्पर्श हुआ है किंतु आपके पति ने तो आपको पूरा जकड़ा हुआ था। इस पर महिला बोली कि- यह मेरे पति हैं, जैसा चाहे करें। महिला की ऐसी बात सुनकर उस व्यक्ति को और भी क्रोध आ गया और बोला कि- अरे पति है तो क्या दोनों शर्म गैरत हाथ में ले लोगे। दिखता नहीं...

गलती किसकी है? | Galati kiski hai?

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एक बस स्टैंड पर रुकी और उसमें एक सज्जन प्रवेश करता है। वह टीटी को रु 10 देकर रु5 का टिकट मांगता है। टीटी पैसे खुले मांगता है मगर यात्री के पास खुले पैसे नहीं थे। उन दोनों में बहस हो जाती हैं। कंडक्टर- आप बस से उतर जाइए। यात्री- नहीं मुझे कहीं जल्दी पहुंचना है तो मैं क्यों उतरूं। कंडक्टर- मुझे जबरदस्ती करनी पडगी। यात्री- आपको यह हक नहीं बनता कि आप किसी यात्री को गाड़ी से उतार दो। कंडक्टर- मैं किसी बिना टिकट यात्री को उतार सकता हूं। यात्री- लेकिन मैं टिकट चाहता हूं, आप मुझे दो। कंडक्टर- आपके पास रु 100 का नोट है और मेरे पास खुले पैसे नहीं हैं। यात्री- इसमें मेरा क्या दोष है यह सब तो तुम्हें देखना चाहिए। फिर कुछ ही दूरी के बाद गाड़ी में टीटीइ चढ़ता है और टिकट जांच करता है। उस यात्री को बिना टिकट पाकर उस पर जुर्माना लगता है । यात्री- मेरे मांगने पर भी मुझे टिकट नहीं दिया गया तो इसमें मेरी कोई गलती नहीं। कंडक्टर- उन्होंने मुझे खुले पैसे नहीं दिए थे। यात्री- अगर किसी के पास खुले पैसे नहीं हैं, तो क्या वह यात्रा नहीं करेगा। इन सबके बाद भी टीटीइ नहीं माना और रु...

अंबेडकर साहब की शायरी | Ambedkar Sahab Shayari

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जिसका कोई जवाब न हो, ऐसा कोई सवाल मिले, वो राह दिखाती लोगों को, जलती कोई मशाल मिले। मैंने इतिहास के पन्नों को कई बार पलटकर देखा, 'बाबा साहब'-सी दुनिया में दूजी न कोई मिसाल मिले। एक बाग़बाँ सूखे पेड़ों पर लहू की बारिश करता रहा, कतरा-कतरा उम्मीद की क्यारियों में भरता रहा। सूरज भी थक के उठता है रातभर आराम के बाद, वो मसीहा हमारी ख़ातिर दिन-रात एक करता रहा। दिया न ख़ुदा ने जो, एक इंसान दे गया, मुस्कुराहट का अपनी वो बलिदान दे गया। काल को दे दी क़ुर्बानी अपने लाल की, बदले में हमें ख़ुशियों का वरदान दे गया। ख़ुदाओं के शहर में वो ख़ुदा से ज़्यादा दे गया, औरत को, पिछड़ों को जीने का इरादा दे गया। ये ब्रह्मास्त्र भी ऊँच-नीच का कल टूट ही जाएगा, वो जाते-जाते संविधान की मज़बूत ढाल दे गया। वो शख़्स हर शख़्स की तक़दीर हो गया, पढ़-लिखकर इंसाफ़ की शमशीर हो गया। कल्पना में सुनी थी हम ने लक्ष्मण रेखा, बाबा का लिखा पत्थर की लकीर हो गया। गुम अंधेरों में थी गुज़रती ज़िंदगी मेरी, अब सवेरों की राह पर मेरा सफ़र है। खुल गए सब रास्ते जहां में मेरे लिए, ये मेरे बाबा की हिदायत का असर है। एक फ़रिश्ते ने अंधेरो...

