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सर्दी पर शायरी | जाडे पे शेर शायरी

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इस बार की सर्दी हिज्र में ऐसी कट रही है मैं यहाँ तप रहा जुदा वो वहाँ तप रही है अबकी बार मौसम में क्या तब्दीली आई है बाहर सर्दी कड़ाके की, अंदर गरमी छाई है कड़ी सर्दी, तेरी फ़िक्र और मेरा दिल टूटना हर मौसम मेरे ख़िलाफ़ है, ख़ुदा ख़ैर करे उम्मीद थी कि अगले बरस बना लेगा रज़ाई अपनी, वो शख़्स सर्दी से लड़ा पर महँगाई से मर गया। यूँ तो जायज़ है मेरे जिस्म की ये कंपकंपाहट, ‘सत्यं’, एक तो सर्दी बहुत है और सामने वो भी खड़ी है। यह आलम शहनाई का होता तो अच्छा होता, हिसाब जज़्बात की भरपाई का होता तो अच्छा होता। कमबख़्त कंबल की आग भी अब तो बुझने लगी है, इस सर्दी इंतज़ाम रज़ाई का होता तो अच्छा होता।

अंबेडकर साहब के परिनिर्वाण पे शायरी | Baba Sahab Ambedkar Ji ki Shayari

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दुनिया में कहीं ऐसा नज़ारा न हुआ, बे-सहारों का कोई सच्चा सहारा न हुआ। बाबा बहुत आए इस ज़माने में मगर, बाबा भीम जैसा कोई दोबारा न हुआ। खुदगर्ज़ बड़े हैं लोग जो एहसान भूल गए, हर क़ौम की खातिर दिया जो बलिदान भूल गए। आँधियों से गुज़ारिश है अपनी हद में ही रहें, बाबा साहब की क्या आँख लगी औक़ात भूल गए वो शख़्स हमें सदियों की मिसाल दे गया, संविधान रचा, समता की मशाल दे गया। नींद से उठा वो फ़रिश्ता तूफ़ान की तरह, और सारी बलाएँ अपने साथ ले गया। मेरी उस निशानी को अपनी जान समझ लेना, हिफ़ाज़त करना उसकी यही ईमान समझ लेना। क्यों रोते हो मेरे बच्चों, मैं गुज़रा नहीं अभी तक, गर संविधान बदले तो मुझे बेजान समझ लेना। दुश्मन की साज़िश को उसने नाकाम कर दिया, जो भी आया पनाह में, उसे माफ़ कर दिया। ना शमशीर उठाई, ना भीम ने खंजर उठाया, बस इल्म की ताकत से हर इंसाफ़ कर दिया। कुछ फ़रिश्ता कहते हैं उनको, कुछ मसीहा कहते हैं, सबका अपना बड़प्पन है, सब बड़प्पन में रहते हैं। छुपकर भी न छुपने वाला वो सूरज एक ऐसा उगा, जिसको अदब से दुनिया वाले ‘बाबा साहब’ कहते हैं। तेरी नापाक साज़िश और इरादे को समझ रखा है, बड़ी ग़लतफ़हमी मे...

Sher 11

मोहब्बत में हार गया तुझे तो क्या, अभी आधी दुनिया मेरी तलाश में है। उससे इक-तरफ़ा मोहब्बत का सिला यूं मिला यारों, अज़िय्यत, शर्रिय्यत, फ़ज़ीहत मिली और तो कुछ भी नहीं। न शराफ़त उसने छोड़ी, न जिस्म की नुमाइश की, एक दौलतमंद ने हरगिज़ न दौलत की आज़माइश की। उसने मेरी वफ़ा का तमाशा बना दिया, मैं समझा कि मोहब्बत महफ़ूज़ हाथों में है। मालूम है मेरे दिल की दहलीज़ तक उसे, लेकिन अड़े हैं ज़िद पे कि हम पुकार लें उसे। कल जितनी गरमी थी, आज उतनी ही नरमी है, वो दौर बहाव का था, ये दौर ठहराव का है। मेरी ख़ुश्क आँखों ने बदलता दौर देखा है, हमने कुछ और देखा था, तुमने कुछ और देखा है। उफ़! मोहब्बत भी बहुत मजबूरियों का सौदा है, हर सूरत दिल को दिल से बदलना पड़ता है। इस तरह से लोग अपना फ़र्ज़ निभा रहे हैं, बातों से पेट भर रहे हैं, आँसू पिला रहे हैं। हम शायरों को पेड़ गिनना भी जरूरी है  हमारी हदे सिर्फ आम खाने तक तो नहीं

Sher 11 ना-खुदाई (मुकम्मल)

ना काफ़िर हूँ, ना जन्नत का त़ालिब हूँ मैं, एक कलंदर हूँ, अपने दिल का मालिक हूँ मैं बात जब से उस से बनी है, ज़माने से तनातनी है, मैं भी हूँ वफ़ादार उस से, वो भी सनातनी है।

Ghazal 5 (मुकम्मल)

ता’उम्र को मिला ज़ख़्म निशानी की तरह, मैं ख़ून था जो बहा दिया पानी की तरह। मैंने साथ रहने की अपनों से मिन्नतें की, वो बात भी करते थे मेहरबानी की तरह। चाहे जितना भी तुम अहम किरदार बनो, तुम्हें भुला दिया जाएगा कहानी की तरह। मिट्टी को मिलना है इक दिन मिट्टी में, ग़ुरूर भी ढल जाएगा देख जवानी की तरह। फिर उससे तर्क-ए-त’अल्लुक़ ठीक नहीं, याद रखना है अगर बात पुरानी की तरह। मुझे छोड़कर अब ग़ुर्बत में गुज़ारा करती है, जो मुझ पर हुकूमत करती थी रानी की तरह। तू भी दुनिया के रंग मुझे दिखाने लगी, मैं छोड़ दूँगा तुझे अब दिवानी की तरह।

Sher 10 (मुकम्मल)

तबीयत मचल रही तो इज़हार कर, चारासाज़ी छोड़, किसी से प्यार कर। उससे इश्क़ है तो छुपाना कैसा, पर्दा गुनाहों पे रख, इबादत पे नहीं। प्यार की बस यही एक शर्त होनी चाहिए इंसाँ को इंसाँ की पहचान होनी चाहिए यह बात जुदा है, वो अब नहीं आएँगे, पर दिल की इल्तिजा है, थोड़ा इंतज़ार कर। मैं सितारों से सरगोशी करता हूं, जुगनुओं को रातभर खलता हूं। न देखो मुझे इतना गौर से यार मैं आंखों पर असर करता हूं। जिससे भी मोहब्बत मुझे हो जाती है, वो मेरी जान से ज़ियादा हो जाती है। मैं अपनी नज़र से उसे गिरता नहीं, जो मेरी हो जाती है, मेरी हो जाती है। उसके सच झूठ में बदलने लगे, सोचते ही आँसू निकलने लगे। वो बेवफ़ा करता था वफ़ा की बात, आज सोचा तो दम ही निकलने लगे। कई दर्द से हर रोज़ उभरती हूँ मैं, कई आँखों से बचकर निकलती हूँ मैं। मैंने चाहा था जीना अपने तौर से, ना-मर्जी मगर राह बदलती हूँ मैं।

Sher 9 (मुकम्मल)

