Maa Baap Shayari
मेरी बदनसीबी ने ख़ाक में मिला रखा था मुझें
वो ख़िज़ां के मौसम की आंच दिल में दफ़न है
फिर भी छूते रहें क़दम मेरे क़ामयाबी की मंज़िल
ये मेरी मां की दुआओं का असर है
मेरा दिल गवाही ये बार-बार देता है
जब है पिता सलामत तो चाहत नहीं ख़ुदा की
इस मतलबी दुनिया में कोई सहारा ना मिला
वो मां थी जो मरने के बाद भी मेरे काम आई
आ मेरे जिग़र के टुकडे तुझे आंखों में बसा लूं
तूने चलना भी नहीं सीखा और दरिया सामने है तेरे
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https://youtu.be/UcOdA45dKXc
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