क्योंकि अनाथ हूं मैं | Kyonki Anath Hoon Mein - कविता/Poem

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उठती नज़र, कई सवाल करती है झुकती है तो फैसला बढ़ाती है इंसान हूं मैं फिर क्यों ज्यादती मेरे साथ होती है? कुछ दोष नहीं बस इतना ही न तुम कहते हो, अनाथ हूं मैं खंजर से गहरे जो शब्द दिल चीरकर आर-पार जाते हैं झंझोते हैं आत्मा, सांस बोझिल करते हैं सबकी सुनता हूं, बेबस भी हूं कहीं होता कोई, लेता पनाह में ख़्वाब अधूरे रहते हैं और अनाथ हूं मैं कोई हाथ भी बढ़ा दे तो क्या कभी दिल से नहीं लगाता क्या दोष मेरा ही है बताओ इस पथ पर चले आने का दिया है साया खुदा ने तो इतराते हो और सहज ही कह जाते हो, अनाथ हूं मैं मैं जिज्ञासु हूं और मांग भी है क्यों सब मुझे सहना पड़ता है? सजा ही देनी थी तो बुरा क्यों बनाके? तूने बख्सा नहीं एक मासूम को भी, खुदा कुछ तो दया कर, करामात ऐसी कर कोई ना कहे मुझसे, अनाथ हूं मैं मैं यूं ही 'सत्यं' खुदा को दोष देता रहा नाम खुदा भी चंद लोगों के लिए है आने वाला है कोई सर पे हाथ रखने वाला हिम्मतवाला, उसकी आहट का एहसास है मुझे फिर एक 'बाबा' का धरती पे आना हुआ मंत्र 'समता' दिया कहा, कभी ना कहना अनाथ हूं मैं। ______________________________________ वीडियो देखने के ल...

वो ज़माना और था | Wo Zamana aur tha | وہ زمانا اور تھا

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अब तो सरे-राह क़ायम होते हैं रिश्ते वो शर्मो-हया में डूबा ज़माना और था बस नुमाईश अदा होती है अब ख़ुदा परस्ती की गुमनाम उसकी राह में लुटाना और था इंसानियत में आजकल गरज़ नज़र आती है कभी इंसान का इंसान के काम आना और था वादों से मुकरने का 'सत्यं' रिवाज़ बन बे-फ़र्ज़ भी अंज़ाम का ज़माना और था आज भूल के वो खुद को झोली फैलाते हैं कभी खैरात बाँटा किए वो ज़माना और था कर काबू खुद पे के शमशीर हो या जबां कभी बात का बात से बन जाना और था   दे दो जगह उसूलों को सीने में संभल जा यह ज़माना और है, वो ज़माना और था _________________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=xHQau9xcCJo

आखिर क्यों? | Aakhir Knon? - ग़ज़ल/Ghazal

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कल तक जो डाला था अपने प्यार का साया  आज मेरे जिस्म से सिकोड़ती क्यों हो? वादा किया था ये जां अमानत है तुम्हारी फिर आज अपने वादों से मुंह मोड़ती क्यों हो भरोसा दिया था हर मंजिल साथ जाने का बीच रास्ते में लाकर छोड़ती क्यों हो? जिसने लगाया गले से उसे मौत ही मिली ग़म से मेरा नाता तुम जोड़ती क्यों हो? मालूम है तुम्हें भी बहुत दर्द होता है मेरा दिल बार-बार फिर तोड़ती क्यों हो?

एक हसीना | Ek Haseena - कविता

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मुझको मिली इक हसीना वो जाड़े का था महीना उसने कसकर मेरा सीना कहां छोड़ जाना कभी ना मौसम भी था कमीना मुझको आने लगा पसीना उसे आगोश में ले -यूं बोला "रज़ा कहो ना?" मेरे बाज़ुओं से ख़ुद को छीना और कहती रही अभी ना मेरा ज़वाब था - "तो फिर कभी ना" अब मौजों में था दिल शफ़ीना कश्मकश में थी वो हसीना यूं बोली - "मेरे दिलबर!" 'मुझे बाहों में ख़ुद लो ना' उसका शाने से लिपटकर रोना मैं भूल पाया अभी ना अब छोड़ घर का कोना उसे मांगूंगा जा मदीना  

प्यार और आकर्षण | Love and Attraction - लेख/Article

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किसी भी लिंग का सामान व विपरीत लिंग के प्रति झुकाव प्यार या आकर्षण कहलाता है किंतु वैचारिक दृष्टि से ये दोनों ही अवस्थाएं अलग-अलग होती हैं। आकर्षण - आकर्षण एक ऐसी अवस्था जिसमें कोई व्यक्ति किसी दूसरे के प्रति उसकी किसी शारीरिक - जैसेः रंग-रूप, आंख, चेहरा आदि अंगों पर आकर्षित होता है। मानसिक - जैसेः कला, युक्ति, तर्क या कूट शक्ति आदि। व्यवहारिक - जैसेः बर्ताव, बातचीत का ढंग, आदर-सम्मान, अनुशासन आदि। शैक्षिक - जैसेः कलाकारी, पढ़ाई या अन्य किसी विषय में उपलब्धि आदि चीजों की तरफ आकर्षित होता है, आकर्षण कहलाता है। यह सदैव सीमित होता है और कुछ हद तक ही बढ़ सकता है।यह सच्चा व स्थाई नहीं होता। यदि किसी कारणवश आकर्षक व्यक्ति की प्राप्ति नहीं हो पाती है तो आप उसके विषय में गलत विचार करने लगते हैं और लोगों के सामने उनकी बुराई भी करते हैं। यदि आपका बर्ताव भी ऐसा ही है तो समझ लें कि वह आकर्षण ही है, और कुछ नहीं। आकर्षण संवेगिक उद्दीपनों के बहाव में आकर व्यक्ति द्वारा जल्दबाजी में लिया गया कोई निर्णय है। प्यार - वैसे तो प्यार की शुरुआत हमेशा आकर्षण से ही होती हैं। प्यार वह अवस्था है जिसमें हम किसी व्य...