ग़ज़ल उगती नहीं हरगिज़ बंजर ज़मीन पर, यह क़सीदा तजुर्बे के हाथ से बुना जाता है माँगी   जा   रही   है   राय   मेरे   बारे   में , ग़लत   आदमी   मुझे   ग़लत   बता   रहे   हैं । मुफ़लिसी में मोहब्बत का अंजाम यूँ हुआ मैं चलता रहा और  फ़ासले  बढ़ते गए यह फ़र्क तो इंसानी नज़रिये का है सत्यं, वरगना हिदायत-ए-क़ुरआन-ओ-पुराण में ज़रा भी फ़र्क नहीं। बहुत ज़ालिम है दुनिया, ज़रा किनारा करो, खिलते चेहरों से यह हँसी चुरा लेती है। ग़ज़ल उगती नहीं हरगिज़ बंजर ज़मीं से यारो, यह क़सीदा तजुर्बे के हाथ बुना जाता है। हाँ, ये झूठ है कि मैं तुम पर मरता हूँ, तुम सच को तो सच मानने से रहे। कोई सिमट जाए मेरी सूनी बाहों में, है कोई दुनिया में बदनाम होने वाला? मैं समझता था वो समझता है मुझे, कौन खुदगर्ज भला समझता है मुझे। बस यही फ़लसफ़ा सर उठाए हुए हैं हम, मोहब्बत से, ज़माने से शिकस्त खाए हुए हैं हम।

Ghazal 8 (मुकम्मल)

इस बहार में नख़रे मुरझाए गुल पे आ गए, हमसे हुई ग़लती कि हम खुल के आ गए। जो उठाए थे सिर पे गुनाहों का बोझ वो, जा मिले हुकूमत से पाक धुल के आ गए। उसके दिल में पले-बड़े ख्व़ाब बग़ावत के, जुबाँ से अल्फ़ाज़ के सहारे घुल के आ गए। एक हुजूम था मगर कोई भी अपना न था, ग़ैर के साथ ग़ैर से ही मिलजुल के आ गए।

Ghazal 4 (मुकम्मल)

अलग सोच ज़माने की बना लेनी चाहिए, उठे जो भी सदाएँ, वो दबा देनी चाहिए। ज़रूरी नहीं शमशीर क़त्ल को ही उठे, दहशतगर्दी को भी लहरा देनी चाहिए। अँधेरों से जो लड़ते हैं, वही लाते हैं सहर, सदा सबको मिलकर उठा देनी चाहिए। फ़क़त बातें नहीं, हौसला भी चाहिए, अमल की राह आसान बना देनी चाहिए। मुहब्बत के चराग़ों से सजे हर एक दिल, ये नफ़रत की हवाएँ बुझा देनी चाहिए। जो सच की खोज में हैं, उन्हें आवाज़ दें हम, उन्हें इंसाफ़ की मंज़िल दिखा देनी चाहिए। ग़रीबों की दुआएँ ही ख़ज़ाना हैं असल, लागत चाहे जो भी हो उठा लेनी चाहिए। सत्यं इस दौर में इंसानियत की ख़ातिर, कलम को आज तलवार बना देनी चाहिए।

Sher 8 (मुकम्मल)

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यूँ आसाँ नहीं होता, सच-झूठ समझ पाना कई नक़ाब पड़े हैं, एक चेहरे पे आजकल क्यों लगाएं मैंने ये ख़्वाहिशों के मेले, मालूम था जब ख़्वाब हक़ीक़त नहीं होते। कैसे निकालूँ दिल से, बता तुझे ऐ सनम मैंने तो दर-आए को भी गले लगाया है सज्दे की हक़ीक़त न जिन्हें मालूम, वह लगे हैं बेईमानों को ख़ुदा बनाने में। कब तक मुझे इन बंदिशों की हयात में जीना होगा, किस फ़र्ज़ की ग़ैरत के नाम जहन्नुम में जीना होगा। हज़ार ग़म हैं और एक मुसीबत भी तो है, जिसको चाहूं मैं, वही दूर चला जाता है। रुख़ से नक़ाब हटाकर नज़र अंदाज़ करती हो, माज़रा क्या है कि हिजाब से दीदार करती हो। अब मैं ख़ुद से भी रिहा होना चाहता हूँ, एक शख़्स ने छीन ली है आज़ादी मेरी।

मुहब्बत शायरी (4 line)

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एक ज़माना लगा मुझे, तेरी मोहब्बत कमाने में वक़्त नहीं लगता था मुझे वक़्त गवाने में तेरी सारी तस्वीरें जला डाली मैंने एक-एक कर बाख़ुदा हाथ कांपने लगे, आख़िरी तस्वीर जलाने में मेरे मुंह से जो निकले हर बात दुआ हो जाए सज़ा ऐसी मिले उसे, वो रिहा हो जाए वो लोग जो समझते हैं, उनका ही दिल धड़कता है वो भी इश्क में इतना तड़पे, मेरे बराबर में खड़ा हो जाए यह जो इश्क है मेरा बदनाम नहीं होना चाहिए मुहब्बत पे मेरी कोई इल्ज़ाम नहीं होना चाहिए दर्द-ए-दिल की दवा करो मुझे ऐतराज नहीं पर तबीयत में मेरी आराम नहीं होना चाहिए छुपाकर ज़माने से राज़ तेरा, दिल में दफ़न कर लूं अपनी मैय्यत पे ओढ़ लूं, तुझको कफ़न कर लूं ये जो ग़म तेरा, मिला मुझे, सबसे हसीन है बता  कैसे किसी ग़ैर को, मैं इसमें शारीक़ कर लूं इस आलम में तेरा मुझे छू जाना जरूरी है खुशबू बनके रूह में उतर जाना जरूरी है मेरे सफ़र में उठ रहे हैं गर्दिशों के गुबार तेरे दामन का मेरे सर पे बिखर जाना जरूरी है तुम्हें ऊपर से जो बताया गया है सच नहीं है ख़्याल दिल में जो उगाया गया है सच नहीं है तुम मुझे देखते फिरते हो दुनिया की नज़र से मेरी आंखों में आकर प...

एक कलाम सत्यं के नाम | Ek Kalaam Satyam Ke Naam

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दुश्मन को भी नज़र ए इनायत देते हैं हम गुस्ताख़ी पे उसकी पर्दा गिरा देते हैं हम शर्मिंदा ही रहेगा जब भी सामना होगा इज्ज़त उसकी उसी की नज़रों में गिरा देते हैं हम जिनका दिल है घर मेरा वो दिल के अंदर हैं अभी और बहुत है चाहत ऐसे दीवानों की पैदाइशी शौक है ख़तरों से खेलना होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली इन दिनों गर्दिश में है सितारे अपने वरना एहसान बांटे हैं बहुत खै़रात में हमने रौनक ना देखिए मेरी सूरत की ए जनाब मेरे गम को छुपाने का राज़ है ये मत पूछ मेरी दास्तां-ए-ग़म मुझसे मैं बेवजह, किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता झूठ नहीं कहता कईं मोहब्बत मैंने की हासिल की उम्मीद ना रखी बस दिल तक ही रही मुकद्दर ही मेरा खराब है शायद वरना खुशनसीब वो हैं जो उनके करीब हैं मैंने कसम उठाई थी ना गुनाह करने की मालूम ना था, लोग मोहब्बत को जुर्म समझते हैं इक दिल-दरिया को नाज़ था अपनी रवानी पे ठहराव मेरे समंदरे-ग़म देखा शर्मसार हो चली क्या सुनाए तुमको दास्ताने-दिल जीये जा रहे हैं ख़्वाहिशों के सहारे कोई पूछ बैठा के ग़ज़ल क्या है? मैंने इशारों में, अपने दिल के राज़ खोल दिए पूछकर गुज़री दास्तां 'सत्यं' एक शायर को रुला देन...

