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Sher O Shayari

गुनाहों का सूरज निकाला जा रहा है जनाज़ा बेबसी का निकाला जा रहा है ज़माना जिसके नाम से हमें जानता है उसी दौलत को बस निकाला जा रहा है उजाले कफ़न ओढ़कर सोने लगे सहारे सिरों को झुका रोने लगे जहां देखो मातम है छाया हर तरफ फ़रिश्ते ख़ुदा की मौत पर रोने लगे

ग़ज़ल-

सबके हिस्से हिस्सेदारी होनी चाहिए सबकी अपनी ज़िम्मेदारी होनी चाहिए ख़ुद की ख़ातिर ख़ुद से भी फ़ुर्सत मांगा करो आंखों में इतनी ख़ुद्दारी होनी चाहिए इक मैं ही बेइंतेहा तुझपे मरता रहूं मिरे दिल पे तिरी दावेदारी होनी चाहिए रस्ता लंबा है दोनों की मंज़िल एक है हम में कोई रिश्तेदारी होनी चाहिए धोखा अपने ही दे देते हैं अक्सर यहां अपनी मुट्ठी में दुनियादारी होनी चाहिए कुछ ऐसे कर कायम हरसू अपना रुतबा हर गली कूचे में ताबेदारी होनी चाहिए

अंधेरे का सूरज निकला जा रहा है

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अंधेरे का सूरज निकाला जा रहा है संभले हालत को संभाला जा रहा है सच को हर सूरत में छुपाया जाता है झूठ का अख़बार निकाला जा रहा है कट रही उंगलियां नोचे जा रहे जिस्म ग़रीब को दहशत की आदत में ढ़ाला जा रहा है मौसम की नज़ाकत समझो दौरे हाज़िर में पगड़ियों को सरे आम उछाला जा रहा है कल उंगलियां पकड़ जिनकी यतीम बड़े हुए उन्हीं की परवरिश में नुक़्स निकाला जा रहा है कई सांप जकड़े है एक सोन चिड़िया को पालने वाले पर इल्ज़ाम डाला जा रहा है  रखो नज़र दहलीज़ पर ये दौर तुम्हारा है हमारी पुरानी आंख का उजाला जा रहा है मिशाल मुहब्बत की इस क़दर करो क़ायम  जो देखे यही कहे हिंदुस्तान वाला जा रहा है

मोहब्बत में ऐसे नज़ारे हो गए

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इश्क़ में बहुत लोगों के ख़सारे हो गए हमें भी मोहब्बत में ऐसे नज़ारे हो गए वैसे वो मुस्कुराकर तो देखा करती है इसी भरम मे नए ज़माने पुराने हो गए चांद ने हटा दी घटा जो औढ़ रखी थी आंखों के सामने रंगीन उजाले हो गए नज़र रखने वाले ने जिस तौर से देखा उनके सारे पुराने ऐब हमारे हो गए जिसने पलट कर भी मेरी ओर ना देखा मशहूर उसके नाम से मेरे फ़साने हो गए तेरी ज़ुल्फ़़ की तासीर होठों का जायक जाइज़ा तेरे बदन का सब ज़माने हो गए ------------------------------------------