ग़ज़ल (मुकम्मल) - दो पहलु का मौसम

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दस्तूर है दुनिया का, सिक्के के दो पहलू कहीं जान देती गोली, कहीं जान लेती गोली। ज़रूरी तो नहीं किस्मत हमेशा साथ दे कहीं बात बनती बोली, कहीं बात बिगाड़े बोली। मू़द आँखों को दुनिया पर भरोसा ना करो कहीं राज़दार हमजोली, कहीं गद्दार हमजोली। अजब रिवाज़ है सुन इन दिनों ज़माने का कहीं बहन मुँहबोली, कहीं बीवी मुँहबोली। ख़ुदा से मंगतों को अब डर नहीं है कोई कहीं इंसाफ़ वाली झोली, कहीं पाप भरी झोली। मौसम बदल चुके ‘सत्यं’, बेफ़िक्र ना मिला करो कहीं आराम है कोली, कहीं बदनाम है कोली।

नज़्म (मुकम्मल) मुर्दे के लफ्ज़ | Murde Ke Lafz

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मैं हालात से लड़कर सोया ही था दो पल वो लोग मुझे घर से उठाने को चले आए ज़िंदगी रहते तो मेरा हाल तक न पूछा मैं मिट्टी हो गया तो गले लगाने चले आए आज रो रहे सुबक कर लिपट गले मेरे लोग कुछ अपने थे, कुछ पराए चले आए मौत ने मुझको सबका प्यारा बना दिया दुश्मन भी आँसुओं में भीग कर चले आए तरसती-बरसती रहीं आँखें जिन्हें देखने को बंद आँखों पर मौत के बहाने चले आए बिखर रहा था घरौंदा मेरा तिनके-तिनके मुझे रुख़्सत करने कम से कम सारे चले आए जागती आँखों से कुछ भी साफ़ नज़र नहीं आया कफ़न ओढ़ते ही अजब नज़ारे चले आए अब वे याद करें या भुलाएं, बातों में क्या रखा छोड़कर हम ये सारे अफ़साने चले आए

गजल (मुकम्मल) कैसे चलूँ तेरे बगैर

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बिछड़ा तुमसे जहाँ, उस मोड़ पर खड़ा हूँ, कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ। जहाँ नज़र चुराई थी मेरी नज़र से, बचाया दामन था ज़माने के डर से। मैं उसी मोड़ पे निगाहें गाड़े खड़ा हूँ, कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ। कैसे चलूँ तेरे बगैर ... ख़्वाहिश भी कोई ना रही तेरे बगैर, दिल बोझिल रहता अब शाम-सहर। मैं आज भी उन वादों पे अड़ा हूँ, कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।  कैसे चलूँ तेरे बगैर ... आँखें भी थक चुकी अब तो राह में तेरी, उजड़ी मोहब्बत मांगती है पनाह तेरी। आओगी इस उम्मीद के सहारे खड़ा हूँ, कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ।  कैसे चलूँ तेरे बगैर ... तुम मगरूर हो गए, दिल गवाह नहीं देता, ज़ालिम कहता है मगर बेवफ़ा नहीं कहता। तेरी सारी गलतियाँ भूलकर मैं खड़ा हूँ, कैसे चलूँ तेरे बगैर मैं परेशान बड़ा हूँ। कैसे चलूँ तेरे बगैर ...

ग़ज़ल (मुकम्मल) आकाश तो कर

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आगाज़ तू कर राह-ए-मंज़िल पर, किसी के साथ आने का इंतज़ार न कर। रास्ते में जो जलाए आंच यादों की, बेइन्तहां किसी से प्यार न कर। किसी मोड़ पर तेरे काम आ सकता है, भरी दुनिया में किसी से तकरार न कर। तू याद आए, मुंह से बददुआ निकलें, इस जहाँ में अदा ऐसा किरदार न कर। इक दिन बुला लेगा ख़ुदा सबको पास, जुदाई का उसकी कभी गुबार न कर। होती है वैसे तो सच्चाई बहुत कड़वी, कुबूल करने से उसको इंकार न कर। तू हो जाए बेबस उनके करीब जाने को, अपने दिल को इस कदर बेकरार न कर। तू करके जफ़ा उससे वफा के बदले, अपनी नज़र में खुद को शर्मसार न कर। खुदा भी जिसे ना कभी माफ कर सके, ख़ता ऐसी देख 'सत्यं' हर बार न कर।