शायरी की डायरी | Shayari Ki Diary

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वो अब सामने से भी गुजरे तो धड़कन तेज़ नहीं होती वरना तस्वीर से भी होती थी घंटो बातें कभी कभी एक आईने को मैंने आईना दिखा दिया सब में नुक्स निकालता फिरता था शौक भुला दिया मैं अपने चेहरे पर खुशी की झलक रखता हूं अंदर से टूटा हूं मगर दुश्मन को परेशां रखता हूं मजबूरियों पे पाबंद हूं और चुप-चुप रहा नहीं जाता फ़र्क इतना है तुम कह देते हो, हमसे कहा नहीं जाता एतबार कर पैग़ाम ए मोहब्बत जिसके हाथों भेजा वो क़ासिद भी कमबख़्त मेरा रक़ीब निकला क्यों लगाये मैंने ख़्वाइशों के मेले मालूम था जब ख़्वाब हक़ीक़त नहीं होतें ________________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=uHUESJGuUPY&t=46s

हास्य शेरो-शायरी | Funny and Comedy Sher Shayari

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मैं तेरा सिर अपने कांधे पे तो रख लूं तो रख लूं पर क्या करूं तेरी ज़ुल्फ़ों में जूं बहुत है यह एहसान कर दे कहना मान ले मेरा कहीं डूब मर जाके, के मुंह दिखे ना दिखे ना तेरा वो एक हंसी ना, दूसरी हंस गई मैं पटा रहा था तीसरी को, चौथी पट गई जिंदा रहते वो इज़हारे-मोहब्बत ना कर सकी अब भूत बनके मेरे पीछे पड़ी है शे'र तो मैं मार दूं, तकरार से डरता हूं कहीं सज़ा ना दे दे मुझको, सरकार से डरता हूं यह सच है दोस्तों ख़ुदा सबसे बड़ा है वरना सिकंदर जैसे शाह बुखार से ना मारे जाते इतना सूख गया हूं तेरी बेवफ़ाई से के बस जी रहा हूं हकीम की दवाई से एक तो वो बदशक्ल है फिर ऊपर से बेअक़्ल है ____________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=GcrDfWYyFkI&t=69s

गर्मी पर शायरी

के मौसम गर्मी का बडा ही बे-दर्दी होता है ज़ालिम रज़ाई भी कतराती है नज़दीक आने में

Diwan E Satyam | Best Shayari ever

मैंने मुद्दतों में आज आईना देखा लोग बदल गए मैं वैसा ही हूं, इतना देखा नज़रे अब भी उसकी तलाश में लगी रहती है मैं लोगों के बीच घिरा रहता हूं, ये राहगीरों पे टिकी रहती है आफताब अब उसके दरवाज़े की हिफ़जत करता है चांद घटा से निकले भी तो निकले कैसे? कुछ लोग जल्दबाजी में ऐसे कदम उठा लेते हैं पहचान बनाने के चक्कर में पहचान गवां देते हैं सुना है के प्यार आंखों में दिखाई देता है पर कैसे साबित करूं सच्चा है या झूठा है हम अपनी नींद से भी समझौता करने लगे इन सोए हुओं को भी जगाना जरूरी है

Best Sher | Diwan E Satyam

मेरे दुश्मन ही नहीं एक मुझको ग़म देते हैं अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा कभी सिगरेट कभी शराब हर रोज़ नए तज़ुर्बें करता हूं तेरे ग़म में सितमगर अपने रुतबे से भी गिर गया मैं      अपने जज़्बात पे उसूलों सा क़ायम रहा मैं तुम क्या जानो मर-मरके ये रस्म निभाई है ना मदहोशी का ना सरगोशी का मौसम मुझे मिला ये कैसी ग़म की हवा चली हर पल खिज़ा-खिज़ा मिला मैं भी ख़्वाहिशों के शहर में तू भी ख़्वाहिशों के शहर में घर अपना बनाने चले हैं इस तपती हुई दोपहर में ये मेरा बांकपन, शोख़पन, सब कुंवारापन है पर ये शादीशुदा कह रहे हैं आवारापन हैं ____________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://www.youtube.com/watch?v=VfN_0G8aeg0

दर्द भरी शायरी | Best Sad Sher ever

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मैंने ज़माने की हर शय को बदलते देखा है इक तेरी याद के मौसम के सिवा क्यों लगाये मैंने ख़्वाहिशों के मेले मालूम था जब ख़्वाब हक़ीक़त नहीं होतें कैसे निकालूं दिल से बता तुझें सनम मैंने तो दर आये को भी गले लगाया है क्या सुनाए तुमको दास्ताने-दिल जीये जा रहे हैं ख़्वाहिशों के सहारे एक रोज़ उन्हें मांगेंगे दुआ कर खुदा से फ़िलहाल लुत्फ़ उठा रहा हूं इंतज़ार का मत मार पत्थर पे अपना सिर सत्यं चोट पहुंचेगी तुझे दर्द होगा बहुत वक़्त गुज़ार लूंगा किसी भी मुकाम पे मग़र होगी बड़ी दिक्कत शाम के ढ़लते _________________________ वी डियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/T4vfAbUZsyk

दीवान ए शायरी | Diwan E Shayari

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तमाम कोशिशें बेकार ही रही संभल पाने की जब डूब गए हम तेरी आंखों की गहराई में अपनी ख़्वाइशों को यूं ना आज़माया कर कभी भीगने का मन हो तो भीख जाया कर कोई पूछ बैठा के ग़ज़ल क्या है? मैंने इशारों में अपने दिल के राज़ खोल दिए पूछता जो ख़ुदा तेरी रज़ा क्या है तो सबसे पहले तेरा नाम मैं लेता तेरे दीदार में कोई बात है, शायद लड़खड़ाता है जिस्म मेरा इज़ाज़त के बिना यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया  के क़त्ल भी ना किया और ज़िंदा भी ना छोड़ा कल रात तेरी याद ने कुछ इस कदर सताया के आज सुबह हम देर तक सोए कई रात हमने आंखों में गुज़ार दी के तेरा ख़्याल आए तो दूजा ना हो कोई ____________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे क्लिक करें :

ख़ुदा | Khuda | Shayari

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क्या खूब बख़्शी है, ए ख़ुदा ख़्यालों की नेमत तूने हर कोई जिसे चाहे मोहब्बत कर सकता है यह पैग़ाम आया ख़ुदा का मुहब्बत कर ले 'सत्यं' अब क्या कुसूर मेरा जो दिल उन पे आ गया पूछता जो ख़ुदा, तेरी रिज़ा क्या है तो सबसे पहले तेरा नाम मैं लेता तू दे सज़ा उनको या ख़ुदा ऐसी के प्यार उनका भी किसी बेखुद पर आए चल ले चल हाथ पकड़ कर, मुझको दर ख़ुदा के क़ाफ़िर था मैं, जो बेखुदी में सजदा उसे किया एक रोज़ उसे मांगेंगे, दुआ कर ख़ुदा से फ़िलहाल लुत्फ़ उठा रहा हूं, इंतज़ार का कोई ऐसी करामात ख़ुदा, उसे भूल जाने की कर के याद भी ना रहू और इल्ज़ाम भी ना सिर हो कुछ इस कदर खोया हूं, तेरी उल्फ़त में सितमग़र कोई कर रहा तहे-दिल से ख़ुदा की इबादत जैसे तुम सजदा करो उसे लिहाज़ ना हो ग़र ये मुमकिन है फिर कैसे किसी बुत को तुम ख़ुदा बनाते हो? ख़ुदा की रहमत है रुसवाई मेरे मुक़द्दर में वरना मासूम कोई सितमगर नहीं होता जो वक़्त हमने तेरी चाहत में गंवाया इबादत में लगाते तो ख़ुदा मिल जाता कह दे ख़ुदा उनसे चले आए मुझसे मिलने आंखे झपकती है मेरी कहीं देर ना हो हर कोई रखता है ख़्वाहिश इक बार उनको देखकर ख़ुदा करे बार-बार अब उनकी दीद हो ________...