नामुमकिन है आसान नहीं (मुकम्मल)

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मिला प्यार तुम्हारा जीवन में, कोई इसके सिवा अरमान नहीं तुझे भूल पाना मेरी प्रिये, मुमकिन है मगर आसान नहीं जुदा जब से तुझसे हुआ हूँ मैं, रही दिल में अब तो जान नहीं तेरी एक कमी से बरसों से, मेरे होंठों पे मुस्कान नहीं मैंने देखा ज़माने को दूर तलक, कोई तुम-सा मिला इंसान नहीं मुझे जीना सिखाया जो हर पल को, क्यों कह दूँ तुम्हें भगवान नहीं तू देख ले आकर मेरे सनम, बिन तेरे मेरी पहचान नहीं तुझसे बिछड़कर जीना है यूँ, बेबसी है मगर अरमान नहीं

गजल (मुकम्मल) इतना काम तो कर

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तू देखकर चेहरा, ना पहचान मुझको, कभी दिल के करीब आ, बात तो कर। तू साथ दे ना दे, मेरा कोई ग़म नहीं, पर मेरी मोहब्बत का ऐतबार तो कर। मायूस ना हो जाऊँ, खामोशी पे तुम्हारी, कुछ मेरी मोहब्बत का हिसाब तो कर। संगदिल कहे तुम्हें, जमाना मंजूर नहीं, यूं रुसवाई मोहब्बत की सरेआम ना कर। डरता हूँ तुझे दूर करते आँखों से, कुछ सफर तय मेरे साथ तो कर। हो जाएंगी सब आरजू पूरी मेरी, चंद पल मुझसे तू प्यार तो कर। थाम लेंगे उम्रभर ये विश्वास दिलाते हैं, हिम्मत करके आगे अपना हाथ तो कर।

गजल (मुकम्मल) तुम्हें दिल में बसाया तो जाना है

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कितनी हंसी है यह ज़िंदगी, तुम्हें दिल में बसाया तो जाना है। कैसे कहूँ मेरी प्रियतमा, तुम्हें क्या-कुछ मैंने माना है। हर पल तुम्हें चाहा-पूजा, दूसरा दिल में नहीं लाना है। हासिल की ख्वाहिश हो जो, बस तू ही तो मेरा खजाना है। कोई देखे तुम्हें देर तक, तो मुमकिन मेरा जल जाना है। कोई बात भी करे तुमसे, मेरे बस में नहीं सह पाना है। अपनी सारी खुशियाँ अब तो, सिर्फ़ तुझ पर ही लुटाना है। मेरी आरज़ू यही बाकी— तुम्हें जिंदगी में लाना है।

ग़ज़ल (मुकम्मल) मुस्कुराती कोई कली हो तुम -

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हर कोई तुम में खो जाता है, प्यार की जैसी छवि हो तुम। खुशबू-सी बिखरती हैं बातें, मुस्कुराती कली हो तुम। प्यार-सी प्यारी हो प्यारी-सी, प्यार से मिलकर बनी हो तुम। क्षण भर में मन को लुभा लेती, स्वर्ग की कोई परी हो तुम। यूं दिल में घर कर ही जाती हो, सदा से जैसे आवासी हो तुम। भीग जाते हैं सबके ही मन, जब हंसी अपनी बरसाती हो तुम। सब बेबस-से होकर रह जाते, क्या जादू कर जाती हो तुम। कितना भी कोई संभाले खुद को, बस आकर्षित कर जाती हो तुम।

तू ही बता क्या यार कहूं? (मुकम्मल)

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हंसती कली कहूं कोई परी, फूलों की महक कहूं प्यार कहूं। हर शब्द मुझे छोटा सा लगे, अब तू ही बता क्या यार कहूं॥ मैंने बहुत से चेहरे देखे, क्या तुम्हें ही सारा संसार कहूं। हर तरफ नज़र आती हो मुझे, उड़ती हवा कहूं बहार कहूं॥ खुशी की तरह बसी हो मन में, क्यों खुद को फिर मैं उदास कहूं। तुम्हें देखकर खुश होता है दिल, क्या मन में बसा विश्वास कहूं॥ नित-दिन मन-आंगन में आती, तुम्हें स्वप्न कहूं मधुर अहसास कहूं। बढ़ती जाती पल-पल जो आश, क्या इन आंखों की वही प्यास कहूं॥ नाराज़ न हो जाना मुझसे, तुम कहो तो मैं एक बात कहूं। खूबसूरत बहुत हो बातों से, रूप-रंग में केवल इंसान कहूं॥