Maa Baap Shayari

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मेरी बदनसीबी ने ख़ाक में मिला रखा था मुझें वो ख़िज़ां के मौसम की आंच दिल में दफ़न है फिर भी छूते रहें क़दम मेरे क़ामयाबी की मंज़िल ये मेरी मां की दुआओं का असर है मेरा दिल गवाही ये बार-बार देता है जब है पिता सलामत तो चाहत नहीं ख़ुदा की इस मतलबी दुनिया में कोई सहारा ना मिला वो मां थी जो मरने के बाद भी मेरे काम आई आ मेरे जिग़र के टुकडे तुझे आंखों में बसा लूं तूने चलना भी नहीं सीखा और दरिया सामने है तेरे ______________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/UcOdA45dKXc

जिंदगी शायरी । Unki Shayari

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हर किसी के रुतबे में थोड़ा फ़र्क होता है कोई उन्नीस होता है, कोई बीस होता है मैंने जलाया है यह चिराग तेरी सलामती के वास्ते तू भी कोई काम ऐसा कर जिससे किसी को दुआ मिले मेरी इन खुश्क आंखों ने एक सदी का दौर देखा है कब्रिस्तान में लेटी लाशों का नज़ारा कुछ और देखा है उम्र-तजुर्बा-बदन नाज़ुक-नाज़ुक तेरा मत खेल पत्थर से चोट पहुंचेगी बहुत तेरी उम्र क्या है, हस्ती क्या है? कुछ नहीं दो पल की ज़िदगी है बस, ख़बर कुछ नहीं अब होगी तेरी रुसवाइयां महफिले-आवाम 'सत्यं' बेखुदी में बढ़कर उनका दामन जो थामा है हमसे ना पूछो इस दौर में कैसी गुजर रही है? जिंदगी बस यूं ही उतार-चढ़ाव में उलझ रही है __________________________ https://drive.google.com/file/d/17hAYayWGjf5zv2rDfBoG9ehr8hTngLBq/view?usp=drivesdk __________________ वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/ceDMkPYDfhg

Best Sher ever (Diwan E Satyam)

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हम बेखुदी में जिसको सज़दा करते रहे कभी ग़ौर से ना देखा पत्थर का बुत है वो तू दे सज़ा उनको  या ख़ुदा ऐसी के प्यार उनका भी  किसी बेख़ुद पर आए शायद आज मेरी दुआ रंग ला रही है मैंने तड़पते देखा है उसे  किसी के प्यार में कह दे ख़ुदा उनसे  चले आए मुझसे मिलने आंखे झपकती है मेरी  कहीं देर ना हो मैंने कसम उठायी थी ना ग़ुनाह करने की मालूम ना था  लोग मोहब्बत को ज़ुर्म समझते हैं कईं मोड़ से गुज़रे  राहे उल्फ़त में  ' सत्यं ' सोचा था मैंने यूं  आसानियां होंगी _____________________________________ वी डियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : Click on link to watch this video :  https://www.youtube.com/channel/UCz4eH25RtNtKH78fWBWlOJw

दीवान ए सत्यं | Diwan E Satyam | Anil Satyam

मेरे दुश्मन ही नहीं एक, मुझको ग़म देते हैं अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा कभी सिगरेट कभी शराब हर रोज़ नए तज़ुर्बें करता हूं तेरे ग़म में सितमगर अपने रुतबे से भी गिर गया मैं मैं भी ख़्वाहिशों के शहर में, तू भी ख़्वाहिशों के शहर में घर अपना बनाने चले हैं, इस तपती हुई दोपहर में कईं राज़ मैनें सीने में उतार रखे हैं बहते आंसू आंखों में संभाल रखे हैं यूं ना आज़माइश करो मेरे सब्र की मैंने कईं चांद जमीं पे उतार रखे है मैं सुनाऊंगा दास्ताने-इश्क, कोई सवाल तो दे अश्क छिपा सकूं महफ़िल में, रुमाल तो दे इतना भी नहीं आसां यह राज़ बताना मेरे हाथों में छलकता एक जाम तो दे। इस प्यास में प्यार की सौगात मिल जाए तपती ज़मीं को अल्हड़ कोई बरसात मिल जाए हाथ मिलाना तो जैसे ग़ैर-ज़रूरी है जरूरी ये है बहोत के ख़यालात मिल जाए

Diwan E Satyam | Best Sher ever | शेर

हम बेखुदी में जिसको सज़दा रहे करते कभी ग़ौर से ना देखा पत्थर का बुत है वो कईं मोड़ से गुज़रे राहे उल्फ़त में 'सत्यं' सोचा था मैंने यूं, आसानियां होंगी ना करते हम इतनी मोहब्बत उनसे मालूम होता ग़र वो मग़रूर हो जाएंगे उन्हें मालूम हो गया हमें सुकून मिलता है तो ज़ालिम हंसी भी अपनी दबाने लगे शायद आज मेरी दुआ रंग ला रही है मैंने तड़पते देखा है उसे किसी के प्यार में मैंने कसम उठायी थी ना ग़ुनाह करने की मालूम ना था लोग मोहब्बत को ज़ुर्म समझते हैं क्या खूब बख़्शी है ए ख़ुदा, ख़्यालों की नेमत तूने हर कोई जिसे चाहे, मोहब्बत कर सकता है ______________________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/pxV33VKu65Q

बेवफाई की दर्द भरी शायरी | Bewafai ki Dard Bhare Shayari

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यह कैसे मुकाम पे हम आ खड़े हुए तुम्हें दिल में बसाकर भी तन्हा से लगते हैं यह कैसी सज़ा मुझें वो शख़्स दे गया के क़त्ल भी ना किया और ज़िंदा भी ना छोड़ा कैसे निकालू दिल से बता तुझे सनम मैंने तो दर आये को भी गले लगाया है मत पूछ मेरी दास्तां ए ग़म मुझसे मैं बेवज़ह किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता इस बार ग़ुनाह हमसे बड़ा संगीन हो गया उस बेवफ़ा पे फिर से हमें यकीन हो गया ग़र होती ख़्वाबों पे हुकूमत अपनी तो हर-शब तेरा दीदार मैं करता कईं मोड़ से गुज़रे राहे उल्फ़त में 'सत्यं' सोचा था मैंने यूं, आसानियां होंगी सुना है बिछुड़कर बढ़ जाती है मोहब्बत और वो तो ग़ैर के हो गए दो पल की जुदाई के बाद इक मुद्दत से ज़ुबां ख़ामोश है मेरी सोचा कह दूं हाले-दिल तड़प अच्छी नहीं होती ______________________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/ZK8ld6YDNPw