प्रिय मेरा अरमान हो तुम - कविता

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मासूम चेहरा, नीची निगाहें, प्यार की पहचान—तुम। बरसों से जगा है जो दिल में, प्रिय मेरा अरमान—तुम। जब प्यार तुम्हारे भी दिल में है, फिर क्यों मुझसे अनजान—तुम? नज़र चुराती हो ऐसे, जैसे कोई नादान—तुम। एक तुम्हें ही दिल में बसाया, हां, इस दिल की मेहमान—तुम। जिसे देख सभी खो जाते, वही प्यारी सी मुस्कान—तुम। ख़ुदा ने किया था जो एहसान, उस रोज़ का इनाम—तुम। जिसे पाने की ख्वाहिश है दिल में, मेरा खोया हुआ जहान—तुम।

सिद्धूराम पहलवान - एक व्यंग

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सिद्धू जी का मशहूर था पूरे गांव में नाम पढाई में बेकार बस था पहलवानी का काम। बार-बार एक ही कक्षा में फेल हो जाते परीक्षा के समय भी अखाड़े में दिन बिताते। चाहते खुद को अत्यधिक मजबूत बनाना उनका सपना था पहलवानी में नाम कमाना। एक बार ‘सत्यं‘जी इसका कारण पूछ बैठे तो- बड़े ही रोब-दाब से बुलंद आवाज में ऐठे- पहलवान हूं, फिर भी नहीं कोई महिला साथी दिल को मिले सुकून जब लड़कियां हाथ हिलाती। कुश्ती के समय भी मैं उनसे नजरे नहीं हटाता और देखने के चक्कर में बार-बार चित हो जाता। ‘सत्यं' ने समझाते हुए, अरे छोड़ो! ये सब काम। पहलवानी के नाम पर खुद हो जाते हो बदनाम। पहलवानी से अच्छा, अंग्रेजी सीखी जाती। चार शब्द बोलते ही लड़कियां खींची चली आती। सिद्धू ने सोचा यह नुस्खा अवश्य आजमाऊंगा, पांच-छह महीनों में अंग्रेजी सीख जाऊंगा। लेकिन पढ़ने-लिखने में थे उनके पहले से ही टोटे किया करते थे याद अध्याय को रोते-रोते। पांच-छह महीनों में ‘येस-नो‘ पहचान गए साहब अपने मन में सोचा पूरी अंग्रेजी जान गए। एक बार थे वे एक शादी में जाए हुए उस शादी में थे कुछ अंग्रेज आए हुए। अंग्रेजन ने हाथ मिलाकर पूछा सिद्धू से नाम जो भी रटा था ...

अंजान मुहब्बत (एक दिलचस्प कहानी)

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एक लड़का जो कि एक लड़की से अत्याधिक प्रेम करता था मग़र कभी भी उसके सामने कह नहीं पाया। उसके लिए एक मात्र सहारा थी वो, खुद से भी ज्यादा उसे प्रेम करता था। लड़की उससे हमेशा ही उससे दूरी करती और नज़रे झुकाकर बेरूख़ी करती थी। जिसे वह सहन नहीं कर पाता था और खुद को धिक्कारता था। वह लड़की को अपनी बेबसी समझता था और जानते हुए कि वह शायद कभी भी उसे पा नहीं सकेगा तो भी उसे बेइंतहां प्रेम करता था। एक दिन अचानक उस लड़के को ख़बर मिलती है कि उस लड़की की सड़क पार करते समय एक गाड़ी से दुर्घटना हो गई है और वह अस्पताल में भर्ती है। वह ख़बर सुनते ही चौंक पड़ा और निर्देशित अस्पताल के लिए दौड़ता है। अस्पताल पहुंचकर वह देखता है कि लड़की मूर्छित दशा में बिस्तर पर लेटी हुई है। वह डॉक्टर की आज्ञा से उसके कमरे में प्रवेश करता है और तो पाता है कि दुर्घटना में उसका दाईं तरफ से चेहरा काफि बुरी तरह से जख्मी हो गया है। उसे यह देखकर काफि दुख होता है मानो उसकी जान ही निकल गयी। लेकिन वह यह सब देखकर स्वयं को नहीं बदलता और कल के जैसी ही उसे प्रेम करता है और अस्पताल से चला जाता है। अब वह लड़की का ठीक होने तक बेक़रारी से इं...

प्यार को त्याग भी कहते है (मुकम्मल)

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एहसास प्रिय मेरे मन को, जब क्षण तुम्हारा होता है। मन सोच में डूबा रहता, दूर कहीं खोता जाता है॥ उड़ने को मन चाहे नभ में, बादल के घर तक पहुँचूँ। पथ पर पवन बतियाने को, मदमस्त हृदय से मैं रुचूँ॥ ओ बहारों! ओ दिशाओं! क्यों रूप नया दिखलाते हो? क्या तुमको भी खींच रहा है, प्रेमिल संकेत इशारों से॥ क्यों मन चाहे छूना उसको, अज्ञात कथा भी कह देना। निहार निहारे अनंत क्षण, हृदय में उसको रख लेना॥ क्या है ये? क्यों है ये ऐसा? क्यों बहकाता मन को मृदु? अनजान कशिशें खींचें हैं, फिर भी समझ न पाता क्युं॥ सपनों के संचित उजियारे, क्षणभर में क्यों ढल जाते हैं? जब याद अचानक आती है— “प्यार को त्याग भी कहते हैं।”

काश! ऐसा होता। - कविता

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एक प्रातः ऐसी थी, जब समस्त दिशाएँ महकी थी। वातावरण शुद्ध, शीतल, सुगंधयुक्त, हरियाली बिखरी दिखाई देती थी। मैं अपनेपन में प्रसन्न, मग्न, मस्त तरंगों में बहा जा रहा था। चला जा रहा था न जाने कहाँ, पवन परों पर खिलखिला रहा था। चौंक उठा उस दृश्य को देख, मेरे सामने कोई आ ठहरा था। दृष्टि चूम न पायी मुखमंडल को, बिखरे काले केश का पहरा था। देखा, मुस्काई, दूर चलने लगी, आत्मा को भी मेरी छलने लगी। मन की जिज्ञासा तीव्र बढ़ने लगी, पूछ बैठा – “अप्सरा हो या परी?” मौन साधे सुकोमल होठ उनके, कोई उत्तर में न हिल पाये। उठते-झुकते तिरछे नयन बस, निरंतर उत्तेजित करते जायें। फिर हुई उनकी कृपा मुझपे, मन के विचार सारे खो गए। चकित ही रह गया स्वयं में, मानो स्वर्ग के दर्शन हो गए। न्योछावर हो चला एक क्षण में, मैंने स्वयं को जैसे खो दिया। उनकी लुभाती कलाओं ने जब, प्रेम का संदेश दिया। उत्सुक हो ज्यों ही मैं आगे बढ़ा, गाल पर मेरे एक थप्पड़ पड़ा। माँ को देखा सवेरे सामने खड़ा, वो प्रातः का स्वप्न बड़ा महँगा पड़ा।

लहराती पतंग - कविता

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उड़ती, लहराती, बलखाती पतंग हवाओं के परों पर खिलखिलाती पतंग भुलाकर दिल से दुख और ग़म चली है गगन को लेकर मन में उमंग उठती-झुकती हृदय में लिए तरंग बहती पवन में यूं करती उधम् चंचल गौरी जैसे पिया के संग रास-रचाती थिरकती बनके नृतक धागे संग बंधी यूं हो मंडप में दुल्हन लेती फेरे मिलाकर क़दम से क़दम खुशी के बिखरे हैं चहो-ओर नवरंग बिताएगी वह कुछ क्षण खुद के संग हो गई घनी देर करते प्रेम-प्रसंग जाना चाहती है दूर होकर पिया से तंग

तुम भी मुझको याद करोगी - कविता (मुकम्मल)

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बेशक आज तुम मुंह मोड़ो, अपना मिलने की फ़रियाद करोगी दिल में बसा हुआ है प्यार तुम्हारा, एक दिन यह स्वीकार करोगी जिस तरह पल-पल मैं मरता हूँ, तुम भी मेरा इंतजार करोगी सूरत मेरी ना देख सकोगी, रो-रो कर बस बुरा हाल करोगी प्यार को मेरे समझोगी जिस दिन, हाज़िर खुद अपनी जान करोगी खुद ही खुद में मर जाओगी, जिस दिन मुझे एहसास करोगी जब तड़प बेचैन करेगी, दीदार मेरा कई बार करोगी पलभर भी जुदाई ना भाएगी तुमको, आँखों में बसाकर प्यार करोगी

परचम बदलने वाला है - कविता (मुकम्मल)

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सवेरा होने वाला है, परचम बदलने वाला है छुपा सूरज खुशहाली का, अब चमकने वाला है हाथी फिर उतरेंगे रण में, हाथ उठेंगे सहारे को बहुत ही जल्द ज़माने का, मंज़र बदलने वाला है जो फैला आसमां दूर तलक, इंसानियत भी नीली होगी कर्ता-धर्ता हम भारत के, सब सँवरने वाला है तपिश भरे सफ़र के बाद, ठंडी रात का मौसम होगा वहशियाना ये सफ़ेद रेगिस्ताँ, गुज़रने वाला है अर्श-ओ-फ़र्श सब नीला होगा, हाथों में संविधान लिए ये क़ाफ़िला हर इक घर से, निकलने वाला है सवेरा होने वाला है .................…............