10 शेर | Best Sher ever from Diwan E Satyam

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हर कोई रखता है ख़्वाहिश एक बार उनको देखकर के खुदा करे बार-बार अब उनकी दीद हो तमाम कोशिशें बेकार ही रही संभल पाने की जब डूब गए हम तेरी आंखों की गहराई में शायद मेरी हसीना मेरे सामने खड़ी है इक मौलवी ने कहा था वो मगरूर बड़ी होगी मुद्दत हुई उनके पहलू से जुदाई मेरी एक ज़माना था निग़ाह भरकर देखा किए नादां भी बड़ी-बड़ी चीज़ चुरा लेते हैं दिल के साथ-साथ नींद उड़ा लेते है हमने ही ना चाहा हासिल तुझे करना वरना दिल में ठान लेने से क्या कुछ नहीं होता मानकर उसकी बात मैं दूर चला आया पर तजुर्बा नहीं ज़रा ख़्वाहिशों को मिटाने का मेरे दुश्मन ही नहीं एक मुझको ग़म देते हैं अब तो इनमें सितमग़र तेरा नाम भी आने लगा __________________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/0GVkSM2JSLw

Best Sher ever | शेर

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चंद्र रोज़ हुए इस शहर की सहर मुझे भाती थी बहोत पर क्यों ना जाने आजकल मुझे शब से प्यार है तेरी याद आते ही दिल ग़मगीन हो जाता है अब तो इतना भी नहीं के तेरे नाम से हंस लूं मुझे खुद्दारी ने हाथ फैलाने ना दिया पर झुक गए सर कईं खुद्दार लोगों के उनकी मिशाल तुमको मैं किस तरह से दूं देखता है जो भी अजूबे आठ कहता है वो बेरुख़ी करते हैं मेरे दिल से जाने क्यु़ जिन्हें करीब से तमन्ना देखने की है ______________________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/rXYKWQo_3j4

शेर शायरी | Sher Shayari | 10 Best Sher ever | शेर

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जिनका दिल है घर मेरा वो दिल के अंदर हैं अभी और बहोत है चाहत ऐसे दीवानों की इक दिल-दरिया को नाज़ था अपनी रवानी पे ठहराव मेरे समंदरे-ग़म देखा, शर्मसार हो चली कोई पूछ बैठा के ग़ज़ल क्या है? मैंने इशारों में अपने दिल के राज़ खोल दिए तेरी उमर क्या है? हस्ती क्या है? कुछ नहीं दो पल की ज़िदगी है बस ख़बर कुछ नहीं मैं एक मुसाफ़िर हूं तेरी रज़ा की किश्ती का चाहे साहिल पे ले चल चाहे डुबा दे मुझें यह पैग़ाम आया ख़ुदा का मुहब्बत कर ले 'सत्यं' अब क्या कुसूर मेरा जो दिल उन पे आ गया एतबार कर पैग़ाम ए मोहब्बत जिसके हाथों भेजा वो क़ासिद भी कमबख़्त मेरा रक़ीब निकला _______________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/0lukkBgbLRY

कुछ दिलकश शेर | Kuchh Dilkash Sher

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मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता पैदाइशी शौक है ख़तरों से खेलना होता रहे सामना सो मोहब्बत कर ली हर रोज़ गुजरे हम मुश्किलों के दौर से इन ख्वाहिशों ने शौक अपना मोहब्बत बना दिया कुछ देर अपने दामन की छांव में ले ले मैं ज़िंदगी के सहरा में भटका हूं बहुत दूर ये ख्वाहिश लिए दिलों पे होगी हुक़ूमत अपनी दौरे-शामत से गुजरे इस कशमकश में घिरकर मैंने चंद रोज़ में देखे हैं कई मोड़ अनजाने गुजरी है ज़िंदगी कई दौर से मेरी खुशनशीब हैं वो जो इसमें सुकूं पाते हैं वरना मोहब्बत को आता नहीं ग़म देने के सिवा _________________________ वीडियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/uPdge9dBwFI

नशा | Nasha | शराब और आंखें

मय पीकर मुझसे सँभलते नहीं जज़्बात मिरे, होश में रहता हूँ तो ख़ामोश ही रहता हूँ। बैठ साक़ी नज़र में मिरी देर तक आज बड़ा मन है मदहोश हो जाने का ******************* या तो आंखों में उतर जा या जाम में उतार दें मेरी फ़ितरत है, मैं दो नशे एक साथ नहीं करता शराब पी है लेकिन, बहुत होश में हूं तू नज़र हटा नज़र से बहकने का डर है मयखाना बंद है, उसका घर भी दूर है आज रात याद उसकी, मुझे क़त्ल करके छोड़ेगी तमाम कोशिशें बेकार ही, रही संभल पाने की जब डूब गए हम, तेरी आंखों की गहराई में तेरी आंखें नहीं तो क्या छलकता जाम पीते हैं अब कोई तो सहारा हो जीये जाने के लिए मत फूंक मय से, अपना जिग़र ,सत्यं, बेख़ुद ही होना है तो इश्क़ में जला इस तुम ये कैसे सियासती लफ़्ज़ों में बात करती हो शराब छोड़ने को कहती हो और पास भी आती नहीं के शराब जो हराम थी, हलाल हो गई इजहारे-मोहब्बत होश में ना हुआ बेखुदी में कर दिया पिया करते थे कभी एक जाम से अब तलब बढ़ चुकी, दो आंखें चाहिये हाथ में शराब है आगोश में हो तुम  अब फैसला तुम ही करो मैं कौन सी को छोड़ दूं ______________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https...

Best Sher ever (Diwan E Satyam)

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तेरी तस्वीर में और तुझमें इतना ही फ़र्क है तू रूबरू होती है तो दो बात होती हैं तुम सज़दा करो उसे लिहाज़ ना हो ग़र ये मुमकिन है फिर कैसे किसी बुत को तुम खु़दा बनाते हो फट चुका पन्ना ए ऐतबार किताबे-उल्फत से टूट चुकी कलम जो किसी की शान में लिखती थी गुजरा किए हम राह से यह ख़्वाहिश लेकर रोज़ आज तो किसी सूरत उनसे मुलाक़ात होगी कुछ इस क़दर उलझा दराज़ मुसीबत 'सत्यं' के लोग मुझें दीवाना समझ बैठें तुम भी तोड़ दो दिल मेरा जाओ खुश रहो दर्द में ही पला हूं अब एहसास नहीं होता शायद मिल रही है सज़ा मुझे उस कुसूर की तोड़ा था मैंने दिल एक बेबस ग़रीब का __________________________________ वी डियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/OjK-0bptRac

नई शायरी | New Shayari

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मैंने मुद्दतों में आज आईना देखा लोग बदल गए मैं वैसा ही हूं, इतना देखा मुझे आज भी किसी-किसी से इश्क हो जाता है वो एक मुझे ही इश्क करने वाला ना मिला बादलों से कहदो उसके घर जाके बरसे के याद हमारी भी उस बेख़बर को  आए कुछ लोग जल्दबाजी में ऐसे कदम उठा लेते हैं पहचान बनाने के चक्कर में पहचान गवां देते हैं आफ़ताब अब उसके दरवाज़े की हिफ़ाज़त करता है चांद घटा से निकले भी तो निकले कैसे? सुना है के प्यार आंखों में दिखाई देता है पर कैसे साबित करूं सच्चा है या झूठा है