Teeth - A Tool, Not a Habit

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Teeth are an important part of human beings. With the help of which human beings can easily do the work of eating food, cutting thread and peeling off some things. The maximum number of them in the mouth can be thirty-two (32), out of which there is no set time for the growth of two teeth and both of them are called 'wisdom teeth'. Teeth never prove that - what will a tooth-fed creature eat? Because in ancient times only human flesh was eaten. Because he did not have knowledge about other foods. As he had knowledge about other foods and humanity, he changed his needs according to his thinking and gave proof of being an intellectual. Teeth have no relation with eating meat because the bird vulture, which does not have a single tooth in its beak, does not eat anything other than life meat. This tendency is based on need, environment and generosity (affection) and it may be that the flesh-eating organisms are living in an environment that is not favorable for them or that the full...

Mother of India ‘Shudra’

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Based on the Harappan civilization, Naga lineage, Vedas, Puranas, and archaeological evidence, every tribal, indigenous woman and Shudra (non-Aryan) living in India belongs to the Naga or Maurya lineage. History bears witness that when the Aryans—whose DNA has been identified as R1A1—came from Central Asia with the aim of looting India, they did not bring a single woman with them, much like the Arab invaders. They discovered iron and used it to forge weapons, with which they conquered the indigenous tribal people of India—whose DNA is L3MN—and married the Shudra women (non-Aryan), who were of Naga or Maurya lineage. Establishing themselves as rulers, they founded Brahmanism. They categorized women as Shudras as well, and imposed harsh rules on them similar to those placed on Shudra men—such as slavery, denial of education, and systemic injustice. Women were used primarily for reproduction and physical exploitation. Today, regardless of caste or religion—whether Brahmin, Kshatriya, Vais...

शूद्र समाज के भटके लोग!

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1) अगर बाबा साहब स्वार्थी होते तो जातिवाद ऊंच-नीच तथा गुलामी के डर से भारतीय नागरिकता को छोड़कर अमेरिकी या अन्य देश की नागरिकता ग्रहण कर लेते और वहां आराम से जिंदगी गुजारते, किंतु पढ़ाई करने के बाद वे फिर से भारत आए और लोगों का दर्द देखा तथा उनके लिए आंदोलन चलाएं और उन्हें  गुलामी से आजाद कराया जिससे आज हम लोग स्वतंत्र हैं। उन्होंने हमें वोट का अधिकार दिया और आज इसी वोट की ताकत से हम अपना नेता चुन सकते हैं 2) आज हमारे लोग लालच मे अपने ही स्वार्थ के बारे में सोच रहे हैं दिल्ली जैसे छोटे राज्य को छोड़कर अन्य प्रदेशों में हमारे जो लोगों की स्थिति है उस विषय में बिल्कुल भी विचार नहीं कर रहे। यह लोग बखूबी जानते हैं कि छोटी-छोटी सरकारे अन्य प्रदेशों में हमारे लोगों की सहायता नहीं कर सकती। 3) मैं ₹200-300 की फ्री बिजली व पानी के लालच में अपने समाज के साथ गद्दारी नहीं करूंगा। सरकार शराब के ठेके बंद कर सकती है जहां जाकर हमारे लोग ₹500 से ज्यादा की तो 1 दिन में शराब पीकर खर्च कर देते हैं। 4) दिल्ली एक छोटा सा राज्य है जो उत्तर प्रदेश से 164 गुना छोटा है। दिल्ली में रह रहे हमारे समाज के ...

हिदायत ए इस्लाम

दिल जब लगे अपना तुम्हें मैला कभी, पाँच वक़्त हाथ वुजू कर पाक किया करो तय तेरी हो जाएगी जन्नत में ज़मीं, बावक़्त अदा रोज़ नमाज़ किया करो। दाग़ न लग पाए गुरूर का किरदार पे, अल्लाहु अकबर नाम की टोपी ओढ़ लिया करो। हर कारोबार में होगी बरकत और नफ़ा, “बिस्मिल्लाह” से हमेशा आग़ाज़ किया करो। गर याद हो तुम्हें वो ग़ुरबत के दिन, मुफ़लिसों को मुमकिन हो ज़कात दिया करो। बख़्शी हो ख़ुदा ने मालदारी मुक़द्दर में, किसी भूखे को याद कर रोज़ा रखा करो। गर न हो फ़रमान-ए-सफ़र-ए-ख़ुदा, किसी ग़रीब को हज वास्ते दिलशाद किया करो। ये फ़रमाया था उस पैग़ंबर ने “सत्यं”, अमन-ओ-चैन से बसर ज़िंदगी अपनी किया करो।

भारत की माता ‘शूद्र’ (लेख)