शायरी ज़रा हटके | Shayari Zara Hatke

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मैंने हर सहर सैर सहरा-ए-शहर में की ये सोचकर वो इक दिन रू-ब-रू होंगे आंखें आंखों-आंखों में आंखों से मिलने लगी आंखों से शर्माकर आंखें आंखों में झुकने लगी बदले में दिल के हमारा भी दिल गया खोया कुछ नहीं दिल का करार मिल गया के नशा तेरे प्यार के पागलपन का ही था एक सर-बुलंद, परस्तिश में, सरफ़रोश बन गया मेरी ग़ैरत से ना इस कदर उलझा करो तुम जब उतरती है तो लोग नज़र से उतर जाते हैं एक तो ग़मे-आशिक़ी और ये मुफ़लिसी सितम इतना ना जी सकता हूं, ना पी सकता हूं ______________________________________ वी डियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/k-OwZLuuSoA

बहका-बहका मौसम

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अपनी ख़्वाहिशों को यूं ना आज़माया कर कभी भीगने का मन हो तो भीग जाया कर तेरे बदन की शायरी में तमाम हरूफ बड़े कटीले हैं मैं शायर बड़ा गठीला हूं इज़ाज़्त दो कुछ अपना लिखूं हमें यूं लगा कि मोहब्बत का जमाना है फरवरी रोज़ ले लिया उसने पर रोज़ देने से मना कर दिया इन दिनों ही तो हम कुछ जुदा-जुदा से रहने लगे एक ज़माने में हमने फूलों की बहोत इज्जत की अब मैं अपने होठों को प्यासा नहीं रखता कई सहराओं से गुज़रा हूं दरिया तक आने में बेशक तू किसी से भी प्यार कर पर मुझे उस चीज से मत इनकार कर ता-उम्र साथ देना ना देना तो तेरी मर्जी है पर जरूरत के वक्त तो मत इनकार कर यह आलम शहनाई का होता तो अच्छा होता हिसाब जज़्बातों की भरपाई का होता तो अच्छा होता कमबख्त कंबल की आग भी अब बुझने लगी इस सर्दी इंतजाम रजाई का होता तो अच्छा होता ये सर्द रातें गरमा जाए तो क्या हो तन्हाई मेरी महक जाए तो क्या हो मैं तसव्वर में पढ़ रहा हूं हर-रात जिसे वही किताब हकीकत बन जाए तो क्या हो यही कमबख्त महीना था फरवरी 

Diwan E Satyam 10 Best Sher ever | शेर

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कोई ऐसी करामात ख़ुदा उसे भूल जाने की कर के याद भी ना रहू और इल्ज़ाम भी ना सर हो जो वक़्त हमने तेरी चाहत में गंवाया इबादत में लगाते तो ख़ुदा मिल जाता मुझे ज़िदगी ने ग़म के सिवा कुछ ना दिया तेरी उल्फ़त भी ज़ालिम कुछ ऐसी ही निकली हम छोड़ आए हैं तेरी याद साहिल पे ग़म के भंवर ने दिल घेरा है जब से पूछकर गुज़री दास्तां 'सत्यं' इक शायर को रुला देने का ख़्याल अच्छा है मालूम था वो मुझको चाहते हैं बेशुमार पर फ़ैसला ना दिल लगाने का कर लिया उसने दुश्मन को भी हम ख़ालिश मोहब्बत सज़ा देते हैं नज़रों में उसकी अपनी दीद शर्मिंदगी बना देते हैं इक रोज़ मुझे ख़्याल आया चल तुझको छोड़ दूं ये सोचकर मैं भी न तुझे ख़ुद में तोड़ दूं क्या करोगे तुम मेरा नाम जानकर बे-आसरा हूं कोई ठिकाना नहीं मेरा एक मुद्दत से ज़ुबां ख़ामोश है मेरी सोचा कह दूं हाल-ए-दिल तड़प अच्छी नहीं होती _______________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/Zzlep7C0bpw

4 लाइन वाली शायरी | Best Sher ever (Diwan E Satyam)

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  वो रहे खुदा सलामत एहसान इतना कर दे दूर से ही सही दीदार का इंतज़ाम कर दे तू डाल दे ज़माने की खुशियां उनके दामन में बस सारे रंजो-ग़म एक मेरे नाम कर दे   फिज़ूल ही झुकाए कोई नज़रों को अपनी अनोखा अंदाज़ झलक ही जाता है कितना ही संभाले कोई जवानी का जाम मोहब्बत का कतरा छलक ही जाता है   तेरी सूरत हमने पलकों में छुपा रखी है बीती हर बात दिल में दबा रखी है तू नहीं शामिल मेरी ज़िंदगी में तो क्या तेरी याद आज भी सीने से लगा रखी है   कईं बहारें आई आकर चली गई मेरे दिल के आंगन में कोई गुल नहीं खिला हाले-दिल सुना सकता मैं जिसके सामने मुझको पहले आप-सा बस दोस्त नहीं मिला   मैं ज़िंदगी में थक के चूर हो गया हूं हालात के हाथों मजबूर हो गया हूं एक ख्वाहिश थी तेरे नज़दीक आने की पर किस्मत से बहुत दूर हो गया हूं   थामा है मेरा हाथ तो छोड़ ना देना रास्ता दिखा के प्यार का मुंह मोड़ना लेना तुम्हें देखता हूं मैं जिसमें सुबह-शाम मे रे विश्वास के आईने को तोड़ ना देना एक रोज़ मेरी ज़िंदगी में वो भी शरीक थी वो चाहत बनके मेरे दिल के करीब थी मैं समझा था मोहब्बत में मिलेंगे ...

संबंध | Sambandh | Rishtedari | Shayari

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मेरा दिल गवाही ये बार-बार देता है जब है पिता सलामत तो चाहत नहीं ख़ुदा की हमने चिरागों को तालीम कुछ ऐसी दे रखी थी के घर जल गए दुश्मन के, इल्ज़ाम भी हवाओं पे गया मेरे अपने मेरी उम्र को छिपाते रहे शायद बड़ों की नज़र में छोटे बच्चे ही होते हैं आ मेरे जिग़र के टुकडे तुझे आंखों में बसा लूं तूने चलना भी नहीं सीखा और दरिया सामने है तेरे कई दिनों से मुझे कोई दर्द नहीं मिला मलाल ये है के अपनों से भी दूर हूं मैं मेरी बदनसीबी ने ख़ाक में मिला रखा था मुझें वो ख़िज़ां के मौसम की आंच दिल में दफ़न है फिर भी छूते रहें क़दम मेरे क़ामयाबी की मंज़िल ये मेरी मां की दुआओं का असर है। जिनके हाथ तजुर्बे से भरे होते हैं जिंदगी के खेल में माहीर वही लोग बडे होते हैं साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने बलाएं छूती नहीं, जिन हाथ में ताबीज़ बंधे होते हैं

शायरी जो दिल छू ले | Shayari Jo Dil Chhoo Le

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वो देते हैं नसीहत मोड लो कदम दर्दनांक राहे-उल्फ़त से दलील जाहिर करती हैं तजुर्बा यूं ही नहीं बनता हमने चरागों को तालीम कुछ ऐसी दे रखी थी के घर जल गए दुश्मन के इल्ज़ाम भी हवाओं पे गया देख कर साज़िश मेरे जिस्म और मिज़ाज की होठ चुपचाप सहते रहे आंखों को गवारा ना हुआ रौनक ना देखिए मेरी सूरत की ए जनाब मेरे ग़म को छुपाने का राज़़ है ये मैं अपने चेहरे पर खुशी की झलक रखता हूं अंदर से टूटा हूं मगर दुश्मन को परेशां रखता हूं मत पूछ तू मेरी दास्तां-ए-ग़़म मुझसे मैं बेवजह किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता मैंने फिराई थी यूं ही रेत में उंगलियां ग़ौर से देखा तो तेरा अक़्स बन गया _________________________ वी डियो देखने के लिए लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/6Zo9A-DKFDQ