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हड़प्पा सभ्यता, नागवंश, वेद-पुराण व पुरा तत्वों के आधार पर भारत में रहने वाली प्रत्येक आदिवासी मलनिवासी स्त्री शूद्र (अनार्य) यानि नागवंशी या मौर्य वंश की हैं।      इतिहास गवाह है कि जब आर्य शोध में जिनका DNA R1A1 के रूप में पाया गया गया मध्य एशिया से भारत को लूटने के उद्देश्य से आये तो ये लोग भी अरब-लूटेरों की ही तरह अपने साथ एक भी महिला को नहीं लेकर आये थे। उन्होंने लोहे की खोज की और फिर हथियारों के बल पर यहां के आदिवासी मूलनिवासियों जिनका DNA L3MN है की युद्ध में जीती हुई  शूद्र स्त्रियां (अनार्य) यानि नागवंशी या मौर्य वंशी  से विवाह रचाया तथा यहां के निवासी बनकर र्स्वस्त पर अपना अधिपत्य स्थापित कर ब्राह्मणवाद की स्थापना की। उन्होंने स्त्रियों को भी शूद्रों की श्रेणी में रखा तथा पुरूष-शुद्रों की तरह ही उन पर भी कड़े नियम लागू किए जैसे- गुलामी, अशिक्षा तथा अन्याय आदि। स्त्रियों को बच्चे पैदा करने तथा उनका शारीरिक शोषण करने के लिए ही इस्तेमाल किया जाता था। आज भारत में जिस भी जाति-धर्म के लोग निवास कर रहे हैं चाहे वे ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य या फिर शूद्र ...

दाँत (लेख)

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दांत मनुष्य का एक महत्वपूर्ण अंग है। जिसकी सहायता से मनुष्य खाना खाने से लेकर धागा काटने व कुछेक वस्तुओं को छिलने का काम आसानी से कर लेता है। मुंह में इनकी संख्या अधिकतम (32) बत्तीस हो सकती हैं जिनमें से दो दांतो के उगने का कोई निर्धारित समय नहीं होता है तथा वे दोनो ही ‘अक्ल दाढ़’ कहलाती हैं। दांत कभी भी ये साबित नहीं करते हैं कि- दांतधारी जीव क्या खायेगा? क्योंकि आदिकाल में मानव मांस ही खाता था। उसे अन्य खाद्य-पदार्थों के विषय में ज्ञान नहीं था। जैसे-जैसे उसे इनके विषय मेंं ज्ञान होता रहा उसने अपनी आवश्यकताओं को अपनी सोचानुसार बदल लिया तथा बुद्धिजीवी होने का प्रमाण दिया।  दांतो का मांस खाने से कोई सम्बंध नहीं है क्योंकि पक्षी गिद्ध जिसकी चोंच में एक भी दांत नहीं होता  वह आजीवन मांस के अलावा कुछ नहीं खाता। यह तो प्रवृति, आवश्यकता, वातारण, ज्ञान व उदारता (स्नेह) पर आधारित होता है और यह भी हो सकता है कि मांस खाने वाले जीव ऐसे वातावरण में जी रहे है जोकि उनके लिए अनुकूल नहीं है या फिर यह भी हो सकता है कि प्रतिकूल जीनों की उपस्थिति के कारण उनकी बुद्धि का पूर्णरूपेण वि...

नज़्म 2 (मुकम्मल) उम्मीद न कर

ग़म से उजड़ा है दिल मेरा, तू ख़ुशी की उम्मीद न कर अश्क ही तेरे दामन में आएँगे, मुझको चुराने की उम्मीद न कर ख़ुद से बोझिल एक पत्थर हूँ, मुझको हिलाने की उम्मीद न कर वीरानियाँ हैं दिल में घर कर गईं, अब हँसी की उम्मीद न कर मंज़िल से भटका कोई राही हूँ, मुझसे सहारे की उम्मीद न कर जाने किस ठिकाने पर हो बसेरा, मुझसे पनाह की उम्मीद न कर जिससे दिल लगाया, बेवफ़ाई मिली — मुझसे वफ़ा की उम्मीद न कर जाने कब ज़ुबाँ से फिर जाऊँ, तू इख़्तियार की उम्मीद न कर फ़क़्त थोड़ी-सी है ज़िंदगी मेरी, लंबी मुलाक़ात की उम्मीद न कर क्या पता कब ये दम निकले, मेरी साँसें चलने की उम्मीद न कर

नज़्म 2 (मुकम्मल) शायद करती होगी

शरमाई झुकी आँखों से ज़ाहिर ये होता है शायद मेरे बाद वो मुझ पर मरती होगी रू-ब-रू होते ही नज़र क्यों चुरा लेते हैं बाद मेरे मिलने की फ़रियाद करती होगी मालूम है हमें पत्थर-दिल नहीं है वो प्यार के बदले वो भी प्यार करती होगी बेबसी में न कह दूँ हाल-ए-दिल अपना सोच कर ख़ुदी से तकरार करती होगी दिल में होंगे इज़हार के कई जवाब अधूरे पर होठों से झूठा ही इंकार करती होगी यक़ीं है हमें ये मोहब्बत एक तरफ़ ही नहीं मेरी याद में वो भी देर रात जगती होगी ग़ैरों के सामने बेशक इंकार कर दे हँसकर तहे-दिल से बेशुमार मुझे प्यार करती होगी