तेरी मेरी शायरी | Teri Meri Shayari

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जिनका घर है दिल मेरा, वो दूर जा बैठे भला कैसे किसी अजनबी को, मैं पनाह दूं वो शख़्स ना समझा मेरे गहरे जज़्बात को दर्द छुपाना भी बहुत तजुर्बे के बाद आया कब छलक पड़े आंसू, ख़बर तक ना हुई सिसकी भी, जुबां से ना होकर गुज़री ना दे ग़मे-मोहब्बत की आंच मुझे जाने कितने शोलें दिल में बुझा दिए मैंने फूल असली भी हैं नकली भी दुनिया में अब फैसला सिर तुम्हारे सूरत पे मरो या सीरत पे मालूम होता ग़र ये खेल लकीरों का तो ज़ख्मी कर हाथों को तेरी तक़दीर लिख लेता ------------------------------------------------------- वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/xw5aPipiZo0

Best Sher ever from Diwan E Satyam

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पूछता जो खुदा तेरी रजा क्या है तो सबसे पहले तेरा नाम मैं लेता कई बिगड़े मुक़द्दर मैंने संवरते देखें हैं बाखुदा अपनी मोहब्बत का साथ पाकर कितने नादान हैं वो हम पे मरते हैं बेरुखी को भी मेरी सादगी समझते हैं फुर्सत में तुम पे कोई नग़मा लिखेंगे कई बार तहे दिल से सोचने के बाद कई रात हमने आंखों में गुज़ार दी के तेरा ख़्याल आए तो दूजा ना हो कोई ख़्वाबों की दुनिया में तो जीना है मुमकिन कोई बात ऐसी कर जो हक़ीक़त बयां करें क्या दूं अब तुमको मिसाले-मोहब्बत किसी का आंखों को जचना ही प्यार होता है तेरे दीदार में कोई बात है शायद लड़खड़ाता है जिस्म मेरा इज़ाज़त के बिना कुछ इस कदर खोया हूं तेरी उल्फ़त में सितमगर कोई कर रहा हो तहे-दिल से खुदा की इबादत जैसे ____________________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/3bXT0W88Gcw

उनकी शायरी | Unki Shayari | Best Sher ever from Diwan E Satyam

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चल ले चल हाथ पकड़ कर मुझको दर खुदा के काफि़र था मैं जो बेखुदी में सज़दा उसे किया हर ख़्वाहिश मेरी दिल में ही पलती रही हर रोज़ ज़िदगी भी बस उम्मीद पे चलती रही मत पूछ मेरी दास्तां ए ग़म मुझसे मैं बेवजह किसी के आंसू गिराना नहीं चाहता कई शाम हमने चरागों को देखा है देर तक कभी टिमटिमाते हुए कभी मुस्कुराते हुए जिंदगी है कांटो की राह फूल भी मिल सकते हैं कहीं चलता जा-चलता जा दिल में यही आश लिए मालूम है घर की दहलीज़ उन्हें लेकिन ज़िद पे अड़े हैं कोई उनको पुकार ले कल रात तेरी याद ने कुछ इस कदर सताया के आज सुबह हम देर तक सोए _________________________ वीडियो देखने के लिए नीचे लिंक पर क्लिक करें : https://youtu.be/cLf3GQPHEz8

Diwan E Satyam (Sher)

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आज न जाने क्या गरज निकल आई धरती की तरफ आसमान पिंघलने लगा के नशा तेरे प्यार के पागलपन का ही था एक सर-बुलंद, परस्तिश में, सरफ़रोश बन गया. हाथ में शराब है, आगोश में हो तुम  अब फैसला तुम ही करो मैं कौन सी को छोड़ दूं हरेक रंग के फूल से इश्क़ है मुझे मैंने मुहब्बत के रास्ते कभी रंगत को ना आने दिया इन दिनों ही हम कुछ जुदा-जुदा से रहने लगे एक जमाने में हमने फूलों की बहोत इज्जत की  --------------------------------------------------

ज़िंदगी शायरी

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जिनके हाथ तजुर्बे से भरे होते हैं जिंदगी के खेल में माहीर वही लोग बडे होते हैं साथ रखना हमेशा बुजुर्गों को अपने बलाएं छूती नहीं, जिन हाथ में ताबीज़ बंधे होते हैं एक उलझन-सी है जो रास्ता भटका देती है उलझी बात को और उलझा देता है हवाएं ऐसी भी है यहां जो छुप‌ के चलती हैं कोई भटकती चिंगारी जहां मिली, सुलगा देती है परिंदे याद करेंगे, ढूंढेंगे मेरा निशां कुछ इस क़दर उनके ज़ेहन में उतर जाऊंगा लोग लगे हैं काटने इस बरगद की जड़ें मैं शाखों से उग जाऊंगा समंदर की गहराई में छुपे होते हैं कई यह राज़ दरिया से अलग एक पहचान बनानी पड़ती है जरूरत कैसी-कैसी निकल आती है घर-बार में मजबूरियां शराफ़त को भी ले आती है बाज़ार में आज न जाने क्या ग़रज़ निकल आई धरती की तरफ़ आसमां पिंघलने लगा चार दिन लाए थे खुदा से लिखवाकर हयात में दो सनम-परस्ती में गुजर गए, दो खुदा-परस्ती में समंदर बड़ी खामोशी से जख़्मों को छुपाता हैं दरिया थोड़ा बह लेती है तो रो देती है यह शहर भी बड़ा अजीब है मसीहाओं का गुनहगार बेगुनाहों को आइना दिखा रहे हैं मेरी ग़ैरत से ना इस कदर उलझा करो तुम जब उतरती है तो लोग नज़र से उतर जाते हैं एक तो ग़मे-...

चार लाइन वाली शायरी

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ए ख़ुदा ये हसरत मेरी साकार तू कर दे उनके दिल में मेरी तड़प का एहसास तू कर दे जल उठे उनका दिल भी याद में मेरी इस कदर कोई करामात तू कर दे ए इलाही मुझपे इतना तो करम कर ना दे सज़ा बेजुर्म बेबस पे रहम कर फक़त प्यार में डूबा हूं है कोई गुनाह नहीं है नाम तेरा ही दूजा इतनी तो शरम कर एक रोज़ मेरी ज़िंदगी में वो भी शरीक थी वो चाहत बनके मेरे दिल के करीब थी मैं समझा था मोहब्बत में मिलेंगे हसीन पल नज़दीक से देखा तो जुदाई नसीब थी मैं ज़िंदगी में थक के चूर हो गया हूं हालात के हाथों मजबूर हो गया हूं इक ख्वाहिश थी तेरे नज़दीक आने की पर किस्मत से बहुत दूर हो गया हूं थामा है मेरा हाथ तो छोड़ ना देना रास्ता दिखा के प्यार का मुंह मोड़ना लेना तुम्हें देखता हूं मैं जिसमें सुबह-शाम मेरे विश्वास के आईने को तोड़ ना देना क्या पाते हो मुझको सताकर क्या मिलता है तुम्हें यूं दूर जाकर एहसास होगा दिल में लग जाएगी जिस दिन कैसा लगता है किसी के दिल को दुखाकर वो मेरे वज़ूद को बनाता जाता है मुझमें उम्मीद जगाता जाता है काश वो उकेर दे अपना नसीब भी मेरे हाथ पे मेरा दिल यहीं सपना सजाता जाता है ना उसने ही जुबां से इनकार से किया न...

Sher 7 (मुकम्मल)

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ये मंजर भी मैं इक रोज़ दिखलाऊँगा उसे किसी सरफ़रोश से रू-ब-रू कराऊँगा उसे अभी हुक्म का इक्का बाकी है मेरी आस्तीन में जब खेल ख़त्म करूँगा तो खेल जाऊँगा उसे ख़ुदगर्ज़ बड़े हैं लोग, एहसान भूल गए हर शख़्स की खातिर दिया बलिदान भूल गए आंधियों से गुज़ारिश है, अपनी हद में रहें पलभर हमारी आँख लगी, औक़ात भूल गए उजाले कफ़न ओढ़कर सोने लगे सहारे सिरों को झुका रोने लगे जहाँ देखो हर तरफ मातम है छाया फ़रिश्ते ख़ुदा की मौत पर रोने लगे वो मेरी हद-ए-तसव्वुर से गुज़रता क्यों नहीं नशा उसके अन्दाज़ का उतरता क्यों नहीं मैं हैरान हूँ ये सोचकर उसके बारे में ढलता है वक़्त, हुस्न उसका ढलता क्यों नहीं अलग सोच ज़माने की बना लेनी चाहिए, उठे जो भी सदाएँ, वो दबा देनी चाहिए। ज़रूरी नहीं शमशीर क़त्ल को ही उठे, दहशतगर्दी को भी लहरा देनी चाहिए। मेरे दिल में वो शम्अ-ए-मुहब्बत जलाता रहा मेरे जुनून पर कामयाबी का रास्ता बनाता रहा जिसे लेकर गया था मैं एक रोज़ बुलंदी पर वही अपनी नज़र से मुझे गिराता रहा

Sher 6 (मुकम्मल)

शायद मिरी चाहत मिरे जानिब खड़ी है सच बोला था नज़मी ने वो मग़रूर बड़ी होगी देखो बेमिस्ल फ़ैसला है ख़ुदाई का तोड़ते-तोड़ते मुझे वो ख़ुदा टूट गया मालूम है दिल की दहलीज़ उन्हें मगर ज़िद पे अड़े हैं कोई अब उनको पुकार ले उसने जब अपनी चाहत का इज़हार कर दिया अधूरी मेरी ग़ज़ल थी मुकम्मल हो गई मैं मुसाफ़िर हूँ तेरी रज़ा की किश्ती का चाहे साहिल पे ले चल चाहे डुबो दे मुझे एक मुद्दत से मैं ख़ामोश चला आता हूँ  सोचा कह दूँ हाल-ए-दिल तड़पना ठीक नहीं एक रोज़ उसे माँग लूँगा दुआ कर ख़ुदा से फ़िलहाल लुत्फ़ ले रहा हूँ इंतज़ार का गुज़रा है बदलते हुए हालात का हर मंज़र एक बस तेरी याद के मौसम के सिवा लिख दी है तब्दीलियाँ हर दौर ने हर शै पे एक बस तेरी याद के मौसम के सिवा उसे भूल जाने की करामात हो जाए बग़ैर इल्ज़ाम के ये सारी बात हो जाए

बाज़ (शायरी)

कल मिरी परवाज़ ऊंचाई छू लेगी आज मैं नाख़ून-ओ-पंख नोच रहा हूं यूं ही नइं कोई किनारा करता है बाज़ इकला ही बुलंदी छूता है चंद कव्वों पे यहां नइं नइं रवानी आयी है बाज़ से टकरा रहे हैं मौत दर तक लायी है हवा चाहे जिधर भी उडे ज़माने की यहां लेकिन रियासत ए फ़लक तो बाज़ के क़दमों में रहती है

Ghazal 3 (बहर ए मीर)

2 2 21 -1 22 2 12  1 सबके कर्ज़ उतारे जा रहे हैं कुछ बे-फ़र्ज़ उतारे जा रहे हैं अपने हाल तो यारों गर्दिशों में उनके बाल संवारे जा रहे हैं कोई भी तो नहीं दुनिया में अपना तन्हा वक़्त गुजारे जा रहे हैं रिश्ते छूट रहे हाथों से मेरे हम गै़रों को पुकारे जा रहे हैं हाले-दिल ही सुनाया ये सिला मिला उसके दिल से किनारे जा रहे हैं मिटा रहा सत्यं वो किश्ती ए वफ़ा भी हम दरिया में उतारे जा रहे हैं जाऊं जिधर सदा आती है अब यही देखो इश्क़ के मारे जा रहे हैं

Sher 5 (बहर ए मीर)

-- बहर ए मीर -- बादलों उसके भी घर जा कर बरसो याद मिरी उस बेख़बर को भी तो आए वह बेरुखी करते हैं मुझसे जाने क्यों जिसे करीब से तमन्ना देखने की है जिनका घर है दिल मेरा वो दूर जा बैठे भला कैसे किसी अजनबी को मैं पनाह दूं तमाम कोशिशें बेकार ही रही संभल पाने की जब डूब गए हम तेरी आंखों की गहराई में

Sher 4 (मुकम्मल)

कैसी तौबा कैसा सज़्दा बेगुनाह के लिए सब बे-ईमानी है यारों एक तन्हा के लिए मैं चेहरे पर खुशी की झलक रखता हूं अंदर से टूटा हूं दुश्मन नज़र रखता हूं आज जाने गरज़ कैसी निकाल आई आसमां इक जमीं पर पिघलने लगा दर्दे-इश्क़ में मैं बद-हवास तो नहीं ला-इलाज हूं कुई बदज़ात तो नहीं यूं ही नइं कोई किनारा करता है इकला बाज़ अक्सर बुलंदी छूता है अपने चहरे पर हल्की मैं मुस्कान रखता हूं ख़ुद टूटा हूं पर बैरी को हैरान रखता हूं वो बेरुख़ हो जाते हैं मुझे देखकर हम बेख़ुद हो जाते हैं जिन्हें देखकर पैग़ाम यूं आया ख़ुदा का इश्क़ कर ले 'सत्यं' अब क्या खता मेरी बता दिल तुझपे आया मेरा दिल में दबी वो एक जरूरत मिल जाए मुझे प्यार में डूबी कोई मूरत मिल जाए इसमें दुनिया का बहुत भला हो सकता है मिरे ख़्यालों को जो ग़ज़ल की सूरत मिल जाए

Sher 3 (मुकम्मल)

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हम बेख़ुदी में जिसको सज़दा करते रहे कभी गौर से ना देखा पत्थर बुत है वो तुझे सताने की मुझे बर्दाश्त की नेमत अता की है ख़ुदा ने हर इंसान बड़ी फ़ुर्सत लगाकर ही बनाया है झूठ नापने का अगर कोई पैमाना होता मिरी मुस्कुराहट को उसने ज़रा जाना होता हज़ारों मुहब्बत मिरे हिस्से आयी लेकिन जिसे टूट कर चाहा मैंने मिरा ना हुआ मैंने फिरायी थी 'सत्यं' रेत में उंगलियां ग़ौर से देखा तो तेरा अक़्स उभरने लगा पूछता जो ख़ुदा तेरी रज़ा क्या है जानां अव्वल तिरा नाम मैं लेता तक़दीर ही मेरी मुझसे ख़फ़ा है वर्ना खुशदिल तो हमारे रक़ीब हैं होता ग़र मालूम किस्मत की लकीरों का तो ज़ख्मी करके हाथ तिरी तक़दीर मैं लिख लेता ख़ुदा की है रहमत ये मेरे मुक़द्दर में वगरना सितमगर वो मासूम ना होता